पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३६०

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चंपना १४३७ चंदनौता फुरती। चटपटी। उतावली । उ०--(क) देखहु जाइ कहा जेवन कियों जसुमति रोहिनी तुरत पठाई । मैं ब्रह्मवाए देति दुहुन को तुम भीतर अति करी थाई । - सूर (शब्द॰) । (ख) कहा भयो जो हम पै पाई कुल की रीति गमाई । हमहूँ को विधि को डर भारी अजहूँ' जाहु चंड़ाई।-सूर (शब्द॰) । २.प्रवलता। जवरदस्ती। अधम अत्याचार । उ०--करत चडाई फिरत ही नागर नंदकिशोर ।-- (शब्द०)। चॅदनौता--संडा पुं० [देश॰] एक प्रकार का लहंगा । उ०-च दनौता जो खर दुख भारी । बाँसपूर झिलमिल की सारी । ---जायसी (शब्द०)। चॅदर -संज्ञा पुं० [सं० चन्द्र ३०'चंद्र'। उ०-सेत पियर मन जोत बिलौके और च दर सम पास न रोक ।-इंद्रा०, पृ० ७। चंदराना-क्रि० स० [सं० चन्द्र (दिखलाना)] १.झुठलाना। बहकाना । बहलाना । २ जान बूझकर कोई बात पूछना। जान बूझकर अनजान बनना। चंदला-वि०हिं० चाँद (-खोपड़ी)] जिसकी चाँद के बाल झड़ गए हों। गंजा । खल्वाट । चॅदवा-मंणा पुं० [मे० चन्द्रक या चन्द्रातप] १. एक प्रकार का छोटा मंडप जो राजाओं के सिंहासन या गद्दी के ऊपर चाँदी या सोने की चार चोबों के सहारे ताना जाता है। च दोवा । २.च दरछत । ३. वितान । उ०-ऊपर राता च दवा छावा । यो भुई सुरंग बिछाव विछावा ।--जायसी (शब्द०) विशेष-इसकी लंबाई चौडाई दो ढाई गज से अधिक नहीं होती और यह प्रायः मखमल, रेशम प्रादि का होता है, जिसपर कारचोब का काम बना रहता है । इसके बीच में प्रायः गोल काम रहता है। चँदवार-संशा पुं० [सं० चन्द्र क] १. गोल आकार की चकती। गोल थिगली या पंवंद । जैसे रोपी का चंदवा । २. [स्त्री० चंदियाँ] तालाब के प्रदर का गहरा गड्ढा जिसमें मछलियाँ पकड़ी जाती हैं। ३. मोर की पूछ पर का प्रद्धचंद्राकार चिह्न जो सुनहले मंडल के बीच में होता है। मोरपंख की चंद्रिका । उ०-(क) मोरन के चंदवा माथे बने राजत रुविर सुदेसरी। बदन कमल ऊपर अलिगन मनों घू घरवारे केस री ।-सूर (शब्द॰) । (ख) सोहत हैं चंदवा सिर मोर के जैसिय सुदर पाग कसी हैं। रसखान (शब्द०)। ४. एक प्रकार की मछली। चंदवार-संज्ञा पुं० [हिं० चंदवार] दे० 'चंदवार' । उ०-जेठ मास वरसात में पगधारे च दवार ।- कवीर मं०, पृ० ५६३ । चदिया-संज्ञा सी० [हिं० चाँद+इया (प्रत्य)] १. खोपड़ी। सिर का मध्य भाग। महा---'दिया पर बाल न छोड़ना=(१) सिर के बाल तक न छोड़ना । सब कुछ ले लेना । सर्वस्व हरण कर लेना। (२) सिर पर जूते लगाते लगाते बाल उड़ा देना । खूब . जूते उड़ाना। चौंदिया से परे सरक-सिर के ऊपर से अलग जाकर खड़ा हो । पास से हट जा । व दिया मूड़ना= (१) सिर मुड़ना । हजामत बनाना । (२) लूटकर खाना। धोखा देकर किसी का धन यादि ले लेना । (३) सिर पर खूब जूसे लगाना। च दिया खाना=(१) बकवाद से तंग करना । सिर खाना। सिर में दर्द पैदा करना । (२) सब कुछ हरण मारके दरिद्र बना देना। चदिया खुजाना (2) सिर युजलाना । (२) गार या जूते खाने को जो जी चाहना।' मार खाने का काम करना। २. छोटी सी रोटी। बचे हुए ग्राटे की टिकिया । पिछली रोटी ३. किसी ताल में वह स्थान जहाँ सबसे अधिक गहराई हो। जैसे,—इस साल तो ऐसी कम वा हई कि तालों की च दिया भी सूच गई। ४. नौदी की टिकिया। चंदेरी-संशा पी० [सं०चोदि या हि० चन्देल ] एक प्राचीन नगर। उ०-राय चंदेरी को नेपाल । जाको सेवत सत्र भूपाल ।- सूर (शब्द०)। विशेष यह ग्वालियर राज्य के नरवार जिले में है। प्राज कल की बस्ती में ४, ५ कोस पर पुरानी इमारतों के खंडहर : हैं। पहले यह नगर बहुत समृद्ध दशा में था; पर मव .. कुछ उजड़ गया है। यहां की पगड़ी प्रसिद्ध है। दिरी में कपड़े (सूती और रेशमी) अब भी बहुत अच्छे बुने जाते हैं। यहाँ एक पुराना किला है जो जमीन से २३० फुट की ऊँचाई पर है। इसका फाटक बनी दरवाजा' के नाम से " प्रसिद्ध है; क्योंकि पहले यहां अपराधी किले की दीवार पर से ढकेले जाते थे। रामायण, महाभारत पोर. बौद्ध ग्रंथों : . के देखने से पता लगता है कि प्राचीन काल में इसके आस- पास का प्रदेश चेदि, कलचुरीया हैहय वंश के अधिकार में : था और चेदि देश कहलाता था। जब चंदेलों का प्रताप चमका, तब उनके राजा यशोदर्मा (संवत् १२ से. १०१२ . तक) ने कलच रि लोगों के हाथ से कालिजर का किला .. तथा आसपास का प्रदेश ले लिया। इसी से कोई कोई देरी शब्द की व्युत्पति देल' से बतलाते हैं। अलबरूनी ने च देरी का उल्लेख किया है । सन् १२५१ ईसवी में - गयासुद्दीन बलबन ने चंदेरी पर अधिकार किया था। सन् १४६८ में यह नगर मालवा के बादशाह महमुद खिलजी के अधिकार में गया। सन् १५२० में चित्तौर के राणा सांगा ने इसे जीतकर मेदिनीराव को दे दिया। मेदिनीराव से इस नगर को वावर ने लिया । सन् १५८६ के उपरांत बहुत . दिनों तक यह नगर बुंदेलों के अधिकार में रहा और फिर । अंत में सन १८११ में यह ग्वालियर राज्य के अधिकार में . पाया। चंदेरीपति-संधा पं० [हिं० चंदेरी+सं०पति च देरी का राजा।। शिशुपाल । चदोप्रा-संषा पुं० [हिं० चदवा] दे॰ 'चदवा' । उ०--संसार ताप । से बचाने के निमित्त भक्ति के मंडप का चंदोमा रचा हा है। भक्तमाल (श्री०), पृ०३८२1 चंदोया-संज्ञा पुं० [हिं० चदया], दे० 'च दवा'। चॅदोवा--संक्षा पुं० [हिं० च दवा] १० च दवा'। चपना-क्रि० स० [सं० चप्] १. वोझ से दबना । दवना । " से दबना । लज्जित होना। ३. उपकार से दबना। एहसान , से दवना। वा] दे० 'च'दवा।