पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२८९

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प्रवचुवन . ध्रप साधारण योग्यतावाले ग्रंथचवकों की उसके सामने मुंह खोलने अथित-वि० [सं० ग्रन्थन] १.गुया हुमा। २. गांव दिया हुआ। की हिम्मत नहीं पड़ती थी।-सी अजान एक सुजान जिनमें गांठ लगी हो। उ०—(क) जैमो फियो तुम्हारे प्रभु (शब्द०)। अलि तेसो भयो तत्काल । ग्रंथित सूत धरत तेहि नोचा जहाँ थचुबन-पंच पुं० [सं० ग्रन्य+चुम्बन] पुस्तक का पाठ मात्र । धरत बनमाल 1---तूर (शब्द॰) । (ख) मंगलमय दोउ अंग .... किताब को सरसरी तौर पर पड़ना। मनोहर अंथित चुनरी.पीत पिछौरी।—तुलसी (शब्द०)। . • ग्रंथन-संज्ञा पुं० [सं० ग्रन्यन] दो चीजों को इस प्रकार जोड़ना कि ग्रथिर्वा -संडा मी० [सं० ग्रन्यिदूर्वा] गाडर दूध। गाँउ पड़ जाय । २. जोड़ना। ३. गूचना । ग्रंथिपत्र-मंडा पुं० [सं० ग्रन्धिपत्र] चोरक नाम का गंधद्रव्य । ग्रंथमाला-संशा श्री० [सं० ग्रन्थमाला एक गृखला या क्रम में नथिपर्ण-संज्ञा पुं० [सं० ग्रन्यिपणं गठिवन का पेड़। प्रकाशित विशिष्ट पुस्तकें (को०] । . . ग्रंथिपर्णक-संशा पुं० [सं० ग्रन्थिपणंक] एक प्रकार का सुगंधित ग्रंथलिपि-संज्ञा स्त्री०सं०. ग्रन्य+-लिपि]एक प्रकार की लिपि जो पौधा को०] । ..:. दक्षिण में प्रचलित है। ग्रंथिपर्णी-संशाली० [सं० प्रन्थिपर्णी] गाडर दूर। विशेष - 'भारतीय प्राचीन लिपिमाला' की भूमिका (१० ४३) में ग्रंथिफल-संज्ञा पुं० [सं० ग्रन्यिफल] १.कैथ का पेड़ । २. मैनफल - इसके संबंध में कहा गया है कि वह लिपि मद्रास के इहाते के का पेड़ । .... उत्तरी और दक्षिणी पार्कट, सलेम, त्रिचनापल्ली, मदुरा और नधिबंधन --शा पुं० [सं० ग्रन्थिबन्धन] विवाह के समय वर और तिन्नेवेल्लि जिलों में मिलतो है। ई० स० की सातवीं शताब्दी कन्या के कपड़ों के कोनों को परस्पर गाँठ देकर बाँधने की से १५वीं शतानी तक इसके कई रूपांतर होते होते इससे क्रिया । गठबंधन। ..... वर्तमान ग्रंथलिपि बनी और उससे वर्तमान मलयालम और . मं० ग्रन्यि ने] १.गिरहफट । नटा '. तुलु लिपियाँ निकली। । २. ग्रंथसंधि-संधा पी० ग्रन्यसन्धि ग्रंथ का विभाग । जैसे,- वह चोरी जो द्रव्य के साथ बंधी गाठ काटकर की जाय । सर्ग, परिच्छेद, अध्याय, अंक, पर्व आदि । गांठ काटना । गिरहकटी। 'ग्र थसाहब संज्ञा पुं० [हिं० ग्रन्थ-साहव] सिक्खों की धर्मपुस्तक गंथिमान'-वि० [सं० प्रन्धिमत्[ बंधा हृया । ग्रंथित [को०] । . जिसमें सब गुरुपों के उपदेश एकत्र किए हुए हैं। ___ ग्रंथिमान संज्ञा पुं० एक वृक्ष किो०] । -अथांतर मंशा पुं० [सं० ग्रन्यान्तर] अन्य ग्रंथ । भिन्न ग्रंथ 'को० । ग्रथमूल - संज्ञा पुं॰ [सं० प्रन्यिमूल सलगम, गाजर, मली ग्रादि मल ग्रंथागार-संक्षा पंसिं० ग्रन्यागार वह स्थान जहाँ विविध जो गांठों के रूप में जमीन के अंदर होते हैं। - विपयों की पुस्तकें एकत्र हों। पुस्तकालय को । ग्रंथिमूला-श्री० [सं० अन्यिमूला माला दुव । प्रेयालय-पन्ना पुं० [सं० ग्रन्थालय] पुस्तकाय । प्रथिमोच --संज्ञा पुं० [सं० ग्रन्टिमोचक] गंठकटा । गिरहकट [को०] . ग्रथावलि, ग्रंथावली-सञ्चा' खा० सं० ग्रन्थावलि, ग्रन्यावली दे० ग्रंथिल"--वि० [सं० प्रन्यिल गाँठदार । गँठोला। ... 'प्रथालय' को । ग्रंथिल संशा ५०१. करील वृक्ष । २. पिपरामूल । ३,अदरक । यावलोकन--संज्ञा पुं० सं० ग्रन्यावलोकन] ग्रंथ का अध्ययन । आदी । ४. फॅटाय नामक कटीला वृक्ष जिसकी लकड़ी के पुस्तक का पढ़ना को०। प्राचीन काल में यज्ञपात्र बनते थे। इसकी पत्तियों छोटी और थि- संज्ञा स्त्री० [सं० ग्रन्यि] १.गाँठ । २ बंधन । ३. मायाजाल । . फल वैर के बराबर गोल होते हैं जो दवा के काम, जाते हैं। ..४.ग्रंथिपर्ण नाम का वृक्ष । एक प्रकार का रोग जो खून ५.चौराई का साग । ६. आलू । ७. बोरक नामक गंधद्रव्य । _.. बिगड़ जाने के कारण होता है और जिसमें गोल गाँठों की ग्रंथिला-संधाबी० [सं० ग्रन्यिला] १. गाडर दूव । २.माला दूव । तरह सूजन हो जाती है। ये गां प्रायः पक जाती हैं और ३. भद्रमोथा चिरवानी पड़ती हैं। ६.ालू । ७. भद्रमोथा । ८.कुटिलता। नंथिहर-संज्ञा पुं० [सं० प्रन्थिहर] मंत्री [को॰] । १.गुठली (को०)। १०. ईख, बांस आदि की गांठ (को०)। ११.शरीर के अंगों का जोड़ (को०)। १२. शरीर के अंदर ___ गया थी-वि० [सं० ग्रन्थिन्] १. अनेक पुस्तकों का अध्येता। २. की वे गां जिनसे एक प्रकार के रस का स्राव होता है पुस्तकीय ज्ञान से संपन्न । ३. अनेक ग्रंथ रखनेवाला फो०। (को०)। १३.अंटी (को०)। १४.गिरह (को०)। ग्रंथोर-संशा पुं० १. ग्रंथकार । २. ग्रंथ का पाठ करने वाला [को०] । . ग्रथिक-संध पुं० [सं० ग्रन्थिका १. पिपरामल । २.ग्रंथिपर्ण या ग्रंथोक-सं। पुं० [सं० प्रन्यीक] पिपरामूल । - गठिबन नामक वृक्ष । ३. गुग्गुल । ४.करीर । ५, ज्योतिपी नदपल-संभा पुं० [सं गन्यवं] दे० 'गंधर्व' 130--सुरगण गंदप (को०)। ६. नकुल का अज्ञातवास के समय का नाम (को०)। सुपह उह वध तानु छुड़ाएँ।-रघु००, पृ०४८ ७. सहदेव का नाम (को०) 1 ग्रंध्रपgt-ar पुं० [सं० गन्धर्व] दे० गंधर्व' । उ-तीस करोड़ प्रथिच्छेदक-संवा पुं० [सं० प्रन्यिछेदक] जेब काटनेवाला। देवता इटुपाती हजार ऋपी विद्याधर ग्रंश्रय, जन याद देस गिरकट [को० देस रा राजा बैन है।-रघु० रू०, पृ. २४२ ।