पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३६१

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पानी १४३८ . चक' पोनी-संवा स्त्री० [हिं० चाँपना] जुलाहों के करघे की भजनी में जलशयों के किनारे होता है। इसकी जड़ जादी नष्ट नहीं एक पतली लकड़ी जो दूसरी भौज को दबाने के लिये लगी होती; और यदि वृक्ष काट भी लिया जाय, तो उसमें फिर रहती है। पत्ते निकल पाते हैं। इसके पत्तों का प्राकार पान का सा - चंदेलि-संशा सौ. [हिं॰ चमेली] दे॰ 'चमेली' । उ०-कोइ होता है। इसकी जड़ तथा लकड़ी दवा के काम में प्राती है। वेलि नानैसरि बरना। जायसी ग्रं० (गुप्त), पृ० २४७। चउँकना--क्रि० प्र० [हिं० चौंकना ] दे० 'चौंकना'। -वैलिया-वि० [हिं० चमेली] दे० 'चमेलिया'। चोंकना-क्रि० प्र० [हिं० चौकना ] दे॰ 'चौंकना' । उ०- ...चलो-संच श्री० [हिं० चमेली] रे' 'चमेली'। हरि धरि हार चोंकि पर राधा। अध माधव कर गिम भार-संवा पुं० [हिः 'चमार] दे० 'चमार'। उ० जा तन सू रहु प्राधा । -विद्यापति, पृ० ५५० । मुजे कछु नहिं प्यार, असते के नहिं हिंदु घेड चमार। चहान-संवा पुं० [हिं० चौहान ] दे० 'चौहान' । दश्विनी०, पृ० १०१ । चउको-संशा पुं० [हिं० चौक ] दे॰ 'चौक' । -चंबर- संज्ञा पुं० [सं० चामर] [स्त्री० अल्पावरी] १. सुरा गाय चउकी-मंधा ली० [हिं० चौकी ] दे० 'चौकी'। ... की पूछ के बालों का गुच्छा जो काठ, सोने, चांदी आदि चउगुनल वि० [सं० चतुगुण ] 'चौगुन'। उ.-चांद वदनी F ' को डांड़ी में लगा रहता है। धनि चकोर नयनी। दिवसे दिवले भेलि चउगुन मलिनी।- . विशेप यह राजायों या देवमतियों के सिर पर, पीछे या बगल विद्यापति०, पृ० १६५। . से डुलाया जाता है, जिससे मक्खियाँ आदि न बैठने पावें। चउतरा-संवा पुं० [हिं० चौतरा ] दे॰ 'चबूतरा' । i कभी यह बस का भी बनता है । मोर की पूछ का चउथा-वि० [हिं० चौथा ] दे० 'चौथा। .: . जो चंदर बनता है, उसे मोरछल कहते हैं । पॅवर प्रायः चउदसा-मंश ली० [हिं० चौदस ] दे॰ 'चौदस' ! .: तिब्बती और भोटिया ले आते हैं। च उदहा--वि० [हिं० चौदह ] . 'चौदह' । यो०-चंवरी गाय = वह गाय जिसकी पूछ के बाल से चंवर चउपाई-संवा सौ० [हिं० चौपाई ] दे० 'चौपाई।

बनाया जाता है।

चउपारिरी-संञ्चा सौहिं० चौपाल ] दे० चौपाल' । .:२. घोड़ों और हाथियों के सिर पर लगाने की कलगी। उ०- चउर -संशा पुं० [हिं० चेंबर ] | मोरछल । उ० घरि घरि ....... तैसे चंवर वनाए औ घाले गल झंप। बंधे सेत गजगाह सुंदर वेप चले हरपित हिये। चउर चीर उपहार हार - तहँ जो देखै सो कंप।-जायसी (शब्द०)। मनिगन लिये । -तुलसी (शब्द०)। वरदार-संक्षा पुं० [हिं० चवर+ढारना] चंवर डोलानेवाला चउरा-संडा पुं० [हिं० चौरा] दे० 'चौरा'। ... सेवक । उ०-चेंबरडार दुइ चवर डोलावहिं ।-जायसी चउरासी--वि० [हिं० चौरासी] दे० 'चौरासो' । उ०--चरित्र चउरासीह पाल, दिलविलती काई मेल्हे जाई।--बी० . वरी-संवा श्री० [हिं० चवर लकड़ी के बॅट या डाँड़ी में लगा रासो, पृ० ४७1 . हुआ। घोड़े की पूछ के बालों का गुच्छा जिससे घोड़े के चउरास्या--संज्ञा पुं० [हिं०] चारों ओर वैठनेवाले मुसाहिब । - ऊपर की मक्खियां उड़ाई जाती हैं। . जागीरदार । उ०-धार नगरी राजा भोज नरेस । चहकार-संवा श्री. ह. चहकार ] दे॰ 'चहकार'। उ०-- चउरास्या जे के वसइ असेस ।-बी० रासो. पृ०६। ..चातक की चहकार और किलकार से कूजित ।-प्रेमघन०, चउहा --मंबा पुं० [हिं० ची+हाट ] चौहट्ट । चौराहा । उ०-- भा० २, पृ० ११ ॥ चउहट्ट हाट सुवट्ट वीथी चाक पुर बहुविधि बना।--- च- संज्ञा पुं०सिं०] १. कच्छप । कछया । २. चंद्रमा । ३. चोर। मानस,।

. ४. दुर्जन । ५. शिव (को०)। ६. चर्वण । भक्षण (को०)।

चउहान -संज्ञा पुं० [हिं० चौहान] दे० 'चौहान'। -च-वि० १. निर्वीज । २. बुरा । अधम । ३. शुद्ध (को० । चक'--संज्ञा पुं० [सं० चक्र, प्रा० चक्क] १. चकई नाम का खिलौना । --प्रव्य० सं०] और किो०। उ०-इत पावत दै जात दिखाई ज्यों भंवरा चक डोर । प-संशा स्त्री० [अनु॰] महावतों की बोली का एक शब्द जिसका उततें सूत न टारत कतहूँ मोसों मानत कोर ।--सूर - . व्यवहार हाथी को घुमाने के लिये किया जाता है। (शब्द०)। २. चक्रवाक पक्षी। चकवा । उ०-संपति चकई - चइत्त महा पुं० [सं० चैत्र ] • 'चैत' । भरत चक, मुनि श्रायसु खेलवार । तेहि निसि पाथम चाइना-संक्षा पुं० हि चन] दे० 'चन । पींजरा, रावे मा भिनसार । -तुलसी (शब्द०)। ३. चक्र -: पह-संवा खौ- [सं० चब्य पिपरामल की जाति और लता की नामक अस्त्र । ४. चक्का । पहिया ५. जमीन का बड़ा तरह का एक प्रकार का पेड़ । वि० दे० 'चाव।। टुकड़ा । भूमि का एक भाग । पट्टी। '. विशेष--यह दक्षिण भारत तथा अन्य स्थानों में नदियों और यौ०-चकबंदी।

(शब्द०)।