पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/१०९

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खोदनी ११८५ खोर करना । जैसे, मोहर खोदना । ४.गली छड़ी आदि से छूना महा.--घी खोपड़ी का, पौंधी खोपड़ी का=नासमझ । मुखं । .. या दवाना । जंगली या छड़ी आदि से हिलाना डुलाना। खोपड़ी खा जाना बहुत बात करके दिक करना । खोपड़ी गड़ाना । जैसे,—(क) उसे खोदकर जगा दो। (ख) वह खुजलाना=(१) कोई ऐसी बात या शरारत करना. जिससे : लड़का उसके गाल में खोदकर भागता हैं । लकड़ी थोड़ा खोद मार खाने की नौबत आवे । मार खाने को जी चाहना। दो; याग जलने लगेगी। छेड़छाड़ करना । छेड़ना। जैसे,-तुम न मानोगे, तुम्हारी खोपड़ी खुजला रही है। मुहा०-खोद खोदकर पूछना=एक एक बात पर शंका करके (२) सिर पर जूता मारना । खोपड़ी गंजी होना=मार खाते . ' पूछना । अच्छी तरह पूछना। खाते सिर के बाल झड़ जाना । सिर पर खूब जूते पड़ना। .. ६. उत्तेजित करना । उसकाना । उभाड़ना। खोपड़ी गंजी करना=मारते मारते सिर के बाल न रहने. . . खोदनी-संघा स्त्री० [हिं० खोदना] खोदने का छोटा प्रौजार । देना । सिर पर खूब जूते लगाना । खोपड़ी चटकना=अधिक : यौ०-फनखोदनी=कान से खोदकर मैल निकालने की सींक धूप, प्यास या पीड़ा के कारण सिर में गर्मी और चक्कर' : या कील । दातखोदनी-दांत से खोदकर मैल निकालने की मालूम होना ! सिर टनकना । खोपड़ी चाट जाना-बकवाद : सींक या कील । करके तंग करना। खोद विनोदा-संणा पुं० [हिं० खोद+बिनोद (अनु०)] बहुत अधिक खोपरा-संशा पुं० [सं० खर्पर] दे० 'खोपड़ा। छानवीन । जांच पड़ताल । पूछ ताछ। छेड़छाड़। खोपरी.. संज्ञा स्त्री० [हिं० दे० 'खोपड़ी। उ०..-फटो खोपरी गुद, खोदवाना-कि० स० [हिं० खोदना का प्रे० रूप] खोदने में लगाना। फैलंत पिंडी। मनी माथ मारग्ग फूटी दहिंडी 1-रसर, खोदने का काम करवाना । पृ०२२७॥ खोदाई - संज्ञा स्त्री० [हिं० खोदना] १. खोदने का काम । २. खोदने खोपा-संक्षा पुं० [सं० ख पर,हिं० खोपड़ा] १. छप्पर का कोना । २... की मजदूरी । ३. कड़ी वस्तु पर पिसी नोकदार वस्तु से अंक, मकान का कोना जो किसी रास्ते की पोर पड़े । ३.केश-. चिह्न, वेलबूटे' प्रादि बनाने का काम ! जैसे,-शाहजहाँपुर में विन्यास में वह तिकोनी वनावट जो ठीक ब्रह्मरंध्र पर पड़ती है। इसके सिरे का कोना मांग से मिला रहता है और ठीक ', लकड़ी पर खोदाई अच्छी होती है। इसी के आधार पर जूड़ा बांधा जाता है । ४. जूड़ा बंधी : खोना-क्रि० स०सं० क्षेपण, प्रा० खेवरण सं क्षी काप्रे क्षप] हुई बेरपी । उ.-सरवर तीर पदमिनी पाई। खोपा छोरि .. १.अपने पास की वस्तु को निकल जाने देना । व्यर्थ फेंक केस बिखराई। जायसी (शब्द०)। ५. गरी का गोला। देना। गंवाना । जैसे,... उसने अपनी पुस्तक खो दी। २. भूल खोवा--संज्ञा पुं॰ [देश॰] गच या पलस्तर पीटने की थापी। से किसी वस्तु को कहीं छोड़ पाना । ३. खराव करना। खोभना-कि० स० [सं० क्षोभण] गड़ाना । धसाना। . बिगाड़ना । नष्ट करना । खोभरना-क्रि० अ० [हिं० खोमना] १. पाड़ा पड़ना । २.. . संयो० कि०-देना। -डालना । वीच में पड़ना। खोना-कि० अ० पास की वस्तु का निकल जाना । किसी वस्तु का खोभरना--क्रि० स० [हिं०] समथल न रहने देना । खोदना । कहीं भूल से छूट जाना। खोभराना--'क्र० अ० [हिं०] दे० 'खु भराना'.। संयो॰ कि o जाना। खोभार-संज्ञा पुं० [प्रा० खोम-+-पार (प्रत्य॰)] १. गड्ढा जिसमें : विशेष-संयोज्य क्रिया के साथ ही यह क्रिया प्रकर्मक भावयाच्य कूड़ा करकट फेंका जाय । २. सुपरों को बदं करने की रूप में आती है, अकेले नहीं। झोपड़ी । ३. कोई तंग स्थान या कोठरी । . महा०-खोया जाना चकपका जाना । सिटपिटा जाना का खोम' -संहा पु० [सं० कोम] समह । झड । उ०-सिवाजी की बका होना । धवराना । खोया खोया रहना=किसी विचार घाक, मिले खल कुल खाक बसे खलन के खेरन खवीसन के ... या चिता में डूब जाना । सुध बुध न रहना। खोम हैं,।-भूपण (शब्द०)। . खोनचा-संज्ञा पुं० [फा० एवान्चा] १.एक बड़ी परात या थाल तोमर--संज्ञा पुं० [सं० क्षोम] किले का वुज।-(डि.)। . जिसमें मिठाई या और खाने पीने की वस्तुए भरी रहती हैं। खोम---संज्ञा पुं० [सं० क्षोम] ऐसा कार्य जो अहित कर हो। . वह थाल जिसमें रखकर फेरीवाले मिठाई प्रादि बेचते हैं। खोया--संशा श्री॰ [फा०] आदत । बान । स्वभाव । मुहा०-खोन्वा लगाना=बेचने के लिये खोनचे में मिठाई क्रि०.३०--पड़ना। सजाना था रखना। खोया --संथा पुं० [सं० क्षुद्र या देश ०] १. अांच पर चढ़ाकर इतना . खोपड़ा-- संठा पुं० [सं० खपर] [नो खोपड़ी] १. सिर की हड्डी। गाढ़ा किया हुआ दूध कि उसकी पिडी बांध सकें । मावा।" कपाल। २. सिर । ३. गरी का गोला। गरी । ४.नारियल। खोवा । २.ईट पाथने का गारा। . ५. भिक्षुकों का खप्पर जिसमें वे भीख लेते है। बहुधा यही . खोया--क्रि० स० [हिं० खोना क्रिया का भूतकालिक रूप] गुम, -- भक्षका का खप्पर जिसमव भाख लत हा बहुधा यहा . . . गायब या बिगड़ा हुआ। दरियाई नारियल का प्राधा टुकड़ा होता है। ६. गाड़ी में वह शोर'-संज्ञा स्त्री०हि खर] १ बस्तियों की तंग गली। संकरी गली। मोटी लकड़ी जो दोनों पहियों के बीच में धुरों से मिली होती है। कूचा । २. नांद, जिसमे चौपायों को चारा दिया जाता है।. खोपड़ी-संशा स्त्री० [हिं० खोपड़ा] १. सिर की हड्डी। कपाल । खोर-संशा पुं॰ [देश॰] बबूल की जाति का एक ऊंचा सुदर पेड़। .. २.सिर।। वि-- गिध के रेगिस्तानों में होता है । इसकी लकड़ी -