पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३५८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

चंद्रिकात १४३५ चंपाकली मछली। ६. चंद्रभागा नदी । ७. करांस्फोटा । कनफोड़ा गाला। २. एका वर्णवृत्त का नाम जिसनः प्रत्येक पद में . घास । ५. जूही या चमेली। ६. सफेद फूल की भटपाटया। भगण, मगण, सगण और ए गुर (GILRouss) होता १०. मेथी। ११. चंद्रशर । चनसुर। १२. एका देवी। १३, है। जैसे, भूमि सगी काह कर नाहीं। कृष्ण सगा साँची एक वर्णवृत्त का नाम जिसके प्रत्येक चरण में न न त त ग जग माहीं। (11, 551 551, 5) और ७+६ पर यति होती है। चंपकरंभा-संघा रसी० [सं० चम्पक रम्ना] पा फेला [को०] 1 जैसे- नित तगि कह ग्रान को धाव रे । भग हर चंपकलो--संघा सीहि०] . 'चंपाकली'। उ.-गल में कटवा, घरी राम को बावरे । १४. वासपुष्पा । १५. संस्कृत कटा हुँसली, उर में हुमेल, मल चंगागाली।--ग्राम्या, पृ०४०। व्याकरण का एक ग्रंथ । १६. माथे पर का एक भूपण। चंपकारएय--संथा पुं० [सं० चम्पारण्य ] एक पुराना तीर्य। उदी। बदा। उ०-यहि भौति नाचत गोपिका सब थकित अाधुनिक भारत [0] । ह झुकि शकि रहीं। कहिं माल पायल चंद्रिका परि गरी चंपकालु-संघा . [सं० चम्पानुजाक या रोटी फल का पद। नफवेसर कहीं।-विग्राम (शब्द०)। १७. स्त्रियों का एक चंपावती-संघारी० [सं० चम्पावती चंपापुरी (०)। पकार का मुकुट या शिरोभूपए जिसे प्राचीन काल मी चंपद- पु० [सं० चम्पपुन्द] एक प्रकार की मथनी (को०] . रानियां धारण करती थीं। चंद्रकला। चंपकोश-संशा पुं० [सं० चम्पकोरा पाटहल [को०] । चंद्रिकातप--संसा पुं० [सं० चन्द्रिकात५] चांदनी की उज्यलता। चंपत-वि० दिश०] चलता । नायव । संतान। चांदनी । उ०-चारु चंद्रि कातप से पुलकित निखिल कि० प्र०-धनना ।--होना। धरातल । -नाम्या, पृ०६८।। चंपा-संघा [सं० चम्पक] १. मन्मोले सन्द का एक पेट । चंद्रिकाद्राव-संशा पुं० [सं० चन्द्रिकादाय] चंद्रकांत मरिण [को॰] । विशेष---इसमें हलके पीले रंग फूल लगते हैं। इन फूलों में चंद्रिकापायो-संशा पुं० [सं० द्रिकापायिन्] चकोर [को०] । बड़ी तीय मुगंध होती है। चंपा दो प्रकार का होता है। वंद्रिकाभिसारिका-संपा धी० [सं० चन्द्रिकानिसारिफा] शुक्ला. एक साधारण नंपा, दूसरा कटहलिया। कटहलिया चंपा भिसारिका नायिका। के फूल गो महक पके कटहल से मिलती हुई होती है। चंद्रिकोत्सव--संशा स्रो. [सं० चन्द्रिकोत्सव] शरद पूनो का उत्सव । ऐसा प्रसिद्ध है कि चंपा के फूल पर भोरे नहीं बैठते । शरदोत्सव । जंगलों में पके जो पेट होते हैं, वे बहुत कचे और चंद्रिमा-संघा स्त्री० [सं० चन्द्रिमा] चांदनी (को०)। चंद्रिल-संशा पुं० [सं० चन्द्रिल] १. शिव । महादेव । २. नाई (को०। बड़े होते हैं । इसकी लकड़ी पौली, चमकीली पौर मुतापन, पर बहुत मजबूत होती है और नाव, टेबुल, मुरसी चंद्री-वि० [सं० चन्द्रिन्] १. चंद्र की तरह पालादक । उ०- चित्ररेप वाला विचित्र चंद्री चंद्रानन |-गृ. रा०, मादि बनाने और इमारत के काम में माती है। २५५१०६ । २. सुनहला । सुवर्ण (सोने) वाला (को०) । ३. हिमालय की तराई, नेपाल, बंगाल, आसाम तमा बुध (को०)। दक्षिण भारत के जंगलों में यह अधिकता से पाया जाता है। चंद्रष्टा-संहा पी० [सं० चन्द्रष्टा] कुमुदनी [को०)। चित्रकूट में इसकी लफड़ो की मालाएं बनती है। चंद्रोदय-संथा पुं० [सं० चन्द्रोद्रय] १. चंद्रमा का उदय । २. बंधक २. गंगा का फूल । उ०-मलि मवरंगजेब चंपा सिवराज में एक रस जो गंधक, पारे और सोने को भस्म करके है।-भूपण २, पृ० १०१ । ३. एक प्रकार का मीठा केला बनाया जाता है । मरणासन्न मनुष्य को देने से उसकी बेहोशी जो बंगाल में होता है। ४. घोड़े की एक जाति । ५. एफ. थोड़ी देर के लिये दूर हो जाती है। इसे पुष्टई की तरह भी प्रकार का मुसियार पा रेशम का कीड़ा जिसके रेशम का लोग खाते हैं! व्यवहार पहले मासाम में बहुत होता था। ६. एक प्रकार ३. चंदवा । चंदोवा । वितान । का बहुत बड़ा सदावहार पेड़। चंद्रोपराग---संश पुं० [सं० चन्द्रोपराग] चंद्र ग्रहण । विशेप-यह वृक्ष दक्षिण भारत में अधिकता से पाया चंद्रोपल संञ्चा पुं० [सं० चन्द्रोपल] चंद्रकांतमरिण । जाता है। इसकी लकड़ी कुछ पीलापन लिए बहुत मजबूत चंद्रोल-संवा मो० [सं० चन्द्र] राजपूतों की एक जाति या शाया। होती है और इमारत के काम के अतिरिक्त गाड़ी, पालकी, चंप-संज्ञा पुं० [सं० चम्पक] १. चंपा । २. कचनार । कोचिदार वृक्ष । नाव आदि बनाने के काम में भी माती है। इसे 'सुल्ताना चंपई-वि० [हिं० चंपा] चंपा के फूल के रंग का । पीले रंग का । चंपा' भी कहते हैं। चंपक-संज्ञा पुं० [सं० चम्पक | १. चंपा । २. चंपा केला । ३. चंपा-संवा श्री० [सं० चम्पा] एक पुरी जो प्राचीन काल में अंग सांख्य में एक सिद्धि जिसे रम्यक भी कहते हैं। कि०३० देश की राजधानी थी।यह वर्तमान भागलपुर के पास पास 'रम्यक' । ४. संपूर्ण जाति का एक राग जिसके गाने का कहीं रही होगी। कर्ण यहीं का राजा था । समय तोसरा पहर है। यह दीपक राग का पुत्र माना चंपाकली-संशा जी० [हिं० चम्पा+कली] गले में पहनने का लिया जाता है। का एक गहना जिसमें चंपा को कली के प्राकार के सोने के चपकमाला. संथा श्री० [सं० चम्पकमाला] १. चपा के फूलों की दाने रेशम के तागे में गुथे रहते हैं। उ.---चंपक की कती चंपाकी राजधाना यहीं का गले में पहनन के सोने