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[सू॰—संज्ञा और सर्वनाम के संबंध-कारक की व्याख्या में लिंग और वचन का निर्णय करना कुछ कठिन है, क्योंकि इनमें निज के लिंग-वचन के साथ-साथ भेद्य के लिंग-वचन के कारण रूपांतर होता है। ऐसी अवस्था में इनकी व्याख्या में दोनों रूपों का उल्लेख होना चाहिये ।(अ॰—५८९—अ)।]

वचन को—यौगिक संज्ञा, भाववाचक, पुँल्लिंग, एकवचन, सप्रत्यय कर्मकारक; 'पालता' सकर्मक क्रिया से अधिकृत।

नहीं—यौगिक क्रिया-विशेषण, निषेधवाचक, विशेष्य 'पालता' क्रिया।

पालता—मूल क्रिया, सकर्मक, कर्तृवाच्य, निश्चयार्थ, सामान्य वर्त्तमान-काल, अन्यपुरुष, पुँल्लिंग, एकवचन, जो कर्त्ता से अन्वित, 'वचन को' कर्म पर अधिकार। कर्त्तरिप्रयोग। (नहीं के योग से "है" सहायक क्रिया का लोप, अं॰—६५३—ए) ।

वह—रूढ़ सर्वनाम, निश्चयवाचक, 'जो' सर्वनाम की ओर संकेत करता है, अन्यपुरुष, पुँल्लिंग, एकवचन, प्रधान कर्त्ताकारक 'है' क्रिया का।

विश्वास के—यौगिक सज्ञा, भाववाचक, पुल्लिंग, एकवचन, संबध-कारक, संबंधी शब्द 'योग्य'। इस विशेषण के योग से विकृत रूप।

योग्य—यौगिक विशेषण, गुणवाचक, विशेष्य 'वह', पुंल्लिग, एकवचन, विधेय-विशेषण। इसका प्रयोग सबधसूचक के समान हुआ है। (अं॰—२३९)।

नहीं—यौगिक क्रिया-विशेषण, निषेधवाचक, विशेष्य "है"।

है—मूल अपूर्ण-क्रिया, स्थितिबोधक, अकर्मक, कर्तृवाच्य, निश्चयार्थ, सामान्य वर्त्तमान-काल, अन्यपुरुष, पुँल्लिंग, एकवचन, 'वह' कर्त्ता से अन्वित। कर्त्तरि-प्रयोग।