पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२६७

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गोदा . - गोत्रपट : .. . विशेप-धर्मशास्त्रों के अनुसार गोत्रज दो प्रकार के होते हैं मुहा०—गोद पसारकर विनती करना या मांगनाम्-प्रत्यंत गोत्रज सपिंड और गोत्रज समानोदक ! सात पीढ़ी के अंदर अधीरता से मांगना या प्रार्थना करना । उ०-इह कन्या मैं.

जिसके एक ही पूर्वज हों वे गोत्रज सपिंड और सात से ऊपर स्याम को मांगों गोद पसारि--नंद ग्रं० पृ० १६४। गोद

. चौदह पीढ़ियों तक जिनके पूर्वज एक हों वे गोत्रज समानोदक भरना=(१) विवाह आदि शुभ अवसरों पर अथवा किसी कहलाते हैं। के आने जाने के समय सौभाग्यवती स्त्री के अंचरे में नारियल गोत्रपट-संवा पुं० [सं०] वंशवृक्ष [को०] । आदि पदार्थ देना जो शुभ समझा जाता है। (२) संतान .. गोत्रप्रवर्तक संशा पुं० [सं०] गोत्र चलानेवाला । गोत्रकार । गोत्रका होना । औलाद होना।

मूल पुरुप को।

गोद-संज्ञा पुं० [सं०] मस्तिष्क । दिमाग को०] 1. गोत्रभिद-संधा पुं० [सं०] पर्वतों का भेदन करनेवाला इंद्र (को०] | गोदगदालो--संवा देशन गूल नाम का पेड़।

गोत्रसूता-संवा स्त्री[सं०] पर्वत की पुत्री । पार्वती । उ०बदंत देव गोदनशीं- वि० [हिं० गोद-+-फा. नशीं (प्रत्य॰)] गोद लिया

- प्रदेव सर्व मुनि गोवसुता अरघंग धरी है। केशव (शब्द०)1 हुआ । दत्तक । गोत्रस्खलन-संज्ञा पुं० [सं०] १. किसी को गलत नाम से पुकारना। गोदनशोनो-संवा श्री० [हिं० गोद +फा. नशीनी (प्रत्य॰)] गोद २. किसी का नाम लेने में गलती करना [को॰] । लेने का कार्य । गोद लिया जाना। गोत्रा--संज्ञा स्त्री० [सं०] १. गायों का समूह । २. पृथ्वी [को०। गोदनहर--संडा बी० [हिं० गोदनहारी] दे० 'गोदनहारी'। - गोत्री- वि० [सं० गोविन्] समान गोत्रवाला । गोत्रज । गोतिया। गोदनहरा-संज्ञा पुं० [हिं० गोदना+हारा (प्रत्य॰] टीका लगाने- गोत्रीय-वि० [सं०] गोत्रवाला ! अमुक गोत्र का (को०] । वाला। माता छापनेवाला।

. गोत्रोच्चार-संबा पुं० [सं०] १. विवाह के समय वर वधु के गोत्र गोदनहारी-संज्ञा स्त्री० [हिं० गोदना+हारी (प्रत्य॰)] कंजड़ या

का दिया जानेवाला परिचय । २. (हास्य व्यंग्य में प्रयुक्त) नट जाति की स्त्री जो गोदना गोदने का काम करती है। .: किसी के पर्वजों तक को दी जानेवाली गालियां को गोदना-क्रि० स० [हिं० खोदना+गड़ाना] १. किसी नुकीली '. गोयरा-वि० [अनु० या हिं० गोठल ] मुंडी धारवाला । कुंद। चीज को भीतर चुभाना । गड़ाना। २. किसी कार्य के लिये गोथल-संग्रा पुं० [सं० गोस्थल] खरिक । गायों के बाँधने का स्थान । बार बार जोर देना । कोई काम करने के लिये वार धार जोर गोठ । उ०-गोकुल गोयल घोप ब्रज खरग कहत पुनि नाम । देना । कोई काम कराने के लिये पीछे पड़ना। ३. छेड़ छाड़ . अनेकार्थ, पृ० २६ । करना । चुभती या लगती हुई वात कहना । ताना देना। ४. .. गोदंती --वि० [सं० गोदन्त] कच्चा । सफेद । हाथी को अंकुस देना। ५. गोड़ना । ६. भद्दी लिखाई .. विशेष—इस अर्थ में यह विशेपण केवल हरताल के लिये आता है। लिखना।

गोदंती-वि० [सं० गोदन्त एकप्रकार की मरिण या वहमल्य पत्थर। गोदना-संक्षा पुं०.१. तिन के आकार का एक विशेष प्रकार का
“गोदंड-संधा पुं० [?] गुवरला। उ०-गोदंडा ज्यों मारग मागे काला चिह्न जो कंजड़ या नट जाति की स्त्रियाँ लोगों के

. पोज विलाए।-सुदर ग्रं॰, भा॰ २, पृ०८७५। शरीर में नील या कोयले के पानी में डूबी हुई सइयों से पाछ- .. गोद' संज्ञा पुं० [सं० फोड] १. वह स्थान जो वक्षस्थल के पास एक कर बनाती हैं। इसमें पहले दो एक रोज तक पीड़ा होती है ... या दोनों हाथों का घेरा बनाने से बनता है और जिसमें प्रायः पर पीछे वह चिह्न स्थायी हो जाता है। विशेष-भारत में अनेक जाति की स्त्रियाँ गाल, ठोड़ी, कलाई वालकों को लेते हैं। उत्संग । कोरा । ओली । उ०-व्यापक तथा अन्य अंगों पर सुंदरता के लिये इस प्रकार के चिह्न 'ब्रह्म निरंजन निर्गुन विगत विनोद । सो अज प्रेम भगति बस 'कोसल्या की गोद।-तुलसी (शब्द०)। वनवाती हैं। बिहार प्रांत की स्त्रियां तो अपने शरीर पर इस क्रि०प्र०--उठाना।—लेना। क्रिया से बेल बूटों तक के चिह्न बनवाती हैं। मुहा०-गोद का=(१) छोटा वालक । वच्चा । (२) बहुत क्रि० प्र०-गोदना ।--गोदाना। .. समीप का। पास का । जैसे-गोद की चीज छोड़कर इतनी २. वह सूई जिसकी सहायता से शीतला रोग से रक्षित रहने के लिये बालकों को टीका लगाते हैं। दूर जाना ठीक नहीं । गोद बैठना दत्तक बनना। गोद लेना दत्तक बनाना । गोद देना-अपने लड़के को दूसरे को क्रि० प्र०-लगाना। दत्तक बनाने के लिये देना। ३. वह औजार जिससे खेत गोड़ते हैं। यो०-गोदारी-बाल बच्चोंवाली स्त्री। गोद में पास में। गोदनी--- श्री० [हि. गोदना] १. वह सूई जिससे गोदना गोता . अत्यंत समीप । जैसे,--गोद में लड़का शहर में ढिंढोरा । जाता है । २. चुभाने, गड़ाने या गोदने की कोई चीज । २, स्त्रियों की साड़ी का वह भाग जो अंचल के पास रहता गोदरकु---वि० सह. गदराना या गदर] १. गदराया हमागहरा है । अंचल । उ०-शवरी कटुक वेर तजि मीठे भावि तिमीले भावि २. पूर्णतः यौवनप्राप्त । यौवन से परिपूर्ण। - गोद भर लाई। जूठे की कछु शंक न मानी भक्ष किए सत गादा गोदा'-संशा भौ [सं०] १. गोदावरी नदी। उ०-पंचवटी गोदाहि . भाई ।---सूर (शब्द०)। प्रनाम करि । कुटी दाहिनी लाई। -तुलसी (शब्द०)। २. कि० प्र०--पसारना । -मरना। गायत्रीस्वरूपा महादेवी।