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तो भी वह इसमें एक प्रकार से स्वाभाविक और निश्चित है। विशेष प्रसंग पर (वक्तृता और कविता मे) वक्ता और लेखक की इच्छा के अनुसार पदक्रम मे जो अंतर पड़ता है उसका अलंकारिक पदक्रम कहते हैं। इसके विरुद्ध दूसरा पदक्रम साधारण किंवा व्याकरणीय पदक्रम कहलाता है।

आलंकारिक पदक्रम के नियम बनाना बहुत कठिन है और यह विषय व्याकरण से भिन्न भी है; इसलिए यहाँ केवल साधारण पदक्रम के नियम लिखे जायँगे।

६५७—वाक्य मे पदक्रम का सबसे साधारण यह नियम है कि पहले कर्त्ता वा उद्देश्य, फिर कर्म वा पूर्त्ति और अंत में क्रिया रखते हैं; जैसे, लड़का पुस्तक पढ़ता है; सिपाही सूबेदार बनाया गया; मोहन चतुर जान पड़ता है; हवा चली।

६५८—द्विकर्मक क्रियाओं में गौण कर्म पहले और मुख्य कर्म पीछे आता है; जैसे, हमने अपने मित्र को चिट्ठी भेजी; राजा ने सिपाही को सूबेदार बनाया।

६५९—इनके सिवा दूसरे कारकों में आनेवाले शब्द उन शब्दों के पूर्व आते हैं जिनसे उनका संबंध रहता है; जैसे, मेरे मित्र की चिट्ठी कई दिन में आई; यह गाड़ी बंबई से कलकत्ते तक जाती है।

६६०—विशेषण संज्ञा के पहले और क्रियाविशेषण (वा क्रियाविशेषण -वाक्यांश) बहुधा क्रिया के पहले आते हैं; जैसे, एक भेड़िया किसी नदी में, ऊपर की तरफ पानी पी रहा था; राजा आज नगर में आये हैं।

६६१—अवधारण के लिए ऊपर लिखे क्रम में बहुत कुछ अंतर पड़ जाता है; जैसे—

(अ) कर्त्ता और कर्म का स्थानांतर—लड़के को मैंने नहीं देखा। घड़ी कोई उठा ले गया।