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अवलंबित रहता है उतना एक प्रधान उपवाक्य दूसरे प्रधान उपवाक्य पर नहीं रहता। यदि दोनों प्रधान उपवाक्य एक दूसरे से स्वतन्न रहें तो उनमें अर्थ-संगति कैसे उत्पन्न होगी? इसी तरह मिश्र वाक्य का प्रधान उपवाक्य भी अपने आश्रित उपवाक्य पर थोड़ा-बहुत अवलबित रहता है।]

७२२—संयुक्त वाक्य के समानाधिकरण उपवाक्यों में चार प्रकार का संबंध पाया जाता है—संयोजक, विभाजक, विरोधदर्शक और परिणामबोधक। यह संबंध बहुधा समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्ययों के द्वारा सूचित होता है; जैसे,

(१) संयोजक―मैं आगे बढ़ गया, और वह पीछे रह गया। विद्या से ज्ञान बढता है, विचार-शक्ति प्राप्त होती है और मान मिलता है। पेड़ के जीवन का आधार केवल पानी ही नहीं है, बरन कई और पदार्थ भी हैं।

(२) विभाजक―मेरा भाई यहाँ आवेगा या मैं ही उसके पास जाऊँगा। उन्हें न नींद आती थी, न भूख-प्यास लगती थी। अब तू या छूट ही जायगा, नहीं तो कुत्तों-गिद्धो का भक्षण बनेगा।

(३) विरोधदर्शक―ये लोग नये बसनेवालों से सदैव लड़ा करते थे; परन्तु धीरे-धीरे जंगल-पहाड़ों में भगा दिये गये। कामनाओं के प्रबल हो जाने से आदमी दुराचार नहीं करते, किन्तु अंतः- करण के निर्बल हो जाने से वे वैसा करते हैं।

(४) परिणामबेाधक―शाहजहाँ इस बेगम को बहुत चाहत। था; इसलिए उसे इस रौजे के बनाने की बड़ी रुचि हुई। मुझे उन लेागों का भेद लेना था; सौ मैं वहाँ ठहरकर उनकी बातें सुनने लगा।

७२३―कभी-कभी समानाधिकरण उपवाक्य बिना ही समुच्चय- बेधक के जोड़ दिये जाते हैं; अथवा जोड़े से आनेवाले अव्ययों में से किसी एक का लोप हो जाता है; जैसे, नौकर तो क्या, उनके लाला भी जन्म-भर यह बात न भूलेंगे। मेरे भक्तों पर भीड़ पड़ी