पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/१३०

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गगनानंग गजंदः मनानंग-प्रभा पुं० [सं० ना नान ] पवीस मात्रानों एक बनाने में इसका उपयोग बहुत होता है। इस मसाले से मूर्तियाँ . मात्रिक छंद। .. खिलौने आदि भी बहुत अच्छे बनते हैं। विशेष—इसके प्रत्येक चरण में सोलहवीं मात्रा पर वियाम होता गचकारी मंशाको हि० गच+फा० कारी] गर पीटने का काम। . है और प्रारंभ में रगण होता है। इस छंद में विशेषता यह है चूने, सुरखी का काम ।।. .. कि प्रत्येक चरण में पांच गुरु और पंद्रह लय होते हैं। किसी गचगर संज्ञा पुं० [हिं० गच+फा० गर-बनानेवाला ] वह कारी- .. किसी के मत से बारह मात्राओं के बाद भी यति होती है। गर जो नच बनाता हो। गच पीटनेवाला । थबई। जैसे-माधः परम वेद निधि देवक, अतुर हरंत तू। पावन - घरम सेतु कर पूरण, सजन गहनतू। दानव हरण हरि सुजग गचगीरीg==संज्ञा स्त्री० [हिं० गव+फा० गौरी] चुने, सुरखी का संतन, काज करत तू। देवहु कस न नीति कर मोहि कह, पक्का काम । गचकारी। उ०=कायर का घर फूस का मान धरत तू। भभकी 'चहू पछीत । सूरा के कछु डर नहीं गचगीरी की भीत। - गगनापगा-मंशा ही० [सं०] आकाशगंगा। =कबीर (शब्द०)। .. गगनेचर'--संज्ञा पुं० सं०] १.ग्रह । नक्षत्र । २. पनी । ३. देवता। गचना -क्रि० स० [अनु० गच ] १. बहुत अधिक या कसकर ४. बाबु । ५. राक्षस । दैत्य । दानव । ६. वारण । इपु। ७. चंद्र। भरना।ळूसकर भरना । उ०=तीनों लोक रचना रचत हैं ... गगनेचर' वि० अाकाश में चलनेवाला। आकाशचारी। विरंच यासों अचल खजानी जानी राख्यो गुण गत्रि के !== गगनोल्मुक-संवा पुं० [सं०] मंगल ग्रह । । " गोपाल (शब्द॰) । २. दे० 'गाँसना'। . ... गगरा--संज्ञा पुं० [सं० गर्गर=दही मथने का वर्तन] [स्त्री० अल्पा गचपच संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'गिचपिच' । गगरी] पीतल, तांबे, कांसे आदि का बना हुआ बड़ा घड़ा। हुआ बड़ा घड़ा। गचाका संज्ञा पुं० [हिं० गच्च से अनु० ] गच से गिरने या लगने कलता। का शब्द। । गगरिया -मंडी० [हिं०] दे० 'गगरी'। गचाका' संज्ञा श्री० [हिं० गच से अनु.] जवान औरत । जवानी . गगरी संज्ञा श्री- [सं० गर्गरी= दही मथने की हाँडी] ताँबे, पीतल, से भरी स्त्री (बाजारू)। - मिट्टी आदि का छोटा धड़ा। कलसी । उ०-नीके देहु न मोरी गगरी। जमुना दह गडी फटकारी फोरी समिर की गचाका=कि० वि० भरपुर । गच्चा-संशा ग्री० (हिं०) १. धोखा । २. बेइज्जती। उ०=नारी अस गगरी ।—सूर (शब्द०)। गाल-संज्ञा पुं० [मं०] साँप का जहर । सर्पविष (को०)। जाति पर बल का प्रयोग करके गच्चा खा चुका था। गगली-संशा पुं० देश अगर की एक जाति । गोदान, पृ ३७ । . . गगोरी- गर्ग एक छोटा कीडा जो पृथ्वी के अंदर गच्छ-संथा पुं० [सं०] १. पेड़। गाछ। २. साधनों का मठ विल बनाकर रहता है। (जैन) ३. वे साधु जो एक ही गुरु के शिष्य हों (जैन)। ..च- संज्ञा पुं० [अनु०] १. किसी नरम वस्तु मैं किसी कड़ी या पंनी गच्छना =क्रि० सं० (सं०/गम् गच्छ=जाना, प्रा० गच्छ) - वस्तु के बसने का शब्द । जैसे,—ग से छुरी धंस गई। जाना। चलना । 30%=(क) पच्छ बिन गच्छत प्रतच्छ यो०-गचागच-बार वार घंसने का शब्द।। .... अंतरिच्छन में अच्छ अवलच्छ कला कच्छन न कच्छे हैं। २. चने, पुरखी ग्रादि के मेल से बना या मसाला. जिसमें जमीन पद्माकर न पृ० २०५। (ख) कहै पदमाकर निपच्छन .. . पक्की की जाती है । उ०---जातरूप मनिरचित अटारी। -. के पच्छ हित पच्छि तजि लच्छि तजि गच्छिबो करत हैं। . नाना रंग रुचिर गच ढारी।—तुलसी (शब्द०)। ३ चूने पद्माफर पं०, पृ० ३४३ ।. . सुरखी आदि से पिटी हुई मौन । पर्वका फर्श । लेट । उ०- गछना -निट स० [सं०..गच्छ जाना]. चलना । जाना। महि बहुरंग रुधिर गच कांचा । जो विलोकि मुनिवर रुचि गछना-शि० स०, चलाना । निवारना । उ०---अवधि अधार न रांचा ।- तुलसी (शब्द०)। होती जीवन को गछतो। व्यास (शब्द०)। क्रि०प्र०-पीटना। राछना=क्रि० सं० (सं० ग्रन्थन, हि गाँछना) १. अपने जिम्मे लेना। यो०-गंचकारी। . अपने ऊपर लेना। २. बहुत बनाव चुनाव से बात करना। ४. पक्की छत । ५. संग जराहत या सिलखड़ी फूककर बनाया गछ गछकर बातें करना । ३. गूचना । ग्रंयन करना । हुया चूना, जिसे अंगरेजी में प्लास्टर ऑफ पैरिसं कहते हैं। गछेवाजी-संज्ञा स्त्री० [हिं०.गठना+फा बाजी] वनाय चुनाव की -१०-दीवारों पर गच के फलपत्तों का सादा काम अबरख की बातें। शेखी। उ०-इस तरह कई दिनों तक गछेवाजियाँ '. चमक से चांदी के डले की तरह चमक रहा था ।-श्रीनिवास हुआ की ।-रंगभूमि, पृ० ५६६ । । ग्रं०, पृ०१७८। . गजेंद : संज्ञा पुं० [स गजेन्द्र, प्रा० गयंद, गई है. गजेंद्र। विशेष-यह पत्थर राजपूताने और दक्षिण (चिग़लपेट, नेलोर 30--मन गजंद नान फरि सीकरि पकरि के जेर भरावै।-- प्रादि) में बहुत होता है। राजपूताने में खिड़की की जालियाँ गुलाल०, पृ०४।।..:...'