पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/१५८

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गरदन घुमाव १२३५ होना। (दूसरे की) गरवन पर जुवा रखना=भारी काम गरदर्प-संज्ञा पुं० [सं०] सर्प । साप। भुजंग।-अनेक (पाब्द०)।" सुपुर्द करना। गरदन पर बोझ होना- (१) खलना । दुरा गरदा --संचा पुं० [फा० गर्द] धूल । गुबार । मिट्टी। खाक । गर्द। लगना । कष्टकर प्रतीत होना । (२) भार होना । सिर पड़ना। क्रि० प्र०-उड़ना।--उड़ाना ।-फेंकना ।-डालना। गरदन पर सवार होना=दे सिर पर सवार होना' । गरदन गरदान--वि० [फा०] घूम फिरकर एक ही स्थान पर आनेवाला। . फैसना-(9) अधिकार में आना । वश में होना । काबू में गरदान -संज्ञा पुं. वह कबूतर जो घूम फिरकर सदा अपने स्थान पर, होना । (२) जोखों में पड़ना। गरदन मरोड़ना=(१) गला पाता हो। दबाना । मार डालना । (२) पीड़ित करना । कष्ट पहुँचाना। गरदान संञ्चाबी०१. व्याकरण में कारकों या लकारों की प्राद्यंत गरदन मारना सिर काटना । मार डालना। गरदन में हाथ पुनरावृत्ति । २. शब्दों की रूपसाधना । ३..कुनि की यावृत्ति देना या डालना=(१) अपमान करना। बेइज्जती करना। या उद्धरणी। (२) कहीं से निकाल बाहर करने के लिये गरदन पकड़ना। गरदानना-फ्रि० स० [फा० गरदान] १. पाब्दों का रूप साधना! :: गरदनियाँ देना । गरदन हिलने लगना=बहुत वृद्ध होना। २. वार बार कहना । उद्धरणी करना। ३. गिनना। समझना . २.वह लंबी लकडी जो जुलाहों की लपेट के दोनों सिरों पर गाड़ी मानना। जैसे...-वे अपने प्रागे किसी को कुछ नहीं गरदानते। साली जाती है। साल । ३. बरतन आदि का ऊपरी संयो० कि०-डालना।-देना।-लेना। पतला भाग। गरदिशव--संज्ञा स्त्री [फा० गदिश दे० 'गदिश। यौ०-गरदनजनी मार डालना । कत्ल करना । गरदनवंद गले । में पहनने का एक प्रकार का प्राभूषण जिसे गुलूवंद कहते हैं। । " गरदुपा-संक्षा पुं० [हिं० गरदन] एक प्रकार का ज्वर जो वर्षा के .' गरदन घुमाव--संज्ञा पुं० [हिं० गरदन+घुमाना] कुश्ती का एक पंच । आरंभ में बहुत अधिक भीगने के कारण पशुओं को हो। जाता है। विशेष-इसमें खेलाड़ी अपने जोड़ का दाहिना या बाँया हाथ पकड़कर अपनी गरदन चढ़ाता और उसे सामने की ओर विशेष-इसमें उसके सब अंग जकड़ जाते हैं और उसके गले में पटक देता है। घरघराहट होने लगती है। इसे कहीं कहीं गरदुहा, घरदा या . गरदन तोड़-संधा पुं० [हिं० गरदन+तोड़ना] कुश्ती का एक दांव। . धुरफा भी कहते हैं। विशेष--इसमें जोड़ की गरदन पर दोनों हाथों की उगलियों को गरधरन -संज्ञा पुं० [सं० गर/ >धरण-रखनेवाला] १.विप . गाँठकर ऐसा झटका देते हैं कि वह झुक जाता है और कुछ धारण करनेवाले, शिव । महादेव । अधिक जोर करने पर वेकाम होकर गिर जाता है। गरध्वज-- संज्ञा पुं० [सं०] अभ्रक । यौ०--गरदनतोड़ बुखार= एक प्रकार का सांघातिक ज्वर । गरना -क्रि० अ० [हिं० गलना[ १.दे० 'गलना' । उ०--इम . नीर महिं गरि जाइ लवनं एकमेंकहि जानिए ।---सुदर ग्रं, गरदन बाँध-संशा पुं० [हिं० गरदन+वाँधना] कुश्ती का एक पेंच । विशेष-इसमें जोड़ की गरदन से दोनों हाथ उसकी वगल में से भा० १, पृ० ५५। २.दे० 'गड़ना'। उ~-उहाँ ज्वाल जरि . जात, दया ग्लानि गरे गात, सूखे सकुचात सब कहत पुकार ले जाकर अंदर उसकी छाती पर बाँधते और उसके सिर को हैं।-तुलसी (शब्द०)। वगल में दवाकर पैर से झट से गिरा देते हैं। गरना-क्रि० अ० [हिं० गारना अथवा सं०/गुगर १. गारा गरदना-संशा पुं० [हिं० गरदन] १. मोटी गरदन । गरदन । २. जाना । निचोड़ा जाना। २. किसी चीज में से किसी पदार्थ वह घील या झटका जो गरदन पर लगे। क्रि० प्र०-जडना ।-देना ।—लगाना । का वूद वूद होकर गिरना । निचुड़ना । टपकना । उ०%- मुहा०-गरदन सही या रसीद करना=गरदन पर धौल लगना । चुवक लोहड़ा औटा खोवा । भा हलमा घिउ गरत निचोवा । —जायसी (शब्द०)। ३.गरदन पर का मांस ।-(कसाई)। गरदनियाँ-संज्ञा यौ० [हिं० गरदन+इयाँ (प्रत्य॰)] (किसी को गरनाल-संशा स्त्री० [हिं० गर+नली] एक बहत चौड़े मुह की तोप . . किसी स्थान से ) गरदन पकड़कर या गरदन में हाथ डालकर जिसमें प्रादमी चला जा सकता है । घननाल। घननाद। .. निकालने की क्रिया । अर्द्धचंद्र। गरप्रिय-संज्ञा पुं० [सं०] महादेव । शिव ।। क्रि० प्र०-देना।-खाना:-मिलना। गरब"-संज्ञा पुं० [सं० गर्व हाथी का मद । उ०-गरव गयंदन गगन । गरदनी-संज्ञा स्त्री॰ [हिं० गरदन + ई (प्रत्य॰)] १.अंगे या कुरते . पसीजा । रुहिर चुवै धरती सब भीजा ।- जायसी (शब्द०)। आदि का गला। गरेवान । २.एक आभूपण जो गले में गरब@f-संघा पुं० [सं० गर्व] ३० गई। • पहना जाता है । हँसुली। ३.अर्द्धचंद्र । गरदनियाँ। ४.घस्सा यौ०-गरवगहेला। गरबगहेली। गरबप्रहारी-गर्व का नाश . जो पहलवान एक दूसरे की गरदन पर लगाते हैं। रद्दा। करनेवाले । उ०---गरबोलन के गरबिनि ढाहै। गरवाहारी कुंदा । ५. वह कपड़ा जो घोड़े की गरदन से वांधा ओर पीठ बिरद. निवाहै ।-लाल (शब्द०)। . . . . पर डाला जाता है। ६. कारनिस । कॅगना। गरबई@f-संज्ञा सी० [सं० गर्व हिं० ई (प्रत्य॰)] गर्व या अभिमान मि०प्र०-लगाना। का भाव । उ०-अली गई अव गरबइ इकताई मुकुताइ । भली ७.कुषती का एक पंच। . . भई ही अमलई जौंपी दई दिखाई।-, सत० (शब्द०)।