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अर्थ सूचित होता है; जैसे, किसी लिखनेवाले को बुलाओ। झूठ बोलनेवाला मनुष्य आदर नहीं पाता। गाड़ी आनेवाली है।

(अ) और-और कृदंतों के समान सकर्मक क्रिया से बना हुआ यह कृदंत भी कर्म के साथ आता है और यदि यह अपूर्ण क्रिया से बना है तो इसके साथ इसकी पूर्त्ति आती है; जैसे, घड़ी बनानेवाला; झूठ को सच बतानेवाला; बड़ा होनेवाला।

(४) अपूर्ण क्रिया-द्योतक कृदंत।

६२४—यह कृदंत सदा अविकारी (एकारांत) रूप में रहता है और इसका प्रयोग क्रिया-विशेषण के समान होता है; जैसे, उसको वहाँ रहते (=रहने से) दो महीने हो गये। मुझे सारी रात तलफते बीती। यह कहते मुझे बड़ा हर्ष होता है।

(अ) अपूर्ण क्रिया-द्योतक कृदंत का उपयोग बहुधा तब होता है, जब कृदंत और मुख्य क्रिया के उद्देश्य भिन्न-भिन्न होते हैं और कृदंत का उद्देश्य (कभी-कभी) लुप्त रहता है; जैसे, दिन रहते यह काम हो जायगा। मेरे रहते कोई कुछ नहीं कर सकता। वहाँ से लौटते रात हो जायगी। बात कहते दिन जाते हैं।

(आ) जब वाक्य मे कर्त्ता और कर्म अपनी-अपनी विभक्ति के साथ आते हैं, तब उनका वर्त्तमानकालिक कृदंत उनके पीछे अविकारी रूप में आता है चैर उसका उपयोग बहुधा क्रिया-विशेषण के समान होता है; जैसे, उसने चलते हुए मुझसे यह कहा था। मैंने उन स्त्रियों को लौटते हुए देखा। मैं नौकर को कुछ बड़बड़ाते हुए सुन रहा था।

(इ) अपूर्ण क्रियाद्योतक कृदंत की बहुधा द्विरुक्ति होती है, और उससे नित्यता का बोध होता है, जैसे, बात करते-करते उसकी बोली बन्द हो गई; मैं डरते-डरते उसके पास गया; हँसते-