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(१६) मुझको हँसते देख सब-कोई हँस पड़े

हँसते―अकर्मक वर्त्तमानकालिक कृदंत विशेषण, विशेष्य। ‘मुझको’, विभक्ति-युक्त विशेष्य के कारण अविकारी रूप।

सब-कोई―संयुक्त अनिश्चयवाचक सर्वनाम, “लोग” (लुप्त) संज्ञा की ओर संकेत करता है। अन्यपुरुष, पुल्लिँग, बहुवचन, कर्त्ता-कारक ‘हँस पड़े’ क्रिया का।

हँस-पड़े―संयुक्त अकर्मक क्रिया, अचानकता-बोधक, सामान्य भूतकाल, कर्त्तरि-प्रयोग।

(१७) शिष्य को चाहिये कि गुरु की सेवा करे।

चाहिये―क्रिया सकर्मक, कर्तृवाच्य, निश्चयार्थ, संभाव्य-भविष्यत्काल (अर्थ सामान्य वर्तमान-काल), अन्यपुरुष, पुँल्लिंग, एकवचन, कर्त्ता ‘शिष्य को’, कर्म दूसरा वाक्य ‘गुरुॱॱॱॱॱकरे।’ भावेप्रयोग। “चाहिये” अविकारी क्रिया है।

(१८) किसान भी अशर्फियों की गठरी ले चलता हुआ।

भी―अवधारण-बोधक अव्यय, ‘किसान’ संज्ञा के विषय में अधिकता सूचित करता है। (यह क्रिया-विशेषण भी माना जा सकता है; क्योंकि यह ‘चलता हुआ’ के विषय में भी अधिकता सूचित करता है।)

[सू०―कोई-कोई इसे संयोजक समुच्चय-बोधक अव्यय समझकर ऐसा मानते हैं कि यह पहले कहे हुए किसी शब्द को प्रस्तुत वाक्य के निर्दिष्ट शब्द से मिलता है। इस मत के अनुसार ‘भी’ ‘किसान’ संज्ञा के पहले कही। हुई किसी संज्ञा से मिलाता है।]

चलता―वर्त्त मालकालिक कृदंत विशेष्ण, विशेष्य किसान।

“चलता हुआ” का निश्चयवाचक संयुक्त क्रिया भी मान सकते हैं।” (अं०―४०७―उ)।]

(१९) जो न होत जग जनम भरत को।
सकल धरम-धुर धरणि धरत को॥