पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२५३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गंगला ग गंती'-संहा मौः [देश॰] एक प्रकार का छोटा वृक्ष । कोई हलके पीले रंग के होते हैं, कोई नारंगी रंग के होते . विशेप-यह. अवध में छोटी छोटी नदियों और सोतों के किनारे हैं। एक लाल रंग का गंदा भी होता है जिसकी डंठले तथा नेपाल की तराई में अधिकता से पाया जाता है। इतकी कालापन लिए लाल होती हैं और फूल भी उसी मखमली _. . . पत्तियाँ चार पाँच अगुल लंबी और प्रायः इतनी ही चौड़ी रंग के लगते हैं । दे की सुखाई हुई पंखड़ियों को फिटकिरी - . होती हैं। गरमी के प्रारंभ में इसमें हरापन लिए हुए पोले के साथ पानी में उबालने से गंधकी रंग बनता है। रंग के छोटे छोटे फूलों के गुच्छे भी लगते हैं। २. एक प्रकार की आतिशवाजी जिसमें गेंदे के फूल की आकृति E. गेंती --संज्ञा स्त्री० [हिं०] कुदाल । के गुल निकलते हैं। ३. सोने या चांदी का सुपारी के आकार गेंद-संज्ञा पुं॰ [सं० गेन्दुक, कन्दुक ] १. कपड़े, रवर या चमड़े का का एक धुघल्दार गहना जो जोशन या बाजू में घुडी के E . गोला जिससे लड़के खेलते हैं 1 कंदुक । उ०-लागे खेलन गेंद स्थान पर होता है और नीचे लटकता रहता है। - . कन्हाई। बढ़े विटप शिशु मारिसिधाई।-विश्राम (शब्द०)। गेंदुक संज्ञा पुं० [सं०गेन्दुक गेंद । पादुक । उ०—सारी कंचकि ....... क्रि० प्र०-उछालना ।-खेलना ।--फेंकना ।—मारना । केसर टीको । करि सिंगार सब फूलनि ही को। कर राजत योगेंदघर । गेंदतड़ी। गेंदवल्ला । गॅदुकि नौलासी । छुटि दामिनि सी ईपद हाँसी।-सूर(शब्द०)। 2 २. कालिव जिसपर रखकर टोपी बनाते हैं। कलबूत। ३. गैंदुरी-संज्ञा पुं० [हिं० गेदुर] दे० 'गादुर'। उ०--कटहल लीची ...रोशनी करने की एक वस्तु जिसमें तार की जालियों से बने ग्राम चूक गेंदुर से कंपित। ग्राम्या, पृ०६८ । हुए एक गोले के अंदर रोशनी जलती है। गेदुवा-संचा पुं० [सं० एडुक] गेड़ा । उसीसा । तकिया। गोल गेंदई-वि० [हिं० गेंदा] गेंदे के फूल के रंग का। पीले रंग का । तकिया । उ०-गुलगुली गोल मखतूल को सौ गेंदुप्रा गई न = गेंदई-सुथा पुं॰ गेंदे के फूल के समान पीला रंग। गुड़ी जी मैं जऊ करत ढिठाई सी।-देव (शब्द०)। गेंदघर-संज्ञा पुं० [हिं० मेंद+घर] १. वह स्थान जहाँ लोग क्रिकेट, गेंदोड़िया-संज्ञा ली देश॰] वैश्यों की एक जाति । - टेनिस आदि खेल खेलते और आमोद प्रमोद करते हैं। क्लब गेंदौरा--संश पुं० [हिं० गेंद+ौरा (प्रत्य॰)] एक मिठाई। चीनी घर । २. वह मकान जिसनें अंगरेज विलियर्ड नामक खेल की रोटी । खाँड़ की रोटी। दे० 'गिदौड़ा। खेलते हैं । विनियर्ड रूम। विशेष-चीनी की चाशनी को गाढ़ा करते करते गुधे हुए पाटे गेंदतड़ी-संज्ञा स्त्री० [हिं० गेंद+तडातड़ ] लड़कों का एक खेल की तरह कर डालते हैं और तव उसकी पाव या प्राध प्राध ....जिसमें वे एक दूसरे को गेंद मारते हैं। जिसे गेंद लगता है, सेर की लोइयाँ (पड़े) बनाकर कपड़े पर फैला देते हैं और .. . वह चोर होता है। उन लोइयों पर दबाकर उगलियों के चिह्न बना देते हैं। ये ...गंदना -संज्ञा पुं. हि गेंदा] गेंदा । एक प्रकार का फूल । उ०- लोइयाँ विवाह आदि उत्सवों पर विरादरी में बैने के रूप

फूल गेंदना एक नवल मेलत मृदु मुसुकाइ।–१० सप्तक०, में बांटी जाती हैं।

. . : पृ० ३५२। गेंनयु:--संज्ञा पुं० [हिं० गन ] दे० 'गन' । उ०- बजे उक्क डौल .... गदवल्ला--संधा पुं० [हिं० गॅद+बल्ला गॅद और उसे मारने की उमंक कडक्के । धक पेरु धुज्जे हके गॅन हक्क ।-पृ० रा०, लकड़ी। २. वह खेल जिसमें लकड़ी की एक पटरी से गेंद १। ३६०। मारते हैं। गे -क्रि० प्र० [हिं० गा का वहु० २०] दे॰ 'गया' । उ०-भजि गदरा मारना--क्रि० स० [हिं० मेंद] लंगर डाले हुए जहाज का हवा और भ्रत्त छंडे रिनह गे राज विजपाल तहाँ।-पृ० रा०,११ ..' या लहर के कारण इधर उधर हो जाना |--(लश०) गेमान -संचा पुं० [सं० ज्ञान ] दे॰ 'ज्ञान' । उ०--ग्रनहद गरजे गदवा-संक्षा पुं० [सं० गेण्ड्ड क] तकिया। उसीता। सिरहाना।। उ०-प्रेम क पलंगा दियो है विछाय। सुरति के गेंदवा दिए अमी रस झरै उपजे ब्रह्म गाना |--रामानंद०, पृ० ३२ । ढरफाय ।—कबीर (शब्द०)। गेगम--संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एक धारीदार या चारखाना कपड़ा। । गंदवा -संज्ञा पुं० [हिं० गेंद] दे० 'गेंद' । उ०—मोहिनि एक जो गया। साकिया -... सुंदर शरीरा। फूल के गेंदवा खेलहि तीरा।-सं० दरिया, मेगला'-संज्ञा पुं० [देश॰] मसूर की जाति का एक प्रकार का जंगली पौधा । गदा-संज्ञा पुं० [हिं०] १. दो ढाई हाथ ऊँचा एक पौधा जिसमें विशेष--यह पंजाब से वंगाल तक ६००० फुट की ऊँचाई तक . पीले रंग के फूल लगते हैं। होता है। यह प्रायः आप ही पाप होता है पर कभी कभी 2.', विशंप--इसमें लंबी पतली पत्तियां सीके के दोनों ओर पंक्तियों चार के लिये वोया भी जाता है। इसके दाने काले रंग के में लगती हैं। यह दो प्रकार का देखने में आता है, एक जंगली होते हैं और प्रायः गेहूँ में मिले हुए दे जाते हैं । गेहूँ के खेत ... या टिर्स जिसके फल चार ही पांच दल के होते हैं और बीच . में उत्पन्न होकर यह फसल को कुछ हानि भी पहुंचाता है। .... का केसरगुच्छ दिखाई पड़ता है और दूसरा हजारा जिसमें गेगला--वि०दिश०] १. मूर्ख । जड़। बेवकफ । भोंद । .. यह दल होते हैं। फलों के रंगों में भी भिन्नता होती है, अनसुनी कर जानेवाला । दीठ।