पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३३६

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. घृणास्पद, घुमघुमाव घूमघुमारा लहँगा । २. उनींदा । ३. धूपित । मत्त । उ०- कुपित दृष्टि से ताकना। आँख निकालना। ३.घूमना। (क) रस के माते घूमधुमारे ललचौहै दृग हैं कजरारे । - टहलना । (विहार)। ब्रज० वर्णन, पृ०२२ । (ख) कृष्ण रसासव पान अनस कछु घूरा-संक्षा पुं० [सं० कुट, हिं० कुरा] १. कूड़े करकट का ढेर । २. . घूमघुमार। - नंद० ग्रं॰, पृ०३। वह स्थान जहाँ कूड़ा नरकट फेंका जाता हो। कतवारखाना। घूमघुमाव--वि० [हिं० घूमना] चक्करदार । उ०-मल से उपजा मल लिपटा मतिमलीन तू धूरा है। घूमधुमोप्रा--वि० [हिं० घूम+घुमाव] वक । टेढ़ा । चकारदार । भारतेंदु ग्रं॰, भा॰ २, पृ० ५५४ । उ.-सड़क घुमघुमौषा थी ।-किन्न र ०. पृ०४६ । घुराधारो-मंशा खी० [हिं० घूरना+घारना (अनु०) ] घूरने की. घूमना-क्रि० प्र० [सं० घूर्णन] १. चारों ओर फिरना। चक्कर किया । उ०--तुम अपने मुल्क की तरफ से लड़ने पाए हो या खाना । एक ही धुरी पर चारों ओर भ्रमण करना। २ सैर करना । टहलना । ३ देशांतर में भ्रमण करना। सफर घराघारी करने आए हो।-फिजाना०, भा० ३. पृ० १०३। - करना । ४. एक वृत्त की परिधि में गमन करना। कावा घूर्ण'--संज्ञा पुं० [सं०] १.धूमना । फिरना । चक्फर खाना । हिलना - काटना। मंडराना । ५. किसी और को मुड़ना। जैसे,-- डुलना किला

वहाँ से वह रास्ता पश्विम को घूम गया है। ६. वापस घर्ण२ वि० सं०] धमता हमा। चक्कर खाता दुपा । २: भ्रांत । आना या जाना ! लौटना। मत्त [को०] संयो.क्रि०---जाना ।-पड़ना । यौ० · घूर्णवायु =चक्करदार हवा । बवंडर । घूर्णावर्त =भवर । मुहा०-घूम जाना=गायब हो जाना। चंपत होना। रफूचक्कर उ०-शत घूर्णावर्त तरंग भंग उठते पहाड़।- अनामिका, .. होना । घूम पड़ना : (१) सहसा क्रुद्ध हो जाना । बिगड़ पृ० १५३ । उठना । जैसे,—मैं तो उन्हें समझाने गया था, वे उलटे मेरे घूर्णन-संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० घूर्णना] १. घूमना । चक्कर खाना । ही ऊपर धूम पड़े। (२) विपरीत हो जाना। अपने । २. भ्रमण । घुमाना [को०। अनुकूल न रहना । घणि संज्ञा स्त्री० [सं०] दे८ 'घूर्णन' (को०1।। t@७. उन्मत्त होना । मतवाला होना । उ:--बिहँसि बुलाय विलोकि उत प्रौढ़ तिया रस घृमि । पुलाक पसीजति पूत घृणित--वि० [सं०] १.घूमता हुग्रा । चकराता हुमा । २. भ्रमित । । पिय चमो मुख चूमि 1--बिहारी (शब्द)। उ०--कई युगों से संतत, विचलित, मेरा नशाकाश । दिशाशून्य, उडुरहित, तमोमय धुणित, व्ययित, निराश 1-- घुमनि प्र--पंछा श्री० [हिं० घूमना] घूमने का भाव या स्थिति । अपलक, पृ० ३८। । उ.---कच.लट गहि बदनन की चूमनि । नख नाराचन घायल घूमनि । -नंद० प्र०, पृ. ३२२ । यौ-धूणित जल-आवत । भवर । धुरिणत वायु-बवंडर । घूमनी - संचा त्री० [हिं० घूमना] सिर का चक्कर । घुमटा । घून -वि० [सं० घूर्ण] दे० 'घूर्ण" । उ०-वारुनी बस धून लोचन . विहरत बन सचुपाए । पोद्दार अभि० ग्रं॰, पृ० २५७ । । घूमर@, घूमराहु-वि० [हिं० घूमना] १. मत्त । मतवाला। धूमिल-वि० [सं० घूर्ण, हिं० धूर्म+इल (प्रत्य॰)] धूमता हुपा। उ०-रूप मतवारी घन आनंद सुजान प्यारी घूमरे कटाछि धम कर कौन 4 घिर ।--धनानंद, पृ० ४१ । २. हिलन धूमित । उ०-भीड़ से शतमोह धूमिल ।-अर्चना, पृ०७३। घस संशो० सं० ग्रहाशय (गहा-+-शय) (-चूहा)] चूह ११ धाला । धूमनेवाला । उ०-बहुरि अनेक अगाध जु सरवर । का एक बड़ा जंतु जो प्रायः · पृथ्वी के अंदर बड़े लंवे दिल . रस झूमरे घूमरे तरवर ।-नद० ग्रं, पृ०२०५। खोदकर रहता है। एक प्रकार का बड़ा चहा। धूस । घुइस । घूर-संधा पं० [सं० फूट, दि० कूरा] १. वह जगह जहाँ फूड़ा करकट घूस-संज्ञा श्री० [२० गुह्याशय (गुह्य+प्राशय) (गुप्त अभिप्राय घसर फेंका जाय । कर कट कूड़ा, कतवार आदि फेकने या एकत्र से दिया हुआ धन)] वह द्रव्य जो किसी को अपने अनुकूल कोई करने का स्थान । २. कूड़े का ढेर । ३.किसी पोली चीज में कार्य कराने के लिये अनुचित रूप से दिया। रिशवत । उसको भारी करने के लिये भरा हुमा वाल और सुहागा उत्कोच । लाँच । जैसे-वह घूस देकर अपना काम निकालता आदि ।--(सोनार)। है : उ.--कहैं करनेस अव घुस खात लाज नहीं रोजा प्रो घुरधार--संज्ञा स्त्री० [हिं० घूरना ] दे० घरांधारी'। . निमाज अंत काम नहीं आवेंगे।-प्रकवरी०, पृ० ३३ घूरन--वि० [सं० घूर्ण ] धूणित । मत्त । उ०--कृस्न रसासव क्रि० प्र०-खाना ।—देना।-लेना। . . - अनिस पान तें घूरन पूरन काम खरे।-धनानंद, पृ० ३६२। यौ०-घूसखोर । घूसघास । घूस पच्चड़ =रिशवत। घूरनि@--संज्ञा स्त्री० [सं० पूर्सन] घूरना । देखने की क्रिया । उ-- घूसखोर वि० [हि धूस+फा० खोर घस लेनेवाला । रिश्वता चुपनि चुवावनि चाटनि चुमनि । नहि कहि परति प्रेम की घृणा- संज्ञा स्त्री० [सं०] [सं० धुरिणत] १. घिन । नफरत । २. घूरनि ।--नंद ग्रं॰, पृ० २६६ । वीभत्स रस का स्थायी भाव । ३. दया। करुणा । तरस । घूरना--क्रि० अ० [सं० घूर्णन (= इधर उधर फिराना)] १. दार वार 'घृणालु--वि० [सं०] दयालु । करुणावाला [को० । . आँख गड़ाकर चुरे भाव से देखना । बुरी नीयत से एक टक घणावास--संज्ञा पुं॰ [सं०] कूष्मांड । कोहड़ा। देखना । जैसे,--स्त्री घूरना । २, क्रोधपूर्वक एकटक देखना। घणास्पद--वि० [सं०] घृणा करने योग्य को।