पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३५९

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सोनेर १४३६ चंड़ाई ___ बनी चंपाकली भारी फूलन के हार कं० सोहत रुचिकारी। विशेषकर प्रोड़ छा में बनता है। इसका फूल बहुत उतम भारतेंदु , भा॰ २, पृ०४४० । होता है। . चंपानेर--संज्ञा पुं० [हिं० चंपा+नगर] एक पुराना नगर। चॅसुर-संघा पुं० [सं० चन्द्र शूर] हालों या हालिम नाम का पौधा । विशेप-इस नगर के खंडहर अबतक बंबई के पंचमहाल जिले विशेष—यह पौधा लगभग दो फुट ऊँचा होता है । इसके पत्ते पतले और कटावदार गुलदावदी के पत्तों के से होते हैं। पत्तों के अंतर्गत है । ईसवी १५वीं शताब्दी के अंतिम भाग तक यह का लोग ताग खाते हैं । पौधे के बीज को नी सुर कहते हैं। 'एक राजपूत सरदार के अधिकार में था। पर सन् १४८२ में चगना-क्र० स० [हिं० चगा या फा० तंग ] तंग करना। अहमदाबाद के बादशाह महमूद ने राजपूतों के आक्रमण से तंग कसना । खींचना । उ०-राम रंग ही सौं रंगरेजवा मेरी पाकर इसे ले लिया और इसके पास ही महम्मदाबाद चंपानेर अंगिया रंग दे रे।....निगुन करम तागन से बीनी, गेम बसाया। इस नगर को हुमायूने सन् १५३३ में उजाड़ रोम झाझरि अति झीनी, बड़े सूकृत रतनन से कीनी, यसक दिया । सन् १८०३ तक इसमें ४००.५०० आदमियों की होई तो चॅगि दे रे।-देव स्वामी (शब्द०)। बस्ती थी। पर अब दो चार धर रह गए हैं। चंगेर, चंगेरो-संज्ञा स्त्री० [सं० चङ्गरिक] १. वौस की पट्टियों की • चंपापुरी-संवा स्त्री० [सं० चम्पापुरी ] अंगदेश के राजा की बनी हुई छिछली डलिया। थाली के आकार की चौत की राजधानी । कर्णपुरी । उ०—यापट जाइ फंदनि पकरि दुरद चौड़ी टोकरी । २. फूल रखने की डलिया। डगरी। उ०--- . प्रानि चंपायरिय।-पृ० स०, २६६ । रघुनाथ काल्हि भेजे मेवा भांति भांतिन के फूलन के हार सों चंपारण्य --संज्ञा पुं० [सं० चम्पारण्य प्राचीन काल का एक जंगल चंगेर सोने की भरी । - रघनाथ (शब्द०)। ३. चमड़े का जो कदाचित् उस स्थान पर रहा हो, जिसे आजकल चंपारन जलपान । मशक । पखाल । ५. रस्सी में बांधकर लटकाई हुई टोकरी जिसमें बच्चों को सुलाकर पालना झुलाते हैं। बहुत - चंपारन - संज्ञा पुं० [सं० चम्पारण्य] विहार प्रांत का एक प्रदेश छोटे बच्चों का यह झूला जिसे बच्चा जनमने पर फूफी ' या जिला । ग्रादि संबंधी स्त्रियाँ बच्चे की माँ को भेंट करती हैं। उ० -- · चंपाल-संज्ञा पुं० [सं० चम्पालु) दे० 'चंपकालु फिो]। रघकुल की सब सुनग सुवासिनि शोसन लिए चंगेरी । विविध चंपावती--संशमी० [सं० चम्पावती] दे॰ 'चपापुरी' [को०] । भांति की जटि त जवाहिर दीपावली घनेरी !--रघुराज ..पू-संज्ञा पुं० [सं० चम्पू] गद्यपद्यमय काव्य । वह काव्यग्रंथ जिसमें (शब्द०)। ५. चांदी का एक जालीदार पात्र जो प्रायः प्याले - गद्य के बीच बीच में पद्य भी हो । जैसे, नलचंपू। के आकार का होता है। यह भी फूल रखने के काम में चपल@--संधा पुं० [सं० चम्पा+हि तेल ] चमेली का तेल । प्राता है। उ०-धांध बड़री छहड़ी, नीतू नागरवेल । डाँभ संभाल चंगेरा-संघा पुं० [हिं० चंगेरी] बड़ी चगेर । टोकरा। - करहला, चोपडिसू चंपेल ।-ढोला०, दू० ३२०।। चेंगेल-संशाची दिया०] एक पास जो पुराने खेड़े या गिरे हए --संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'चुबक' । उ०--सुई होहिं चेतन्य मकानों के खंडहरों में उत्पन्न होती है। . यया चंबक के संगा !- सुंदर० ग्रं॰, भा॰ १, पृ० ५.६ । विशेप- इसकी पत्तियां गोल गोल होती हैं और खाने में कुछ अवल'--संज्ञा स्त्री० [सं० चर्मरावती] १. एक नदी जो विध्य पर्वत से कनकनाती है। इसमें कुछ कालापन लिए लाल रंग के घंटी के . निकलकर इटावे से १२ कोस पर जमुना में जा मिली है। प्राकार के फूल लगते हैं । बीज गोल गोल होते हैं और हकीमी २. नहरों या नालों के किनारे पर लगी हुई लकड़ी जिसते चिकित्ता में ये खुब्बाजी के नाम से प्रसिद्ध है। यह पात फारस सिंचाई के लिये पानी ऊपर चढ़ाते हैं। के शीराज, मर्जदरान यादि प्रदेशों में बहुत होती है। चंबल-संक पुं० पानी की वाढ़। चंगेली-संशा श्री० [हिं० चं गेरो] ३. 'चीर' या 'चरी' । मुहा०-चंबल लगना खव पानी बढ़ना । जलमय होना। चचरी-संशा की० [देश॰] १. माझियों की भाषा में पत्थर के ऊपर वरल-संज्ञा पुं० [फा चुवल] १. भीख मांगने का कटोरा या से होकर बहनेवाला पानी। २. एक चिड़िया जो भारत में चप्पर । २.चिलम का सरपोश । स्थिर रूप से रहती है। यह छोटा घोंसला बनाती है जो जमीन पर पास मादि के नीचे छिपा रहता है। यह प्रायः चबली-संग सी. [फा० च बल] एक प्रकार का छोटा प्वाला। तीन अंडे देती है। ३. वह अन जो दाना पीटने पर भी बाल चा-संवा झो० [देश॰] कागज या मोमजाम का एक तिकोना टुकड़ा में लगा रहे। गरी। कोनी । करही। भूधरी । (ज्वार, मूग " जो कपड़ों पर रंग छापते समय उन स्थानों पर रखा जाता आदि के लिये )। है, जहां रंग चढ़ाना मंजूर नहीं होता । पट्टी। फतरनी1 चंचोरना-क्रि० स० [अनु॰] दांतों से दवा दबाकर चमना । चबू-संवा पुं० [8] १. एक प्रकार का धान जो पहाड़ों में विना तींची जैसे. हड्डी च चारना। दे'चोड़ना । 30--या माया के हुई जमीन पर चैत में होता है। २. तबि. पीतल या और कारनेहरिसी बटा तौरिमाया कारक मदीन है. केता गया -... किसी धातु का छोटे मुह का सुराहीनुमा वरतन जिससे हिंदू चमोरि-वीर (गन्द०)। देवभूतियों पर जल चढ़ाते हैं। ३. एक प्रकार का जोड़ा जो चंड़ाई-भाको दरड(तेज)] १. सीनता। शन्दी।