पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३३७

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१४१४ घेवा . होण-संधा पुं० [सं०] १. प्रकाश की किरण । २. गर्मी। धूप। घृताची-संज्ञा श्री० [0] १. स्वर्ग की क यमरा। २ वह पारछुनी ज्वाला । ३. तरंग । लहर । ४. जल । ५. क्रोध । कोप । जिससे यज्ञों में घी अग्नि में डाला जाता है। श्रवा । ३. ६. सूर्य [को०] । कुशनाभ नामक एक प्राचीन राजा की रानी का नाम । ४. घृणिः-वि० [सं०] १. चमकीला । २. अप्रिय [को०] । गायत्रीस्वरूपा देवी (को०)। घृणिनिधि संज्ञा पुं० [सं०] तरणि । सूर्य [को०। यौ०-घृताचीगर्भसंभवा=बड़ी इलायची । घृणिनिवि--संशश की गंगा नदी [को०] । घृतान्न-मंडा पुं० [०] १. घृतयुक्त अन्न । २. प्रज्वलित अग्नि [को०] । घृणित-वि०म०] १. घृणा करने योग्य । २. जिसे देखकर या घृताचि--म पुं० [सं०] प्रज्वलित अग्नि [को०] । - सुनकर घृणा पैदा हो। ३. तिरस्कृत । निदित । घृताहवन-संञ्चा पुं० [सं०] अग्नि [को०)। घुलो-वि० [सं० धुगिन्] १. घणा करनेवाला । २. कृपालु । दयालु। घृताहुति-संहार सं०] हवन के समय अग्नि में घी डालने की .३ प्रकाशनान् । दीप्त (को०] । क्रिया । घी की आहुति। घृणुय--वि० [सं०] दे० 'घृणित' । . घृत'-संझ ० [सं०] १. घी 1 तपाया हया मक्खन । २. मक्खन धुनाह-संवा पुं० [सं०] सरल नाम का एक वृक्ष [को०] । (को०)। ३. जल । ४. तेजस । शक्ति (को०) 1 घृती - वि० [सं० घृतिन्] घी से युक्त । घी से तर । घृतावत (को०)। पक्षी घृतेली-संवा श्री० [सं०] एक प्रकार का कीड़ा। घी का कीड़ा । योतकरंज, घृतपर्ण ,घृतपूर्णक-एक प्रकार का करंज वृक्षा तैलपायिक । तेलचट्टा (को०] । . . घृतकेश, घृतदीधिति, घृतप्रतीक, घृतप्रयत, घृतप्रसत्त-अग्नि । घृत-वि० [सं०] १. आई किया हया । सिंचित । तर । २. घोतित। धृतोदक- मंबा पुं० [म घृतोद] घी रखने का कूप्पा [को०) । - पालोकित किो। घृद-संज्ञा पुं० [सं०] पुराणों में वरिंगत सात, महासागरों में से एक। घृतकुमारी-संवा श्री माघीवार 1 गमारपाठा। गोंडपट्टा। घृतसमुद्र ।। घृतकुल्या--पंना को मं०] १. घी की कृत्रिम छोटी नदी। २. घी घृनी-वि० [सं० परिणन] दयालु । ... को धारा कोन घृष्ट-वि० [सं०] घिसा या रगड़ा हुमा [को०] । किश-संवा पुं० [सं०] १. अग्नि । वह जिसकी दृष्टि स्निग्ध और घृष्टि-संज्ञा स्त्री० [सं०] १. घर्षण। रगड़। २. विष्णुकांता । प्रास- ... सहानुभूतियुक्त हो [को०] । जिता । ३. होड़ । स्पर्धा [को०] 1 घृतधारा- श्री• [0] १. पी की धारा । २. पश्चिम देश की घृष्टि संज्ञा पुं० [सं०] [संज्ञा स्त्री० धृष्टी] शूकर । सूअर को । ... एक नदी । ३. पुराणानुसार कुशद्वीप की एक नदा। घृष्ठला-संज्ञा स्त्री० [सं०] पृश्निपणी । पिठवन (को० । घृतप-संा पुं० [सं०] १. प्राज्यप नाम के पितृगण । २. वह जो घृष्व-संसा प० [सं० १. शूकर । सूअर । २. घर्पण किो०) । . वृत पीए । घी पीनेवाला [को०)। घेघ-पंया पुं० [देश॰] १. एक प्रकार का भोजन जी चने की वहरी तपूर--संज्ञा पुं० [म. घेवर नामक पकवान । वि० दे० 'घेवर'। को चावलों में मिलाकर पकाने से बनता है। धृतप्रमह-या पुं० [सं०] प्रमेह रोग का एक प्रकार जिसमें मूत्र घी रोग । घेघा। .. के समान गाड़ा और विकता होता है । घेघा--संज्ञा पुं॰ [देश॰] दे० 'धेघा' । घृतमंड-संशा पुं० [सं०पत+मएड ] घी का मैल जो मक्खन तपाने घंटा-संवा पुं० [हिं० घाँटी] गला । गरदन । से निकलता है शो०] । घंटा-संज्ञा पुं० [अनु० घे घे] [ी घंटी सूअर का बच्चा। घंटो-संज्ञा स्त्री० । देश०] चने की फली जिसके अंदर बीज रूप से वृतमंडा-मंचा की० [५० धृतमएडा] काकमाची । मकोय [को०] । चना होता है। २. चने की फली के आकार की कोई वस्तु । घृत्याज्या-मंचा बी० [सं०] घी की आहुति देते समय पढ़ा जानेवाला ३. एक पक्षी। - मंत्र [को०]। . घे टी-संज्ञा ली [हिं० घाँटी या सं० कृकाटिका] गले और कंधे घृतयोनि-संच्या पुं० [सं०] अग्नि । का जोड़। घृतलेखनी-संज्ञा स्त्री० [सं०] काठ की बनी हुई घी निकालने की घंटुला-संज्ञा पुं० [हिं० घंटा ] [ मौ० टुलिया ] सूअर का .. कलछो [को०)। . छोटा बच्चा। धृतवत्-वि० [सं०] अतिशय चिक्कण । बहुत चिकना [को०। पेंडी--संत्रा श्री० [हिं० घो+हंडी] मिट्टी का पात्र जिसमें घी घृतवर-संडा पुं० [सं० घेवर नामक मिठाई [को०) । रखा जाता है । घिवहँड । वृतहेतु-मंशा पुं० [सं०] घी का कारण या मूल । मक्खन [को०] । . घेघा-संज्ञा पुं० [देश॰] १. गले की नली जिससे भोजन या पानी घृता-संज्ञा स्त्री० [भं०] काकमाची । मकोय [को॰] ।. पेंट में जाता है। ३. गले का एक रोग जिसमें गले में सूजन . घृताक्त-वि० [सं०] घी से तर । घी चुपड़ा हुग्रा की। समान होकर बतौड़ा सा निकल पाता है। -