पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३५५

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चंद्रमा चंद्रमणि चंद्रमणि-संज्ञा पुं० [सं० चन्द्रमरिण] १. चंद्रकांत मणि। उ०- . (क) चौकी हेम चंद्रमणि लागी हीरा रतन जराय बची। भुवन चतुर्दश की सुदरता राधे के मुख मनहि रची।-सूर ... - (ब्द०)। (ख) केती सोमकला करो, करी सुधा को दान । नहीं चंद्रमणि जो द्रवं, यह तेलिया पखान । -दीनदयाल - (शब्द॰) । २. उल्लाला छंद का एक नाम । चंद्रमल्लिका-संवा खी० [सं० चन्द्रमल्लिका] एक प्रकार की चमेली । चंद्रमल्लो-संक्षा नी० [सं० चन्द्रमल्ली] दे॰ 'चंद्रमल्लिका' । उ०- . चंद्रमल्ली पुंज की नव कुंज विहरत पाय ।-घनानंद०, चंद्रमस्-शा पुं० [सं० चन्द्रमस्] चंद्रमा । चंद्रमह-संका पुं० [सं० चन्द्रमह] कुता [को०] । चंद्रमा-शा पुं० [सं० चन्द्रमस् ] आकाश में चमकनेवाला एक उपत्रह जो महीने में एक बार पृथ्वी की प्रदक्षिणा करता है .. और सूर्य से प्रकाश पाकर चमकता है। _ विशेष-वह उपग्रह पृथ्वी के सव से निकट है; अर्यात् यह ' पृथ्वी से २३८८०० मील की दूरी पर है। इसका व्यास . २१६२ मील है और इसका परिमाण पृथ्वी का ४: है। - इसका गुरुत्व पृथ्वी के. गुरुत्व का वा भाग है। इसे पृथ्वी के चारों ओर घूमने में २७ दिन, ७ घंटे, ४३ मिनट पौर ११३ सेकेंड लगते हैं, पर व्यवहार में जो महीना पाता है, वह २६ दिन, १२ घंटे, ४४ मिनट २.७ सेकेंड का होता है। चंद्रमा के परिक्रमण की गति में सूर्य की क्रिया से बहुत कुछ अंतर पड़ता रहता है। चंद्रमा अपने अक्ष पर महीने में एक बार के हिसाब से घूमता है। इससे सदा प्रायः उसका एक ही पाश्वं पृथ्वी की ओर रहता है। इसी विलक्षणता को देखकर कुछ लोगों को यह भ्रम हुया था कि यह पक्ष पर घूमता ही नहीं है। चंद्रमंडल में बहुत से धब्बे दिखाई देते हैं जिन्हें पुराणानुसार जनसाधारण कलंक यादि कहते हैं । पर एक अच्छी दूरबीन के द्वारा देखने से ये धब्वे गायव हो जाते हैं और इनके स्थान पर पर्वत, घाटी, गर्ग, - ज्वालामुखी पर्वतों से विवर आदि अनेक पदार्थ दिखाई पड़ते हैं। चंद्रमा का अधिकांश तल पृथ्वी के ज्वालामुखी पर्वतों से पूर्ण किसी प्रदेश का सा है। चंद्रमा में वायुमंडल नहीं जान पड़ता और न बादल या जल ही के कोई चिह्न दिखाई पड़ते हैं। चंद्रमा में गरमी बहुत थोड़ी दिखाई पड़ती है। प्राचीन भारतीय ज्योतिपियों के मत से भी चंद्रमा एक ग्रह है, जो सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित होता है। भास्कराचार्य के मत से चंद्रमा जलमय है। उसमें निज का. कोई तेज नहीं है। उसका जितना भाग सूर्य के सामने पड़ता • है, उतना दिखाई पड़ता है-ठीक उसी प्रकार, जिस प्रकार- धूप में पड़ा रखने से उसका एक पाव चमकता है और दूसरा पाश्वं उसी की छाया से अप्रकाशित रहता है । जिस दिन चंद्रमा के नीचे के भाग पर अयात् उस भाग पर जो हम लोगों की पोर रहता है, सूर्य का प्रकाश बिलकुल नहीं पड़ता, उस दिन अमावस्या होती है। ऐसा तभी होता है, जब सूर्य और चंद्र एक राशिस्य अर्थात् समसूत्र में होते हैं। चंद्रमा बहुत शीघ्र सूर्य की सीघ से पूर्व की पोर हट जाता है और उसकी एक एक कला क्रमशः प्रकाशित होने लगती है। चंद्रमा सूर्य की सीध (समसूत्र पात) से जितना ही अधिक हट जायगा, उसका उतना ही अधिक भाग प्रकाशित होता जायगा । द्वितीया के दिन चंद्रमा के पश्चिमांश पर सूर्य का जितना प्रकाश पड़ता है, उतना भाग प्रकाशित दिखाई पड़ता है। सूर्य सिद्धांत के मतानुसार जब चंद्रमा सूर्य की सीध से ६ राशि पर चला जाता है तब उसका समग्र आधा भाग प्रकाशित हो जाता है और हमें पूर्णिमा का पूरा चंद्रमा दिखाई पड़ता है। पूणिमा के अनंतर ज्यों ज्यों चंद्रमा वढ़ता जाता है, त्यों त्यों सूर्य की सीध से उसका अंतर कम होता जाता है; अर्थात् वह सूर्य की सीध की और पाता जाता है और प्रकाशित भाग क्रमशः अंधकार में पड़ता जाता हैं। अनुपात के मतानुसार प्रकाशित और अप्रकाशित भागों के इस ह्रास और वृद्धि का हिसाव जाना जा सकता हैं । यही मत आर्यभट्ट, श्रीपति, ज्ञानराज, लल्ल, ब्रह्मपुत्र, आदि सभी पुराने. ज्योति पियों का है। चंद्रमा में जो धन्ये दिखाई पड़ते हैं, उनके विषय में सूर्यसिद्धांत, सिद्धांतशिरोमणि, वृहत्संहिता इत्यादि में कुछ नहीं लिखा है । हरिवग में लिखा है कि ये धब्बे पृथ्वी की छाया हैं। कवि लोगों ने चकोर और कुमुद को चंद्रमा पर अनुरक्त वर्णन किया है । पुराणा- नुसार चंद्रमा समुद्रमंथन के समय निकले हुए चौदह रलो.. में से है और देवताओं में गिना जाता है। जब एक असुर देवताओं की पंक्ति में चुपचाप बैठकर अमृत पी गया, तब चंद्रमा ने यह वृतांत विष्णु से कह दिया। विप्ण ने उस असुर के दो खंड कर दिए जो राहु और केतु हुए। उसी पुराने वर के कारण राहु ग्रहण के समय चंद्रमा को प्रसा करता है। चंद्रमा के घव्वे के विषय में भी भिन्न भिन्न कयाएं प्रसिद्ध है। कुछ लोग कहते हैं कि दक्ष प्रजापति के शाप से चंद्रमा को राजयक्ष्मा रोग हुग्रा; उसी की शांति के लिये वे अपनी गोद में एक हिरन लिए रहते हैं। किसी किसी के मत से चंद्रमा ने अपनी गुरुपत्नी के साय गमन किया था; इसी कारण शापवश उनके शरीर पर काला दाग पड़ गया है। कहीं कहीं यह भी लिखा है कि जब इंद्र ने अहल्या का सतीत्व भंग किया था, तब चंद्रमा ने इंद्र को सहायता दी थी। गौतम ऋषि ने क्रोधवश उन्हें अपने कमाल और मृगचर्म से मारा, जिसका दाग उनके शरीर पर पड़ गया। रूस और अमेरिका चंद्रमा संबंधी अभियान और अनुसंधान में लगे हैं। १९५६ के ४ अक्तूबर के दिन रूस ने एक स्वयंचालित अंतर्ग्रही स्टेशन चंद्रमा की मोर छोड़ा जिसने चंद्रमा के अदृश्य भाग के फोटो ४० मिनट तक लिये। अमेरिका भी यह काम कर चुका है। दोनों के मानवहीन अंतरिक्ष यान मंदतम गति से चंद्रवल पर अवतरण कर चुके हैं। मानद