पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२१८

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गुधाई १२६५ गुच्छ करियश गुधाई-संशा नो [हिं० गूधना] १. गूधने या माड़ने की क्रिया या में गुग्गुल वीर्यजनक, बलकारक, टूटी हड्डी जोड़नेवाला, भाव । २. गूधने वा माड़ने की मजदूरी । ३. गूधने की क्रिया स्वरशोधक तथा वातव्याधि और कोढ़ को दूर करनेवाला या भाव । ४. गूधने या गूधने की मजदूरी । जैसे,—चोटी । माना जाता है । राजनिघंटु में गुग्गुल के रस के अनुसार पांच गुधाई। भेद किए हैं। प्रयोगामृत में गुग्गुल की परीक्षाविधि इस गुधावट-संक्षा स्रो० [हिं० गूधना] १. गूधने या गूथने की क्रिया । प्रकार लिखी है, जो ग्राग में गिरने से जल जाय, गरमी ___ गूथने या गू"धने का ढंग । पाकर पिघल जाय, और गरम जल में डालने से धुल जाय गुना संज्ञा पुं० [सं० गुवाक] १. एक प्रकार की सुपारी । चिकनी यह गुग्गुल उत्तम होता है। प्रीपध में नया गुग्गुल काम में सुपारी । उ०--गुमा सुपारी जायफर सब फर फरे अपूर । लाना चाहिए, पुराना नहीं। खाने के लिये गुग्गुल प्रायः आस पास घन इँविली अउ पन तार खजूर ।-जायसी शोधकर काम में लाया जाता है। इसे कई प्रकार से शोधते। (शब्द०)। २. सुपारी। उ०-घोंटा कुकर्म गुणा पुनि पूग हैं । कोई गिलोय या त्रिफला के काढ़े अथवा दूध में पकाते हैं | सुपारी जाहि ।--नंददास (शब्द०) । कोई दशमूल के गरम काढ़े में डालकर उसे छान लेते हैं और गुप्रार--संशा स्त्री० [सं० गोराणी] ग्वार। फिर धुप में सुखा देते हैं। गुपारपाठा--संघा पुं० [हिं० ग्वारपाठा] दे० 'ग्वारपाठा' । पर्या-कालनिर्यास । महिपाक्ष । पलंका। जटापु । कोसिरु। गुमारि-संज्ञा स्त्री० [हिं० ग्वार दे० 'वार'। । देवधूप । शिवपुर । कुन। उलूखलक । सर्वसह। उप । कुंतो।। गुनारो-संवा स्रो० [हिं० ग्वार दे० 'रवार'। पनतिष्ट पुट । वायुन्न । क्षगंधक। गुमालिन--संज्ञा खी० [हिं० ग्वार) दे० 'ग्वार। २.एक बड़ा पेड़ जो दक्षिण में कोंकण प्रादि प्रदेशों में होता है। .' गुइयाँ'-संञ्चा बौ० पुं० [हिं० गोहन = साय ] १.तेल का साथी । विशेप-इसके पत्ते जब तक नए रहते हैं प्याजी रंग के दिवाई । २ सखा । मित्र । संघाती। ३. सखी। राहचरी । उ०- पड़ते हैं। पच्छिमी पाट के पहाड़ों पर इन पेड़ों की बड़ी । तुम्हारे धन्य भाग जो तुम्हारे पास सबसे छुपके मैं जो शोभा दिखाई पड़ती है। इनमें से एक प्रकार की राल पा इनकी लड़कपन की गुइया हूँ मुझे अपने साथ ले के प्राई गोंद निकलता है जो दक्षिण का काला डामर कहलाता है। हैं ।- अयोध्या० (शब्द०)। दे० 'गोइयाँ' । - यह राल वारनिश बनाने के काम में विशेष पाती है। गुई-संज्ञा स्त्री० [हिं० गुइयाँ] दे० 'गुइयाँ' । उ०--नहीं गुई, इसमें पेड़ को राल धूप और मंद धूप भी कहते हैं। बड़ा भेद है, उसे सुनोगी तो छाती में छेद हो जायगा।- ३. सलई का पेड़ जिससे राल या धूप निकलती है। श्यामा०, पृ०५२। गुग्गुलक-संशा पुं० [सं०] दे० 'गुग्गुल' । . गुखरू---संज्ञा पुं० [हिं० गोखरू] दे० 'गोखरू'। .. गुग्गुलु-संश पुं० [सं०] ३० 'गुग्गुल'। .. गुच--संथा पुं० [हिं०] डाड़ीदार भेड़। गुगरल--संज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार की वत्राख। गुगानी- संज्ञा सी० [देश॰] पानी के ऊपर की हलको हिलोर जो विशेष यह भेड़ पंजाब में पाई जाती है। थोड़ी हवा के कारण उठती है । खलभली ।(लश०)। गुची-संथा श्री० [सं० गुच्छ] सो पानों की गड्डी। आधी ढोली। गुच्चो'-संशा स्त्री॰ [अनु०] भूमि में बना हुआ बहुत छोटा गड्डा । गुगलिया-संक्षा पुं० [अनु॰] बंदर नचानेवाला । मदारी । जिसे लड़के गोली या गुल्ली डंडा तेलते समय बनाते हैं। गुग्गुर---संज्ञा पुं० [सं० गुन्गुल दे० 'गुग्गुल'।. गुच्ची- वि० बहुत छोटी । नन्ही । जैसे,—गुच्ची आंख (शब्द०)। गुग्गुल-संश पुं० [सं०] एक कांटेदार पेड़। गुच्चीपारा-मंशा पुं० [हिं० गुच्ची-गड्दा+पारना=डालना) एक । विशेष- यह सिंध, काठियावाड़, राजपूताना, खानदेश प्रादि में खेल जिसमें लड़के एक छोटा सा गड्ढा बनाकर उसमें कीडिया होता है। इस पेड़ के छिलके को जाड़े के दिनों में स्थान या गोलियाँ फेकते हैं। स्थान पर छील देते हैं जिससे उन स्थानों से कुछ हरापन गुच्छ-संश पुं० [सं०] १. गुच्छा । २. एक में बंधे या लगे हुए फूला लिए भूरे रंग का गोंद निकलता है। यही गोंद बाजार में का समूह 1 ३. घास की जूरी। गुग्गुल के नाम से बिकता है। यह पेड़ वास्तव में मरुभूमि यो०-गुच्छदंतिका । गुच्छपत्र । गुच्छपुष्प । गुच्छफल । गुच्छ । का है इससे अरब और अफ्रीका में इसकी बहुत सी जातियां मूलिका । गुच्छाधं । होती हैं। बलसा और बोल (मुर) नाम के गोंद जो मक्का ३ वह पौधा जिसमें दृढ़ कांड या पेड़ी न हो, केवल पत्तियाँ या और अफ्रीका से पाते हैं पश्चिमी गुग्गुल ही से निकलते हैं । पतली लचीली टहनियां फैलें। झाड़ । जैसे,--धान्यमल्लिका इनमें से करम या वदर करम. उत्तर और मीटिया या आदि । ४. बत्तीस लड़ी का हार । ५. मोती का हार । ६. । चिनाई बोल मध्यम होता है। भारतवर्ष में गुग्गुल की चलान . . मोर की पूछ। . . विशेषकर अमरावती से होती है। बंबई में इसे गारे में भी गुच्छक-संक्षा पुं० [सं०] दे० 'गुच्छ' । . ... मिलाते हैं जो दर्जबंदी के काम में पाता है। गुग्गुल को चंदन गुच्छकरिश-संशा पुं० [म०] एक प्रकार का अन्न । रागी धान इत्यादि के साथ मिलाकर सुगंध के लिये जलाते हैं । वैद्यक . [को०] ।