पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२६४

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गौजीव १३४१ गोठिल गोजीव-संज्ञा पुं० [सं०] गोपाल ।' वाला को। - गोटी--संज्ञा स्त्री० [ मे० गुटिका ] १. कंकड़, गेरू, पत्यार इत्यादि का गोकनवट --संज्ञा पुं० [देश॰] स्त्रियों की साड़ी का वह भाग जो सिर छोटा गोल टुकड़ा जिससे लड़के अनेक प्रकार के खेल खेलते पर रहता है। अंचल । पल्ला। हैं । २. हाथीदाँत, हड्डी, लकड़ी इत्यादि का बना हुआ चौपड़ गोझा-संक्षा ० [सं० गुहयक] [खी० अल्पा० गोझिया, गुझिया] खेलने का मोहरा । नग्द । १. गुझिया नामक पक्वान्न जो मैदे में चूरमा या मेवा प्रादि विशेष-ये गोलियां गिनती में कुल १६ होती हैं जिनमें से .. भरकर बनता है। उ०—(क) गोझा बहुपूरग पूरे । भरि ___४ लाल, ४ हरे, ४ पीले और ४ काले रंग की रहती हैं। भरि कपूर रस चूरे |--- सूर (शब्द॰) । (ख) भए जीव विन मुहा०--गोटी जमना या बैठना=खेल के प्रारंभ में पो आदि नाउत प्रोझा । विप भइ पूरि काल भए गोझा ।-जायसी दाँव पड़ने पर नई गोटी का चलने योग्य बनना । गोटी (शब्द०)। २. लकड़ी की कील जो काठ के सामान में सरेस मरना-खेल के मध्य में पीछे से दूसरे खिलाड़ी की किसी लगाकार ठोंकी या र्धेसाई जाती है और जिसका वाहर निकला नई गोटी के उस स्थान पर मा जाने के कारण पहलेवाली हुमा भाग पारी से काटकर लकड़ी की सतह के बराबर कर गोटी का अपने स्थान से हटाकर खेल से अलग कर दिया दिया जाता है। गुज्झा। बसकीला। ३. एक प्रकार की जाना। गोटी बैठना-एक ही घर में एक खिलाड़ी की केंटीली घास । गुज्झा । ४. जेव । खीसा । खलीता। दो गोटियों का एक साथ रखा जाना। इस दिशा में पीछे से गोट'-संशा सी० [सं० गोष्टी] १. वह पट्टी या फीता जिसे किसी मानेवाली गोटियों का मार्ग रुक जाता है और वह उस समय । कपड़े के किनारे खूबसूरती के लिये लगाते हैं। मगजी । २. तक यागे नहीं बढ़ सकती जबतक कि दोनों गोटियाँ अलंग - किसी प्रकार का किनारा। अलग घरों में न चल जायें। इस प्रकार बैठी हुई गोटियाँ . क्रि० प्र०-चढाना ।- टाँकना । —लगाना । मारी भी नहीं जा सकतीं। गोटी मारना-खेल में किसी . गोटर-संज्ञा पुं० [सं० गोष्ठ] गाँव । खेड़ा। टोली। गोटी का चलने योग्य न रहना । किसी गोटी के खाने में - गोट-संज्ञा स्त्री [सं० गोष्ठी] १.मंडली। गोष्ठी । २.वह सैर जो विपक्षी की गोटी का पा जाना जिससे पहली गोटी खाने से ।। नगर के बाहर किसी बाग या उपवन आदि में हो और जिसमें हटा दी जाती है। गोटो मारना=चाल द्वारा किसी खाने । खाने पीने, विशेषतः कच्ची रसोई प्रादि, का प्रबंध हो। से कोई गोटी हटाकर अपनी गोटी बैठाना । विपक्षी की गोट-संशा गरौ [हिं० गोटी] दे० 'गोटी'। गोटी को बेकाम करना। गोटी लाल होना = लोभ होना। गोट - संज्ञा श्री. [सं० गुटिका] चौपड़ का मोहरा । नरद ! गोटी। प्राप्ति होना। गोट-मंज्ञा पुं० [हिं० गोल] तोप का गोला। उ०—जिन्ह के गोट ३. एक खेल जो ६,१५, १८ या इससे अधिक गोटियों से कोट पर जाहीं। जेहि ताकहिं चूकहिं तेहि नाहीं । जायसी भूमि पर एक दूसरी को काटती हुई ग्राडी और सीधी रेखाएं : (शब्द०)। बनाकर सेला जाता है। गोटबस्ती- संशा स्त्री० [हिं० गोटवस्ती ] वह भूमि जिसपर गाँव यौ०-- गोटिया चाल दाँव पेंच की चाल । कुटिल नीति । वसा हो। ४. उपाय । युक्ति । तदवीर । लाभ का आयोजन । प्राप्ति का गोटा-संधा पुं० [हिं० गोट] १. सुनहले या रुपहले, बादले का बुना डोल । आमदनी की सूरत । जैसे,-वहाँ २००) की गोटी है, . हुआ पतला फीता जो प्रायः सुदरता के लिये कपड़े के किनारे । वे क्यों न जाएंगे। पर लगाया जाता है। मुहा०-गोटी जमना या बैठना युक्ति चलना । उपाय या युक्ति... यो०-गोटा पट्ठा । . सफल होना। प्राप्ति का डौल होना। आमदनी की सूरत ।। २.धनियाँ की सादी या भूनी हुई गिरी । ३., छोटे छोटे टुकड़ों होना। गोटी वैठाना या जमाना = युक्ति लगाना । तदवीर । में कतरी और एक में मिली हुई इलायची, सुपारी और लड़ाना। जैसे,--उन्होंने अपनी गोटी बैठा ली है, अब वहाँ । किसी की दालन गलेगी। खरबूजे तथा बादाम की गिरी । ४.सूखा हुमा मल । कंडी। गोटू-मंचा श्री [देश०] एक प्रकार की घटिया चिकनी सुपारी।। सुद्दा । ५. गुटिका । उ०--मंगल गोटा सुखि फलै मरकट । गोठ-संञ्चा सी० [सं० गोष्ठ] १. गोशाला। गोस्थान । उ०--जे अध मुगदन जान । रज्जब०, पृ० १२ । - गोटा--संज्ञा पुं० [सं० गुटिका] १. चौपड़ का मोहरा । गोट । मातु पिता सुत मारे । गाइ गोठ महिसुरपुर जारे। तुलसी गोटी । उ०-पलक भूधगिनि तेहि पर लोटा । हिय घर एक गोणी-संधा श्री० [सं० गोष्ठ] सखी । साथिन । सहला। (शब्द०)। २. गोष्ठी श्राद्ध । ३. सैर सपाटा। वि० दे० 'गोट'। खेल दुइ गोटा ।—जायसी (शब्द०)। २. तोप का गोला । .. उ०-ौ जो छुटहिं ब्रज कर गोटा । बिसरहिं भुगुति होइ । - मारू म्हाजी गोढणी, सै मारू दा सैर ।-ढीला दू०४३८ । सब रोटा ।—जायसी (शब्द॰) । ३. जटा । अलक । तट । गोठिठु-संज्ञा स्त्री० [हिं० गोठ] दे० 'गोठ'। उ---जहें हुई गोठि भोजन नरिद । तहहते सकल सामंत बद।-पृ० रा० गोटिका@-संशा खी० [सं० गुटिका है 'गुटिका' । उ०—सिद्ध ६१०९।

गोटिका जा पहें नाहीं। कीन धातु पूण्हु तेहि पाहीं।- गोठल+---वि० [सं० कुण्ठित ] जिसवी धार खराब हो गई हुई।

.... जायसी सं० (गुप्त), पृ० ३२१। . कुंठित । कुद।