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हिंदी-उदा॰—कनफटा, दुधमुँहा, मिठबोला, बारहसिंगा, अनमोल, हँसमुख, सिरकटा, टुटपुँजिया, बड़भागी, बहुरूपिया, मनचला, घुडमुँहा, इत्यादि।

उर्दू—कमजोर, बदनसीब, खुशदिल, नेकनाम।

अधिकरण बहुब्रीहि—प्रफुल्ल-कमल (खिले हैं कमल जिसमें—वह तालाब), इंद्रादि (इंद्र है आदि में जिनके—वे देवता), स्वरात (शब्द)।

हिंदी-उदा॰—त्रिकोन, सतखंडा, पतझड़, चौलडी।

[ सू॰—अधिकांश पुस्तकों और सामयिक पत्रों के नाम इसी समास में समाविष्ट होते है।]

४६८—जिस बहुब्रीहि-समास के विग्रह में दोनों पदों के साथ एक ही विभक्ति आती है उसे समानाधिकरण बहुब्रीहि कहते हैं, और जिसके विग्रह में दानों पदों के साथ भिन्न-भिन्न विभक्तियाँ आती हैं वह व्यधिकरण बहुब्रीहि कहलाता है। ऊपर के उदाहरणों में कृतकृत्य, दशानन, नीलकठ, सिरफटी, समानाधिकरण बहुब्रीहि हैं और चंद्रमैलि इंद्रादि, सतखंडा व्यधिकरण बहुब्रीहि हैं। 'नीलकंठ' शब्द में 'नील' और 'कंठ' (नीला है कंठ जिसका) एक ही अर्थात् कर्त्ता-कारक में हैं, और 'चंद्रमौलि' शब्द में 'चंद्र' तथा 'मौलि' (चंद्र है मौलि में जिसके) अलग-अलग, अर्थात् क्रमशः कर्त्ता और अधिकरण-कारकों में हैं।

४६९—बहुब्रीहि समास के पदों के स्थान अथवा उनके अर्थ की विशेषता के आधार पर उसके नीचे लिखे भेद हो सकते हैं—

(१) विशेषण-पूर्वपद—पीतावर, मद-बुद्धि, लंव-कर्ण, दीर्घबाहु।

हिंदी-उदा॰—बडपेटा, लाल-कुर्सी, लमटंगा, लगातार, मिठबोला।

उर्दू-उदा॰—साफ़दिल, जवरदस्त, बदरंग।