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नीचे, ऊपर-ऊपर, पास-पास, आगे-आगे, पीछे-पीछे, साथ-साथ, कहाँ-कहाँ, कहीं-कहीं, पहले-पहले, अभी-अभी।

[सू॰—"पहले-पहल" शब्द का अर्थ प्रथम बार है।]

(अ) जिन क्रियाविशेषणों का उपयोग संबंधसूचकों के समान होता है वे इस (दूसरे) अर्थ में भी पुनरुक्त होते हैं; जैसे, सडक के पास-पास, नैकर के साथ-साथ, कपड़े के ऊपर-ऊपर, पानी के नीचे-नीचे।

४९९—विस्मयादिबोधक अव्ययों की पुनरुक्ति मनोविकारों का उत्कर्ष अथवा आवेग सूचित करने के लिए होती है, जैसे, हा-हा! हाय-हाय! छिः-छि! अरे-अरे! राम-राम!

(अ) कोई-कोई विस्मयादिबोधक तीन बार उक्त होते हैं, जैसे, जय-जय-जय गिरिराज किशोरी। देख री मा, देख री मा, देख लिए जाय। फाड़ के दो टूक किये, हाय हाय हाय!

५००—समुच्चयबोधक अव्ययों की पुनरुक्ति नहीं होती।

५०१—अतिशयता के अर्थ में कभी-कभी शब्दों की पुनरुक्ति के साथ-साथ उनके बीच में 'ही' को आगम होता है, जैसे, मन ही मन में, बातों-ही-बातों में, आगे-ही-आगे, साथ-ही-साथ, काला-ही काला, दूध-ही-दूध। इस रचना से कभी-कभी निश्चय भी सूचित होता है।

५०२—कभी-कभी पुनरुक्त शब्दों के बीच में संबंधकारक की विभक्तियाँ आती हैं। इस प्रकार की पुनरुक्ति विशेष कर संज्ञाओं में होती है, इसलिए इसका विवेचन कारक-प्रकरण में किया जायगा। यहाँ केवल अव्ययो की इस पुनरुक्ति के अर्थों का विचार किया जाता है—

(१) अव्यय की और वाच्य अवस्थाओं को छोड़ केवल मूल दशा का स्वीकार—जैसे, सेना पीछे की पीछे रह गई, नौकर बाहर