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“उछला हुआ” । प्लुत में तीन मात्राएँ होती है । वह बहुधा दूर से पुकारने रोने, गाने और चिल्लाने में आता है । उसकी पहचान दीर्घ स्वर के आगे तीन का अंक लिख देने से होती है, जैसे, लड़के ३ ।]

३८–जाति के अनुसार स्वरों के दो भेद और हैं-सवणे और असवर्ण अर्थात् सजातीय और विजातीय । समान स्थान और प्रयत्न से उत्पन्न होनेवाले स्वरों को सवर्ण कहते हैं। जिन स्वरों के स्थान और प्रयत्न एकसे नही होते वे असवर्ण कहलाते हैं। अ, आ परस्पर सवर्ण हैं । इसी प्रकार इ, ई तथा उ, ऊ सवर्ण हैं ।।

अ, इ वा अ, ऊ अथवा इ, ऊ असवर्ण स्वर हैं ।

सूचना–ए, ऐ, ओ, औ, इन संयुक्त स्वरों में परस्पर सवर्णता नहीं है। क्योंकि ये असवर्ण स्वरों से उत्पन्न हैं। ]

३६-उच्चारण के अनुसार स्वरों के दो भेद और हैं-

(१) सानुनासिक (२) निरनुनासिक ।

यदि मुंह से पूरा पूरा श्वास निकाला जाय तो शुद्ध–निरनु- नासिक-ध्वनि निकलती है, पर यदि श्वास का कुछ भी अंश नाक से निकाला जाय तो अनुनासिक ध्वनि निकलती है। अनुनासिक स्वर का चिह्न () चंद्रबिंदु कहलाता है, जैसे गॉव, ऊँचा । अनुस्वार और अनुनासिक व्यंजनों के समान चंद्रविदु कोई स्वतंत्र वर्ण नहीं है, वह केवल अनुनासिक स्वर का चिह्न है। अनुनासिक व्यंजनों को कोई कोई “नासिक्य' और अनुनासिक स्वरों को केवल अनुनासिक कहते हैं। कभी कभी यह शब्द चंद्रबिंदु का पर्यायवाचक भी होता है। ( देखो ४६ वॉ अंक )

४०-( क ) हिंदी में अंत्य अ का उच्चारण प्रायः हल् के समान होता है, जैसे, गुण, रात, धन, इत्यादि। इस नियम के कई अपवाद हैं-