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है, जैसे, सत्य, अड्डा, पत्थर, इत्यादि । हिंदी में म्ह, न्ह, आदि का उच्चारण इसके विरुद्ध होता है; जैसे, तुम्हारा, उन्हें, कुल्हाड़ी,सह्यो ।

५३—दो महाप्राण व्यंजनों का उच्चारण एक साथ नहीं हो सकती, इसलिए उनके संयोग में पूर्व वर्ण अल्पप्राण ही रहता है, जैसे, रक्खा, अच्छा, पत्थर, इत्यादि।

५४-उर्दू के प्रभाव से ज और फ का एक एक और उच्चारण होता है। ज का दूसरा उच्चारण दंत-तालव्य और फ का दंतोष्ठ्य है। इन उच्चारणों के लिए अक्षरों के नीचे एक एक बिंदी लगाते हैं, जैसे, फुरसत, जरूरत, इत्यादि । ज और फ़ से अंगरेजी के भी कुछ अक्षरों का उच्चारण प्रकट होता है, जैसे, फीस, स्वेज, इत्यादि ।

५५–हिंदी में ज्ञ का उच्चारण बहुधा 'ग्य' के सदृश होता है। महाराष्ट्र लोग इसका उच्चारण ‘द्नय् के समान करते हैं। पर इसका शुद्ध उच्चारण प्रायः ‘ज्यँ' के समान है।


चौथा अध्याय

स्वराघात

५६-शब्दों के उच्चारण मे अक्षरों पर जो जोर (धक्का) लगता है उसे स्वराघात कहते हैं । हिदी मे अपूर्णाचरित अ (४० वाँ अंक ) जिस अक्षर में आता है उसके पूर्ववर्ती अक्षर के स्वर का उच्चारण कुछ लंबा होता है, जैसे 'घर' शब्द में अत्य ' अ ' का उच्चारण अपूर्ण है, इसलिए उसके पूर्ववर्ती 'घ' के स्वर का उच्चारण कुछ झटके के साथ करना पड़ता है। इसी तरह संयुक्त व्यंजन के पहले के अक्षर पर (५२ वॉ अंक ) जोर पड़ता है,