पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२३३

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गुरुच खाप . गुरुत्वाकर्षण.. . इसकी पत्तियाँ पान के प्राकार को गोल गोल होती हैं। गुरुतोमर-संक्षा पुं० [सं०] एक छंद जो तोमर छेद के अंत में दो इसकी गांठों में से जटाएं निकलती हैं जो बढ़कर जड़ पकड़ मात्राएं रख देने से बन जाता है। जैसे-तल और प्रसेन ..., लेती हैं। गुरुच दो प्रकार की देखने में आती है। एक में पुकारि के। लरते भये धनु धारि के। फल नहीं लगते । दूसरी में गुच्छों में मकोय की तरह के फूल, गुम्त्व-संज्ञा पुं० [सं०] १. भारीपन । वजन । बोझ । फल लगते हैं और उसके पत्ते कुछ छोटे होते हैं । गुल्च के विशेप-पदार्थ विज्ञान के अनुसार पदार्थों का गुरुत्व वास्तव में डंठल का आयुर्वेदिक औषधियों में बहुत प्रयोग होता है। उस वेग वा शक्ति की मात्रा है जिससे वह पृथ्वी की आकर्षण वैद्यक में गुरुच तिक्त, उपण, मलरोधक, अग्निदीपक तथा .. शक्ति द्वारा नीचे की ओर जाता है । वेग की इस मात्रा में , ज्वर, दाह, वमन कोढ़ आदि को दूर करनेवाली मानी जाती उस अंतर का भी विचार कर लिया जाता है जो अक्ष पर है। नीम पर की गुरुच दवा के लिये अच्छी मानी जाती है। घूमती हुई पृथ्वी के उस वेग के कारण पड़ता है जिससे वह ... .. “इसे कूटकर इसका सत भी बनाते हैं । ज्वर में इसका काढ़ा । पदार्थों को (केंद्र से बाहर हटाती है। अतः आकर्षण वेग . बहुत दिया जाता है। की मात्रा समुद्रतल और क्रांति वृत्त पर ३८५.१ और ध्रुव पर्या. गडची । अन्तवल्ली । कुडली। मधुपर्णी। सोमवल्ली। पर ३८७.१ इंच प्रति सेकंड होती है। यह गुरुत्व वेग समुद्र- - : विशल्या । तंत्री। निर्जरा । वत्तादनी । छिन्नल्हा। अमृता । तल पर की अपेक्षा पहाड़ों पर कुछ कम होता है, अर्थात् जीवतिका । उद्धारा। वरा। ज्वरारि। श्यामा । चकांगी। उसमें प्रति. दो मील की ऊंचाई पर सहन्नांश की कमी होती ...... , मधुपरिणका । रसायनो । छिन्ना। निषक्प्रिया । चंद्रहासा। जाती है। किसी पदार्थ का वजन जितना क्रांतिवृत्त पर तौलने .: नागकुमारिका । छया। से होगा उससे ध्रुब पर उसे ले जाकर तौलने से वा गुन्च खाप--संज्ञा पुं० दिश०] बढ़इयों का रंदै की तरह का एक भाग अधिक रहेगा ।वैशेपिक सूत्र में रूप, रस प्रादि केवल औजार जिससे लकड़ी गोल की जाती है। १७ गुण बतलाए हैं पर प्रशस्तपाद भाग्य में गुरुत्व, द्रवत्व आदि ६ गुण और बतलाए हैं । गुरुत्व को मूर्त और सामान्य __ . गुरुचर्या -संज्ञा स्त्री० [सं०] गुरु की सेवा [को० । गुन्चांदी-वि० सं० गुरुचान्द्रीय] गुरु.और चंद्रमाकृत । जो गुरु.और गुण माना है, अर्थात् ऐसा गुण जो पृथ्वी, जल, वायु आदि स्थूल या मूर्त द्रव्यों में पाया जाता है तथा जो अनेक ऐसे द्रव्यों चंद्रमा के योग से होता हो (ज्योतिप)। ... विशेप-ज्योतिप में वृहस्पति और नंद्रमा का कर्कराशि में होना में रहता है। प्राचीन नैयायिक केवल जल और मिट्टी में ही ही गुरुचांद्री योग कहलाता है। जिसकी जन्मकुंडली में यह गुरुत्व मानते थे। उनके मत से तेज, वायु आदि में गुरुत्व नहीं । सांच्य मतवाले गुरुत्व को तमोगुण का धर्म मानते हैं, - योग लग्न या दशम स्थान में पड़ता है वह दीर्घजीवी और 'सत्व या रजोगुण में गुरुत्व नहीं मानते। आजकल की ..... भाग्यवान होता है।.. परीक्षाओं द्वारा वायु प्रादि का गुरुत्व यच्छी तरह सिद्ध हों गुरुज -संज्ञा पुं॰ [फा० गुर्ज ] दे० 'गुर्ज' । उ० -तीसर खड़ग गया है। फूड पर लावा। काँध गुरुज हुत घाव न पावा 1-जायसी ... २. महत्त्व । वड़प्पन । ३. गुरु का काम। (शब्द०)। गुरुत्वकेंद्र-संज्ञा पुं० [सं० गुरुत्वकेन्द्र] पदार्थ विज्ञान में पदार्थों के बीच गुरुजन-संशा पुं० [सं०] बड़े लोग । माता पिता, प्राचार्य आदि । वह विंदु जिसपर यदि उस पदार्थ का सारा विस्तार सिमटकर - गुरुडम--संज्ञा पुं० [सं० गुरु+अं० डम (प्रत्य॰)] गुरुनाई का या जाय तो मी गुरुत्वाकर्षण में कुछ अंतर न पड़े। किसी पदार्थ में वह विंदु जिसपर समस्त वस्तु का भार एकत्र -- गुरुतल्प-संज्ञा पुं० [सं०] १. विमाता से गमन करनेवाला पुरुप । हुअा और कार्य करता हुअा मान सकते हैं। विशेप-मनु ने ऐसे पुरूप को महापातकी लिखा है और उसके विशेप-इस गुरुत्वकेंद्र का पता कई रीतियों से लग सकता है।

... लिये यही प्रायश्चित्त या दंड लिखा है कि वह या तो लोहे वृत्ताकार या गोल वस्तुओं का केंद्र ही गुरुत्वकेंद्र होता है।

के जलते हुए बरतन में सोकर या लोहे की जलती हुई स्त्री का पर बेडौल या विस्तार की वस्तुओं में गुरुत्वकेंद्र वह होता है आलिंगन करके मर जाए। जिसे किसी नौकपर टिकाने से वह पदार्थ ठीक ठीक तुल जाय, २. गुरु की शया (पत्नी) (को०)। इधर उधर झुका न रहे। प्रत्येकतराजू या तुला में इस प्रकार का गुरुत्वकेंद्र होता है। गुरुतल्पग--संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'गरुतल्प' । 'गुरुत्वलंव-संज्ञा पुं० [सं० गुम्त्वलम्ब] वह रेखा जो किसी पदार्थ के गुरुतल्पी-संवा पुं० [सं० गुरुतल्पिन] दे० 'गुरुतल्प' [को०] । गुरुत्वकेंद्र से नीचे की ओर खींची जाय। . गुरुता-संज्ञा स्त्री० [सं०] १. गुरुत्व । भारीपन। २. महत्व । वड़प्पन। गुरुत्वाकरण-संज्ञा पुं॰ [सं०] वह आकर्षण जिसके द्वारा भारी वस्तुएँ - ३. गुरुपन । गुरु का कर्तव्यं । गुल्याई। पृथ्वी पर गिरती हैं। . . . - गुरुताई--संज्ञा स्त्री० [सं० गुरुता+ई (प्रत्य॰)] दे० 'गुरुता' । विशेप-इस पाकर्षण शक्ति का थोडा बहत पता भास्कराना गुरुताल-संज्ञा पुं० [सं०] संगीत का एक ताल [को०] । को १२०० संवत् में लगा या। उन्होंने अपने सिद्धांत - ३-२८ -