पृष्ठ:हिंदी व्याकरण.pdf/६०८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(५८७)

 

(ऊ) संज्ञा के समान उपयेाग में आनेवाली कोई भी शब्द― “दौड़कर” पूर्वकालिक कृदंत है। “क” व्यंजन है।

[सू०―एक वाक्य भी उद्देश्य हो सकता है, पर उस अवस्था में वह अकेला नहीं आता, किंतु मिश्र वाक्य का एक अवयव होकर आता है। (अ०―७०२)।]

६८४―वाक्य के साधारण उद्देश्य में विशेषणादि जोड़कर उसका विस्तार करते हैं। उद्देश्य की संज्ञा नीचे लिखे शब्दों के द्वारा बढ़ाई जा सकती है―

(क) विशेषण―अच्छा लड़का माता-पिता की प्रज्ञा मानता है। लाखों आदमी हैजे से मर जाते हैं।

(ख) संबंधकारक―दर्शकों की भीड़ बढ़ गई। भोजन की सब चीजें लाई गई। इस द्वीप की स्त्रियाँ बड़ी चंचल होती हैं। जहाज पर के यात्रियों ने आनंद मनाया।

(ग) समानाधिकरण शब्द――परमहंस कृष्णस्वामी काशी को गये। उनके पिता जयसिह यह बात नहीं चाहते थे।

(घ) वाक्यांश―दिन का थका हुआ आदमी रात को खूब सेता है। आकाश में फिरता हुआ चंद्रमा राहु से ग्रसा जाता है। काम सीखा हुआ नौकर कठिनाई से मिलता हैं।

[सू०―(१) उद्देश्य का विस्तार करनेवाले शब्द स्वयं अपने गुणवाचक शब्दों के द्वारा बढाये जा सकते हैं, जैसे, एक बहुत ही सुंदर लड़की कहीं जा रही थी। आपके बड़े लंडके का नाम क्या है? जहाज का सबसे ऊपर का हिस्सा पहले दिखाई देता है।

(२) ऊपर लिखे एक अथवा अनेक शब्दों से उद्देश्य का विस्तार हो सकता है, जैसे, तेजी के साथ दौड़ती हुई, छोटी छोटी, सुनहरी मछलियां साफ दिखाई पड़ती थीं। घोड़ों की टापों की, बढ़ती हुई आवाज दूर दूर तक फैल रही थी। वाजिद-अली के समय का, ईटों से बना हुआ, एक पक्का मकान अभी तक बढ़ा है।]