(१) पूर्ण अध्याहार में छोडा हुआ शब्द पहले कभी नहीं आता, जैसे, हमारी और उनकी ( ) अच्छी निभी; मोरि ( ) सुधारहि सो सब भाँती।
(२) अपूर्ण अध्याहार में छोडा हुआ शब्द एक बार पहले आ चुकता है, जैसे, राम इतना चतुर नहीं है जितना श्याम ( ) गरमी से पानी फैलता ( ) और ( ) हलका होता है।
६५३—पूर्ण अध्याहार नीचे लिखे शब्दों में होता है—
(अ) देखना, कहना और सुनना क्रियाओ के सामान्य वर्त्तमान और आसन्न भूतकालो में कर्त्ता बहुधा लुप्त रहता है; जैसे, ( ) देखते हैं कि युद्ध दिन-दिन बढ़ता जाता है, ( ) कहा भी है कि जैसी करनी वैसी भरनी, ( ) सुनते हैं कि वे आज जायँगे।
(आ) विधि-काल में कर्त्ता बहुधा लुप्त रहता है, जैसे, ( ) आइये, ( ) वहाँ मत जाना।
(इ) यदि प्रसंग से अर्थ स्पष्ट हो सके तो बहुधा कर्त्ता और संबध-कारक का लोप कर देते हैं, जैसे, वहाँ वीरसिह एक रघुवंशी राजपूत रहता था, उसका बाप बडा धनाढ्य था; ( ) घर के आगे सदा हाथी झुमा करता था, पर हितू उसका कोई न था, ( ) धन के मद में सबसे वैर-विरोध रखता था, ( ) वीरसिंह को पाँच ही बरस का छोड के मर गया (गुटका॰)।
(ई) सबंधवाचक क्रियाविशेषण और संकेतवाचक समुच्चयबोधक के साथ "होना" "हो सकना", "बनना", "बन सकना," आदि क्रियाओं का उद्देश्य—जैसे, जहाॅ तक ( ) हो जल्दी आना; जो मुझसे ( ) न हो सकता तो यह बात मुँह से क्यों निकालता; जैसे ( ) बना, तैसे उन्हें प्रसन्न रखने का प्रयत्न आप सदैव करते रहे।