पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३३

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. ११०६ खंडपणु . सात सात खंड माने गए हैं) । नौ की संख्या। ५.गणित में खंडतरि@-संशा स्त्री० [देश०] फटी चटाई । उ०-प्रोछाग्रोन समीकरण की एक क्रिया । ६. रत्नों का एक दोष जो प्रायः खंडतरि पालिमा चाह । धानोर कद्दर का प्रहिरिनी नाह।- मानिक में होता है । ७.खाँड । चीनी।5. काला नमक विद्यापति, पृ०५६ : ६.दिशा । दिक । उ०-चारह खंड भानु प्रस तपा । जेहि की खंडताल-संगापुं० [सं० खण्डताल] संगीत में एकताला नामक दृष्टि रैन ससि छिपा ।--जायसी (शब्द०)। १०. समूह । ताल जिसमें केवल एक द्रत होता है। उ०-तह सजतं उद्भट भट विकट सटपट परत खल खंड खंडधारा-संज्ञा स्त्री० [खण्डधारा] कतरनी। केंची [को में ।-पद्माकर ग्र०, पृ० २८५। ११. परशुराम 1 उ०-संग्राम खंडन-संशा पुं० [सं० खण्डन] [वि० टनीय संस्ति, संदी]. पंड करवं कि खंड वाण सेरियं ।-राज रू०प०६०।१२, : तोदने फोड़ने की ग्रिन्या । २. अंजन छेदन । ३.किसी बात . मंजिल । मरातिब । उ०-नव नव खंड के महल बनाए। को अयथार्य प्रमाणित करने की क्रिया । किसी सिद्धांत को सोना केरा कलस चढ़ाए |--कवीर० सा०, पृ० ५४३ | प्रमाणों द्वारा प्रसंगत ठहराने का कार्य । निराकरण ! मंडन खंड-बि०१.खंडित । अपूर्ण । उ०प्रखंड साहब का नाम और का उलटा । जैसे-उसने इस सिद्धांत का खूब खंडन किया है। सब खंड है । —कबीर १०, पृ० १२१ । २. छोटा । लघु । ३. ४.नत्य में मुह या घोठ इस प्रकार चलाना जिसमें पड़ने. विकलांग। दोषयुक्त [को०] । घड़बड़ाने या खाने प्रादि का भाव झलके । ५.निराश करना । खंड-संज्ञा पुं० [सं० खङ्ग] खड़ा । ३०-कर शं मु खंड परिवंड हताश करना (को०)। ६.धोखा देना । वंचना (को०) १७. चढदै के जलधि उमंड को घमंड ब्रह्मद मंड |-गोगल बाधा देना । रुकावट करना (को०)। ८.टिसमिस करन।। (शब्द०)। 'वर्यास्त करना (को०) 1.६. विद्रोह । विरोध (को०)। १.. खंडकंद-संज्ञा पुं० [सं० खण्ड फन्द] शकरकंद । खंडकर्ण [को०। 'हटाना दूर करना (को०) 1 ११.विनष्ट करना (को०)। खंड- विसं० खण्डक] १. खंडन करनेवाला। किसी मत या खंडन......ितोड.काटने या हिस्सा पारनेवाला । २ विनाच विचार को काटनेवाला । २. खंड करनेवाला । विभाग करने करनेवाला । विध्वंस करनेवाला (को०] 1 . वालो । टुकड़ों में विभवत करनेवाला ।३. दूर करने या हटाने खंडनकार-संज्ञा पुं० [सं० खण्डनकार] २. खंडनखंडवा के लेखक . . वाला। [को०] । - श्रीहर्प । २. खग्न करनेवाला व्यक्ति या प्राणी (को०)। खंडकर-संज्ञा पुं०१.खंड | भाग। टुकड़ा। २. शर्करा। ईस की। खंडनखंडखाद्य-संशा पुं० [सं० खण्डनखण्डखाय] श्रीहर्ष कृत अद्वैत चीनी । ३. नखहीन प्राणी । वह प्राणी जिसे नाखून न हो। हा वेदांत का खंडन प्रधान मंथ। [को०)। ___... खंडनमंडन-संधा पुं० [सं० खण्ड नमदन] वादविवाद | खंडन खंडकथा-संवा मी० [सं० खण्डकथा कया का एक भेद । लघु फया। और मंडन । छोटी कथा। । क्रि० प्र०-फरना !-- होना। विशेष-इसमें मंत्री अथवा ब्राह्मण नायक होता है भार चार वंडरत-संगा पं०सं० खण्डनरत ध्वंसकार्य में निपुण। प्रकार का विरह रहता है। इसमें करुण रस प्रधान होता है। कथा समाप्त होने के पहले ही इसका ग्रंथ समाप्त हो जाता है। खंडना -क्रि० स० [सं० खण्डन] १.खंडन करना । तोड़ना ।.. २. उपन्यास का एक भेद । टुकड़े टुकड़े करना ! उ०-कोदंड खंडेउ राम तुलसी जंपति विशेष—इसके प्रत्येक खंड में एक एक पूरी कहानी होती . वचन उचारहा। मानस, १९ है और इसकी किसी एक कहानी का दूसरी कहानी के साथ किसी बात को अयुक्त ठहराना । ३. उल्लंघन करना । न । कोई संबंध नहीं होता। इसके दो भेद हैं, सजात्य भौर मानना । उ-पिता बदन खंडे नों पापी, सोइ प्रह्लादहि .. वैजात्य । जिसमें सब कथाओं का प्रारंभ और अंत एक समान कोन्हों।-सूर०, १ । १०४ । "होता है, वह सजात्य कहलाती है। और जिसकी कथाएं कई खंडनी'-स्त्री०सी० [सं० खण्डन] मालगुजारी की किस्त । कर। . ढंग की होती हैं, उसे बैजात्य कहते हैं । - खंडनी-वि० [सं०] दे० 'खंडी, 'खंदिनी'। • खंडकर-संज्ञा पुं० [सं० खण्डकर्ण] १. शकरकंद । २. एक प्रकार . खंडनीय-वि० [सं० खण्डनीय १.- तोड़ने फोड़ने लायक । २. ..:: का गांठदार पौधा । खंडन करने योग्य । निराकरण के योग्य । ३. जिसका खंडन खंडकालु-संज्ञा पुं० सं० खण्ड कालु शकरकंद [को०] । . .. हो सके । जो मयुक्त ठहराया जा सके। . . .. . - खंडकाव्य-संसा पुं० [सं० खण्डकाव्य] वह : काव्यः जिसमें 'काव्य' · खंडपति- संज्ञा पुं० [सं० खण्डपत्ति राजा । .. के संपूर्ण अलंकार या लक्षण न हों, बल्कि कुछ ही हों। खंडपरशु--संक्षा पुं० [सं० खण्ड परशु] १. महादेव । शिव । - जैसे मेघदूत आदि। ..... .. .. . खंडपर शु को शोभिज सभा मध्य कोदंड। मानहु शेष अशेषधर . खंडज--संबा पुं० [सं० खण्डग] १.एक प्रकार की शर्करा । २. ..:, धरनहार परिवंट।-केशव (शब्द०)। २. विष्ण । ३. गुड़ । भेली [को०

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-: ..."' परणाराम परशुराम । ४. राहु । ५. यह हाथी जिसके दांत टूटे हों। खंडता -वि० [सं० खपिडदे० 'संडित'!.. .' खंडपशु-संशा पुं० [सं०] दे० 'खंडपरणु' [को०]! प्रकामा .