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आठवाँ अध्याय।

विराम-चिह्न।

७३५―शब्दों और वाक्यों का परस्पर संबंध बताने तथा किसी विषय को भिन्न-भिन्न भागों में बाँटने और पढ़ने में ठहरने के लिए, लेखों में जिन चिह्नों का उपयोग किया जाता है, उन्हें विरामचिन्ह कहतें हैं।

[टी०―विराम-चिह्नों का विवेचन अँगरेजी भाषा के अधिकाश व्याकरणों का विषय है और हिंदी में यह वहीं से लिया गया है। हमारी भाषा में इस प्रणाली का प्रचार अब इतना बढ़ गया है कि इसका ग्रहण करने में कोई सोच-विचार हो ही नहीं सकता; पर यह प्रश्न अवश्य उत्पन्न हो सकता है कि विराम-चिह्न शुद्ध व्याकरण का विषय है या भाषा-रचना का? यथार्थ में यह विषय भाषा-रचना का है, क्योकि लेखक वा वक्ता अपने विचार स्पष्टता से प्रकट करने के लिए जिस प्रकार अभ्यास और अध्ययन के द्वारा शुद्धों के अनेकार्थ, विचारों का सबंध, विषय-विभाग, आशय की स्पष्टता, लाघव और विस्तार, आदि बाते जान लेता है (जो व्याकरण के नियमों से नहीं जानी जा सकतीं), उसी प्रकार लेखक को इन विराम-चिह्नों का उपयोग केवल भाषा के व्यवहार ही से ज्ञात हो सकता है। व्याकरण से इन विराम चिह्नो का केवल इतना ही सबंध है कि इनके नियम बहुधा वाक्य-पृथक्करण पर स्थापित किये गये हैं, परन्तु अधिकाश में इनका पयाग वाक्य के अर्थ पर ही अचल बिन हो। विराम-चिह्नों के उपयेाग से, भाषा के व्यवहार से सबंध रखनेवाला कोई सिद्धात भी उत्पन्न नहीं होता, इसलिये इन्हे व्याकरण का अङ्ग मानने में बाधा होती है। यथार्थ में व्याकरण से इन चिह्नों को केवल गोण से बध है; परन्तु इनकी उपयोगिता के कारण व्याकरण में इन्हे स्थान दिया जाता है। तो भी इस बात का स्मरण रखना चाहिये कि कई-एक चिह्नों के उपयोग में बड़ा मतभेद है, और जिस नियमशीलता से अँगरेजी में इन चिह्नों का उपयोग होता है वह हि दी में आवश्यक नहीं समझी जाती।]

७३६―मुख्य विराम-चिह्न ये हैं―

(१) अल्प-विराम,

(२) अर्द्ध-विराम;