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रहते हैं; जैसे, मैं बहुत देश-देशांतरों में घूम चुका हूँ; पर () ऐसी आबादी कहीं नहीं देखी (विचित्र॰); मैंने यह पद त्याग दिया और () एक दूसरे स्थान मे जाकर धर्म-ग्रंथों का अध्ययन करने लगा (सर॰)।

[सू॰—इस प्रकार की रचना से जान पड़ता है कि हिंदी में सप्रत्यय कर्त्ता-कारक की सकर्मक क्रिया कर्मवाच्य नहीं मानी जाती और न सप्रत्यय कर्त्ता-कारक करण-कारक माना जाता है, जैसा कि कोई-कोई वैयाकरण समझते है।]


पाॅचवाँ अध्याय।

सर्वनाम।

५८०—सर्वनामों के अधिकांश अर्थ और प्रयोग तथा वर्गीकरण शब्द-साधन के प्रकरणों में लिखे जा चुके हैं। यहाॅ उनके प्रयोगों का विचार दूसरे शब्दों के संबंध से किया जाता है।

५८१—पुरुषवाचक, निश्चयवाचक और संबंधवाचक सर्वनाम जिन संज्ञाओं के बदले में आते हैं उनके लिंग और वचन सर्वनामों में पाये जाते हैं; परन्तु संज्ञाओं का कारक सर्वनामों में होना आवश्यक नहीं है; जैसे, लड़के ने कहा कि मैं जाता हूँ; पिता ने पुत्रियों से पूछा कि तुम किसके भाग्य से खाती हो; जो न सुनै तेहि का कहिये, लड़के बाहर खड़े हैं, उन्हें भीतर बुलाओ।

(क) यदि अप्रधान पुरुषवाचक सर्वनाम व्यापक अर्थ मे उद्देश्य वा कर्म होकर आवे तो क्रिया बहुधा पुल्लिंग रहती है; जैसे, कोई कुछ कहता है, कोई कुछ; सब अपनी बड़ाई चाहते हैं; क्या हुआ? उसने जो किया सो ठीक किया

५८२—जब कोई लेखक वा वक्ता दूसरे के भाषण को उद्धृत करता अथवा दुहराता है तब मूल भाषण के सर्वनाम में नीचे लिखा परिवर्त्तन और अर्थ-भेद होता है—