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वाक्य में “मैं जिस दूकान मे गया था”, यह उपवाक्य “उसमें दवा नही मिली”, इस संज्ञा-उपवाक्य का विशेषण-उपवाक्य है। इस पुरे वाक्य में एक ही प्रधान उपवाक्य है; इसलिए यह समूचा वाक्य मिश्र ही है।

७०१—आश्रित उपवाक्यों के संज्ञा-उपवाक्य, विशेषण-उप- वाक्य और क्रिया-विशेषण-उपवाक्य, ये तीन ही भेद होते हैं। उनके और अधिक भेद नही हो सकते, क्योंकि संज्ञा, विशेषण और क्रिया-विशेषण के बदले तो दूसरे उपवाक्य आ सकते हैं; परंतु क्रिया का आशय दूसरे उपवाक्य से प्रकट नहीं किया जा सकता। इनको छोड़कर वाक्य मे और कई ऐसे अवयव नही होते जिनके स्थान में वाक्य की योजना की जा सके।

संज्ञा-उपवाक्य ।

७०२—संज्ञा-उपवाक्य बहुधा मुख्य वाक्य के संबंध से नीचे लिखे किसी एक स्थान में आता है—

(क)उद्देश्य—इससे जान पड़ता है “कि बुरी संगति का फल बुरा होता है”। मालूम होता है “कि हिंदू लोग भी इसी घाटी से होकर हिंदुस्थान में आये थे”।

(ख)कर्म—वह जानती भी नही “कि धर्म किसे कहते हैं”। मैंने सुना है “कि आपके देश में अच्छा राज-प्रबंध है।

(ग)पूर्ति—मेरा विचार है “कि हिंदी का एक साप्ताहिक पत्र निकालू”। उसकी इच्छा है “कि आपको मारकर दिलीप सिंह को गद्दी पर बिठावे”।

(घ)समानाधिकरण शब्द—इसका फल यह होता है “कि इनकी तादाद अधिक नहीं होने पाती”। यह विश्वास दिन पर दिन बढ़ता जाता है “कि मरे हुए मनुष्य इस संसार में लौट जाते हैं”।