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(ओ) यदि कर्म-पूर्त्ति के अर्थ की प्रधानता हो तो कभी-कभी क्रिया के लिंग-वचन उसी के अनुसार होते हैं; जैसे, हृदय भी ईश्वर ने क्या ही वस्तु बनाई है (सत्य॰)!

५७८—नीचे लिखी रचनाओं में क्रिया सदैव पुल्लिंग, एकवचन और अन्य पुरुष में रहती है (अं॰—३६८)।

(क) यदि अकर्मक क्रिया का उद्देश्य सप्रत्यय हो, जैसे, मैंने नहीं नहाया, लडकी का जाना था, रोगी से बैठा नहीं जाता, यह बात सुनते ही उसे रो आया; इत्यादि।

(ख) यदि सकर्मक क्रिया का उद्देश्य और मुख्य कर्म, दोनों सप्रत्यय हे, जैसे, मैंने लड़की को देखा, उन्हें एक बहुमूल्य चादर पर लिटाया जाता (सर॰); मिसेज ऐनी बेसेट को उसका संरक्षक बनाया गया है (नागरी॰), रानी ने सहेलियों को बुलाया, विधाता ने इसे दासी बनाया (सत्य॰), साधु ने स्त्री को रानी समझा, मीर कासिम ने मुंगेर ही को अपनी राजधानी बनाया (सर॰)।

(ग) जब वाक्य अथवा अकर्मक क्रियार्थक सज्ञा उद्देश्य हो जैसे, मालूम होता है कि आज पानी गिरेगा, हो सकता है कि हम वहाँ से लौट आयँ, सबेरे उठना लाभकारी होता है।

(घ) जब सप्रत्यय उद्देश्य के साथ वाक्य अथवा क्रियार्थक संज्ञा कर्म हो, जैसे, लडके ने कहा कि मैं आऊँगा, हमने नटों का बाँस पर नाचना देखा, तुमने बात करना न सीखा; इत्यादि।

५७९—यदि दो वा अधिक सयोजक समानाधिकरण वाक्य "और" (संयोजक समुच्चयबोधक) से जुड़े हों और उनमें भिन्न-भिन्न रूपों के (सप्रत्यय तथा अप्रत्यय) कर्त्ता-कारक आवें तो बहुधा पिछले कर्त्ता-कारक को अध्याहार हो जाता है; परन्तु क्रिया के लिंग-वचन-पुरुष यथा-नियम (कर्त्ता, कर्म अथवा भाव के अनुसार)