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(१) ठेठ हिंदी शब्दों के अंत में जो अनुस्वार आता है उसका उच्चारण अनुनासिक होता है; जैसे, मैं, में, गेहूं, जू ; क्यों ।

(२) पुरुष अथवा वचन के विकार के कारण आनेवाले अनुस्वार का उच्चारण अनुनासिक होता है; जैसे, करूंं, लड़कों,लड़कियां, हूं, हैं, इत्यादि ।

(३) दीर्घ स्वर के पश्चात् आनेवाला अनुस्वार अनुनासिक के समान बोला जाता है; जैसे, आंख, पॉच, ईधन, ऊंट, सांभर,सौंपना, इत्यादि । ।

५० ( क )-लिखने में बहुधा अनुनासिक अ, आ, उ और ऊ मे ही चंद्र-बिंदु का प्रयोग किया जाता है, क्योंकि इनके कारण अक्षर के ऊपरी भाग में कोई मात्रा नहीं लगती; जैसे, अँधेरा, हँसना,ऑख, दॉत, उँचाई, कुंदरू, ऊँट, करू, इत्यादि । जब इ और ए अकेले आते हैं, तब उनमें चंद्र-बिंदु और जब व्यंजन मे मिलते हैं तब चंद्र-बिंदु के बदले अनुस्वार ही लगाया जाता है; जैसे,इंदारा, सिंचाई, संज्ञाएँ, ढेकी, इत्यादि ।

[ सूचना-जहां उच्चारण में भ्रम होने की संभावना हो वहाँ अनुस्वार और चंद्र-बिंदु पृथक् पृथक् लिखे जाय; जैसे अंधेर ( अन्धेर ), अंधेरा, इत्यादि । ] ।

५१–विसर्ग (:) कंठ्य वर्ण है। इसके उच्चारण में ह्, के उच्चारण को एक झटका सा देकर श्वास को मुंह से एक दम छोड़ते हैं। अनुस्वार वा अनुनासिक के समान विसर्ग का उच्चारण भी किसी स्वर के पश्चात्ता होता है। यह हकार की अपेक्षा कुछ धीमा बोला जाता है; जैसे, दुःख, अंतःकरण, छिः हः, इत्यादि

[ सूचना--किसी किसी वैयाकरण के मतानुसार विसर्ग का उच्चारण केवल हृदय में होता है और मुख के अवयवों से उसका कोई संबंध नहीं रहता। ]

५२-संयुक्त व्यंजन के पूर्व ह्रस्व स्वर का उच्चारण कुछ झटके के साथ होता है, जिससे दोनों व्यंजनों का उच्चारण स्पष्ट हो जाता