पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२३४

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गुरुदक्षिणा १३११ गुर्गनाशनाई शिरोमरिण में स्पष्ट लिखा है-'आकृष्टशक्तिश्च मही तया गुरुवति, गुरुवर्तिता---संज्ञा स्त्री० [सं०] गुरु या गुरुजन के प्रति ... यत् खस्थं गुरुस्वाभिमुखं स्वशक्त्या । प्राकृष्यते तत्पततीव भाति, ' संमानपूर्ण पाचरण। समे समंतात् क्व पतत्वियं खे।' अर्थात् पृथ्वी में पाकर्षण गुरुरत्न-संथा पुं० [सं०] १. पोखराज नाम का रत्न । २. गोमेद नाम : शक्ति है इसी से वह आकाशस्थ (निराधार) भारी पदार्थों का रत्न । को अपनी ओर खींचती है; जो पदार्थ गिरते हैं वे पृथ्वी के गुरुवर्णोधन-संशा पुं० [सं०] चूना [को०] ! . . आकर्पण से ही गिरते हैं । योरप में गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत गुरुवर्ती -संचा पुं० [सं० गुरुतिन्] वह ब्रह्मचारी जो गुरु के यहाँ । का पता सन् १६५७ ई० में न्यूटन को लगा। उसने अपने बगीचे निवास करता हो को। " में पेड़ से फल नीचे गिरते देखा । उसने सोचा कि यह फल गुरुवार-संपा पुं० [सं०] वृहस्पति का दिन । वृहस्पति । बीफै। . . जो ऊपर या अगल बगल की ओर न जाकर नीचे की ओर । सप्ताह का पांचयाँ दिन । गिरा उसका कारण पृथ्वी की पाकर्षण शक्ति है। इस विशेपवृहस्पति जो देवतानों के गुरु थे. इसी से गुरु शब्द से आकर्षण की विशेषता है कि यह उत्पन्न और नष्ट नहीं वृहस्पति का ग्रहण होता है। किया जा सकता और न कोई व्यवधान बीच में पड़ने से गुरुवासर-संशा पुं० गुरुवार । बीफं। , उसमें कुछ रुकावट या अंतर डालता है। गुरुवासी-शा पुं० [सं० गुरुवासिन्] मुरुगृह में रहनेवाला शिप्प। गुरुदक्षिणा-संञ्चा स्त्री० [सं०] विद्या पढ़ने पर जो दक्षिणा गुरु को दी अंतेवासी को। जाय। प्राचार्य को दी जानेवाली मेंट। गुरुवृत्तिः संज्ञा स्त्री० [सं०] १. शिष्य का गुरु के प्रति कवंत्र्य । २.. • विशेष-जव लोग'गुरु के पास विद्या पढ़ने जाते थे तब घर आने गुरुमाई [को०)। के समय गरु को वहीं दक्षिणा देते थे जो गुरु मांगें और गुरु गरुव्यथ---वि० [सं०] अत्यधिक दुःची [को०] का भरपूर संतोप कर स्नातक की पदवी पाकर गृहस्थ होते थे। गरुशिखरो-संवा पुं० [सं० गुरुशिखरिन्] हिमालय (को०)। ... गुरुदैवत-संशा पुं० [सं०] पुष्य नक्षत्र । गुरुथ ति–संशश श्री० [सं०] मंत्रस्वरूपा गायत्री [को०] । गुरुद्वारा--संज्ञा पुं० [सं० गुवं+द्वार] १. गुरु का स्यान । प्राचार्य या गरुसमत्थ-वि०सं०] कौटिल्य अर्थशास्त्र में कथित (राष्ट्र या राजा) - गुरु के रहने की जगह । २. सिखों का मंदिर या मठ । जो लड़ाई के लिये बड़ी मुश्किल से तैयार हो। गुरुपत्र, गुरुपत्रक-संशा पुं० [सं०] वंग धातु या रांगा फिो०। गुरुसिंह-संश पुं० [सं०] एक पर्व जो उस समय लगता है जब गुरुपत्रा-संद्या स्त्री [सं०] इमली का पेड़ (को०)। . बृहस्पति सिंह राशि पर पाता है। उ.--सुनो प्रभात महातम गुरुपाक-वि० [सं०] जो ठीक से न पच सके । देर से पचनेवाला [को०) राजा । अथ कह हरत पुन्य कर ताजा । गोदावरि गुरुसिंह गुरुपुष्य---संज्ञा पुं० [सं०] बृहस्पति के दिन पुष्य नक्षत्र के पड़ने का नहाई। कुंभ माहि हरि क्षेत्र सुहाई।---गि दा० (शब्द०)। योग । ज्योतिश में यह एक अच्छा योग माना जाता है। विशेप-इस पर्व में नासिक क्षेत्र की यात्रा और गोदावरी . . गुरुपूर्णिमा- संथा सी० [सं०] आषाढ़ मास की पूणिमा जिस दिन नदी का स्नान पुण्य समझा जाता है।

- गुरु की पूजा होती है [को०।

. .: गुरुस्व--संज्ञा पुं० [सं०] गुरु की संपत्ति को०] । गुरुवला-संशा श्री० [सं०] संकीणं राग का एक भेद । गरू-संज्ञा पुं० [सं० गुरु] 1 गुरु । अध्यापक । प्राचाय । ..... . गुरुबिनी~-संवा 'पुं० सं० गुर्विणी] दे० 'गुविरणी'। 'यो०--गुरुघंटाल-(१) बड़ा भारी चालाक । अत्यंत चतुर। गुरुभ-संज्ञा पुं० [सं०] १. पुष्य नक्षत्र। २. मीन राशि। ३. धन राशि। (२) धतं । चालवाज। ... गुरुभाई-संवा पुं० [सं० गुरु+हि० भाई]. दो या दो से अधिक ऐसे । पुरुप जिनमें से प्रत्येक का गुरु वही हो जो दूसरे का । एक ही। गुरेट-संशा पुं० [हिं० गुर, गुड़ =वेट] चार पांच हाथ के डंडे में ' - । लगा हुआ एक प्रकार का बेलन जिससे कड़ाह में पकवा हुमा गुरु के शिष्य । " गुरुभाव-संज्ञा पुं० [सं०] १. महत्व । बड़प्पन । २. भार (को०)। .... ईख का रस चलाया जाता है। गोता . [ सं गह: बड़ा+हेरना ताकना-] प्रवि गुरुमंत्र--संज्ञा पुं० [सं० गुरुमन्त्र] गुरु का दिया हुमा मंत्र [को०)। गुंरुमर्दल-संज्ञा पुं॰ [सं०] एक प्रकार का ढोल या नगाड़ा.(को॰) । फाड़कर देखना । घूरना। गुरुमुख-वि० [सं० : गुरु + मुख] दीक्षित ! जिसने गुरु. से मंत्र यौ.--गुरेरा गुरेरो= एक दूसरे को क्रोध से देखना । ..... लिया हो। . .. . गुरेरा--संवा पुं० [हिं० गुलेला] ३. 'गुलेला' । उ०---वेई गड़ि गाई क्रि. प्र.- करना होता . ... ..... पूरी उपटयौ हार हिये न । मान्यौ मोरि मतंग मनु मारि गुरुमुखी-संज्ञा स्त्री० [सं० गुरमुखी] गुरु नानक की चलाई हुई एक गुरैरनि मैन । -विहारी (शब्द०)। .. . प्रकार का लिपि.. . :: .: गुर्ग-संथा पुं० [फा०] भेडिया। . . . . .......... विशेष--यह पंजाब में प्रचलित है और देवनागरी का परिवर्तित गर्गप्राशनाई---संथा सी० [फा०] कपटपूर्ण मित्रता । ऊपर से मिलता रूप मात्र है। __ भीतर से छल। सिंह .