पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२६१

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गोकुलोद्भवा -गोईंड-संश पुं० [सं० गोष्ठ-ग्राम] १. गाँव की सीमा। गाँव का २. इस स्थान में स्थापित शिवमूर्ति का नाम । ३. नीलगाय । ४. . घेरा । २. गांव के पास की जमीन । ३. आस पास का स्थान । खच्चर । ५. [स्त्री० गोकर्णा] एक प्रकार का साँप जिसके, गोइंडा-संवा मुं० [हिं० गोइड़] दे० 'गोइड'। कान होते है । ६. बालिश्त । वित्ता ! ७. काश्मीर देश के एक . गोईद- संज्ञा पुं० [सं० प्रा० गोविन्द] दे० 'गोविंद' । उ०-हरि प्राचीन राजा का नाम । ८. शिव के एक गण का नाम । ६. दर्शन परसे भया आनंद । नानक सर्व सखा गोइंद । -प्राण, धंधकारी के भाई का नाम जिससे भागवत सुनकर धुधकारी ...पृ०.२२५ ।' . तर गया या । १०. एक मुनि का नाम । ११. गाय का कान । गोइंदा--संज्ञा पुं० [फा० गोइदह ] वह मनुष्य जो छिपे छिपे किसी १२. नृत्य में एक प्रकार का हस्तक । १३. एक प्रकार का '... बात का भेद लेने के लिये किसी के द्वारा नियत हो। गुप्त बाण (को०)। . .. ..भेदिया । गुप्तचर । गुप्त रूप से समाचार पहुंचानेवाला। गोकर्ण-वि० [सं०] जिसके गऊ.के से लंबे कान हों। गोड़ा-संज्ञा पुं० [हिं०. गोय] दे० 'गोय' । गोकर्णी-संथा सी० [सं०] एक प्रकार की लता। मुरहरी। गोइन--संक्षा सं० [?] एक प्रकार का मृग । उ०-हिरन रोक चुरनहार। लगना वन बसे । चीतर गोइन झाँख और ससे । —जायसी विशेष--इसकी पत्तियाँ घीकुमार की तरह चिकनी और मोटी . होती हैं और इसमें छोटे मीठे फल लगते हैं। गोइनका-संश०. [देश॰] मारवाड़ी वैश्यों की एक जाति । गोकल -संघा पुं० [सं० गोकुल दे० 'गोकुल' उ०—ब्रह्म कहै सुर . गोइयां--संज्ञा पुं० खी- [हिं० गोहनिगाँ] साथ में रहनेवाला। साथी। . सकल सों, गोकल हरि अवतार ।-पृ० रा०, २८१ .. सहचर । उ०---रामलखन एक और भरत रिपुदवनलाल एक गोकिराटा. गोकिराटिक----चा सी० [सं०] सारिका पक्षी [को०] । और भए । सरजुतीर सन सुखद भूमि थल गनि गनि गोइयाँ गोकिल-संञ्चा पुं० [सं०] १. हल । २. मूसल [को०] । बाटि लए ।--तुलसी (शब्द०)। गोकील-संज्ञा पुं० [सं०] १. हल । २. मूसल । गोकुजर-संज्ञा पुं० [सं० गोकुञ्जर] १. खूब मोटा ताजा और वलिष्टं गोइयार-संशा पुं० [देश॰] बाकी रंग का एक छोटा पक्षो। वैली सांड़ । १.शिव जी का नंदी गण । गोइलवाला-संश पुं० [देश०] वैश्यों की एक जाति ! गोकूद-० [देश॰] एक प्रकार की मछली जो दक्षिण की गोड़ी-संबा सी[हिं० गोइयाँ] दे० 'गोइयाँ' । उ०--सुनि निरुचे नंदियों में पाई जाती है। .. नहर की. गोई । गरे लागि पदमावत रोई । —जायसी गोकुल-संञ्चा पुं० [सं०] १. गौनों का झुंड । गोसमूह । २. गौओं के - रहने की जगह गोशाला, खरिक आदि । ३. एक प्राचीन गाँव । - . गोई-वि० [हिं० जोई] बैलों की जोड़ी । उ०-पतली पेंडुली विशेष—यह वर्तमान मथुरा से पूर्व दक्षिण की ओर प्रायः तीन .: मोटी रन । पूछ होय भइ में तरियान । जाके हो ऐसी कोस दूर जमुना के दूसरे पार था और इसे अाजकल महावन - गोई। वाको तक और सब कोई :-याध०, पृ० १०५। कहते हैं। श्रीकृष्णचंद्र ने अपनी बाल्यावस्या यही विताई थी। . गांऊ-वि० [हिं० गोना+ज (प्रत्य॰)] चुरानेवाला । छिपानेवाला। आजकल जिस स्थान को गोकुल कहते है वह नवीन और इससे - हरण करनेवाला । 30---श्याम बनी अव जोरी नीकी सुनहु भिन्न है। ...: सखी मान तौऊ हैं। सूर श्याम जितने रंग काउत युवती जन गोकुलनाथ-संक्षा पुं० [सं०] थोकृष्ण । .. मन के गोऊ हैं।—सूर (शब्द०)। गोकुलपति--संक्षा पुं० [सं०] श्रीकृष्ण । - किटक--संज्ञा पुं० [सं० गोकराटक] १.गोक्षर । गोखरू । २. गाय गोकुलराय -संचा पुं० [सं० प्रा० गोकुल+हि. राय नंद । उ०- का खुर (को०)। ३.गाय के खर का निशान (को०)। ४. वह गोकुलराय की पोरि रच्यो है हिंडोरना। नंद ग्र०. ...... मार्ग जो वैलों के चलने के कारण जाने लायक न रह गया पृ० ३७४ । हो (को०)। गोकुलस्थ - वि० [सं०] १. गोकुलनिवासी । जो गोकुल ग्राम में गोकन्या--संघा पी० [सं०] कामधेनु । उ०-सुनि वशिष्ठ हिय हर्पित _मनिवशिष्ट नियापित रह रहता हो। २. गायों के समूह या वाड़े में स्थित (को०)। भयऊ । दोउ मिलि गोकन्या ढिंग गयऊ ।--विश्राम (शब्द०)। गोकुलस्थ-संज्ञा पुं० [सं०] १. वल्लभी गोस्वामियों का एक भेद । गोकर--संज्ञा पुं० [सं०] सूर्य। भानु । रवि 130---प्रगत गिरा २.तैलंग ब्राह्मणों का एक भेद । पद्याकर कवि इसी वंश के थे। गिरि ईश गरि गौरी गिरिधारन । गोकर गायत्री सुगोधरन तिय गोहारन ।-सूदन (शब्द०)। गोकुलाधिपति---संधा पुं० [सं०] नंद । उ०-यापु याके प्रभु गोकुला- गोकरन@--संशा पुं० [सं० गोकर्ण] दे० 'गोकर्ण' । उ०-गोकरन धिपति कहावत हो।--दो सौ० वावन०, भा० १, पृ० २५१ । गइ ले जानिए जी--कवीर रे०, पृ० ४४। । गोकुलिक-वि० [सं०] १. कीचड़ में फैली हुई गाय की सहायता न - गोण'--संज्ञा पुं० [सं०] हिंदुओं का एक शव क्षेत्र जो मालावार करनेवाला । २. ऐंचाताना। भंगा (को०] । में है। राणा, दूभयारण आदि ने वहीं पर तप किया था। गोकुलाद्भवा - संज्ञा ली० [सं०] दुर्गा का नाम (को०