पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३७२

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चक्राकृति १४४६ ___ चक्षुनिरोध चक्राकृति-वि० [सं०] दे॰ 'चक्राकार' (को०] । . वक्री--वि०१. चनयुक्त। चकवाला । २. चक्रधर । चक्रधारी । ३.। चक्राट--संज्ञा पुं० [सं०] १. मदारी'। साप पकडनेवाला । २. सांप रथारूढ़ । ४. गोल । गोल: ईवाला । ५. सच क (को०। । का विप झाड़नेवाला । ३. धुर्त । धोखेबाज । ४. सोने का एक म पर चक्र श्वर-संज्ञा पुं० [सं०] १. चक्रवर्ती । २. तांत्रिकों के चक्र का सिक्का । दीनार । . .. अधिष्ठाता । ३. चक्र या मंडल का अधिपति (को०)। ४. विष्णु (को०)। चक्काथ-संज्ञा पुं० [सं०] एक कौरव योद्धा का नाम । चक्रेश्वरी--संज्ञा बी० [सं०] जैनों की महाविद्याओं में से एक। चक्राधिवासो-संवा पुं० [सं० चकाधिवासिन्] नारंगी। चक्ष-संश्वा पुं० [सं०] नकली या बनावटी मित्र (को०)। चक्रानुक्रम--संज्ञा पुं० [सं०] दे॰ 'चक्रक्रम' [को०] । चक्षण- संज्ञा पुं० [सं०] १. गजक । चाट । मद्य के ऊपर खाने की । चक्रायुध-संशा पुं० [सं०] विष्णु ।. वस्तु । २. कृपादृष्टि । अनुग्रह । ३. कथन । ४. चवना चक्रार - संशा पुं० [सं०] पहिए की परिधि और धुरी को मिलानेवाली (को०)। अराएं [को०] ! चक्षम--संशा पुं० [सं०] १. वृहस्पति । २. उपाध्याय । . ... चत्रावर्त संज्ञा पुं॰ [सं०] १. गोलाई में होनेवाली गति। २. माँधी (को० । चक्षा माधी (काog' , चक्षा--संज्ञा पुं० [सं० चक्षस्] १ बृहस्पति । २. आचार्य । ३. गुरु ।। चक्रावल---तंञ्चा पुं० [सं० चक्रावलि] घोड़ों का एक रोग जिसमें उनके ___ स्पष्टता । ४. दर्शन । दृष्टि । नेत्र । ५. चक्षु (को०] । पैरों में घाव हो जाता है। इससे कभी कभी वे लंगड़े भी हो चक्षुः-संज्ञा पुं० [सं०] चक्ष स् का समासगत रूप किो०। जाते हैं । चक्षःपथ- संज्ञा पुं॰ [सं०] १. दृष्टिपथ । २. क्षितिज [को०]। . चक्राश्म--संज्ञा पुं० [सं० चक्राश्मन] वह यंत्र जिससे पत्थर दूर तक चक्षुःपीड़ा-संधा श्री० [सं० चक्षु:पीडा) आँख में होनेवाली पीड़ा फेंका जाता था (को०] । को । चक्राह-संथा पुं० [सं०] १ चकवा पक्षी । चकवाक । २. चकवड़। चक्षुःराग-संघा पुं० सं०] अाँख की ललाई [को०] । चक्राहय-संज्ञा पुं० [सं०] दे॰ 'चक्राह' (को०)। . चक्षुःश्रवा--संज्ञा पुं॰ [सं० चक्षुःश्रवस्] वह जीव जो आंखही से सुने।। चक्रि--संज्ञा पुं० [सं०] कर्ता [को०] । . सांप। सर्प। चत्रिक- संज्ञा पुं० [सं०] चक्र धारण करनेवाला । चक्षु-संज्ञा पुं० [सं० चक्षुष्] १. दर्शनेंद्रिय । आँख। चत्रिका--संज्ञा स्त्री० [सं०] १. घुटने पर की गोल हड्डी । चक्की । २. मुहा०-चक्षु चार होना=दे० 'आँखें चार होना' 1 30-कोई। ____ अँड । समूह (को०) । ३. सेना (को०) । ४. दुरभिसंधि (को०)। ___ कुरंगलोचनी किसी नवयुवक से वक्षु चार होते हो। -~-प्रेमधन, भाग २, पृ० ११६ । चक्रित-वि० [सं० चकित] दे॰ 'चकित' । उ०--चहु दिसि चित २. विष्णु पुराण में वरिणत अजमीढ वंशी एक राजा जिसके पिता चक्रित ऋपि भयऊ ।- ह. रासो, पृ० २७।। का नाम पुरुजानु और पुत्र का नाम हर्यश्व था। ३. एक नदी। चक्रिय वि० [सं०] १. रथ पर जानेवाला । २. सफर करनेवाला। का नाम जिसे आजकल माक्सस या जेहूँ कहते हैं। . . __ यात्रा करनेवाला [को०) 1 विशेष- वेदों में इसी का नाम वानद है। विष्णु पुराण में लिखा । चक्री' -पंधा पुं० [सं० चक्रिन्] [श्री० चक्रिणी] १. वह जो चक है कि गंगा जब ब्रह्मलोक से गिरी, तव चार नदियों के रूप धारण करे । २. विष्णु । ३. ग्रामजालिक । गाँव का पंडित में चार पोर प्रवाहित हुई । जो नदी के तुमाल पर्वत के बीच या पुरोहित। ४. चक्रवाक । चकवा । ५. , कुलाल । से होती हुई पश्चिम सागर में जाकर मिली, उसका नाम कुम्हार । ६. सर्प । उ०-मिलि चक्रिन चदन वात वहै चक्षुस् हुप्रा। अति मोहत न्यायन ही मति को।-राम चं०, पृ०.८१ ४ . देखने की शक्ति (को०)। ५ प्रकाश या रोशनी (को०) 1.६. ७. सूचक । गोइंदा । जासूस । मुखविर । दूत। चर। कांति । तेज (को०)। ८. तेली । ६. बकरी। १०. चक्रवर्ती । ११. चक्रमदं । चक्षुर संज्ञा पुं० [सं०] 'चक्षुस्' का समायगत रूप [को०]। . चकबड़। १२. तिनिश वृक्ष । १३. व्याघ्रनख नाम का चक्षुरपेत-समा पुं० [स०] अधा (को।' गंधद्रव्य । बधनहाँ ।' १४. काक । कौमा। १५. गदहा। चक्षरिद्रिय-या स्त्री॰ [सं० चक्षरिन्द्रिय देखने की इंद्रिय । आँख । गधा। १६. वह जो रथ पर चढ़ा हो। रथ का सवार। चक्षर्गोचर-वि० [सं०] दृष्टिगोचर (को०)। १७. चंद्रशेखर के मत से पाय छद का २२ वाँ भेद जिसमें चक्षदर्शनावरण---संज्ञा पुं० [सं०] जैन शास्त्र में वह कर्म जिसके ६ गुरुवार ४५ लथु, हात है।। १८. एक वरणसंगर जाति उदय होने से चक्ष द्वारा सामान्य बोध की लब्धि का । जिसका उल्लेख प्रौशनस के 'जाति विवेक' में है। १९. विघात हो। सभा । उ०-चक्री विचाल रघुवर विताल'।-रघु० रू., 'चक्षन-संप पुं० [सं०] प्राणप्रतिष्ठा के समय मूर्ति के नेत्रों में पृ०२४३ । २०.शिव (को०)। २१. मंडल का अधिपति . अजन आदि देना या रंग भन्ना [को० । (को । २२. ऐद्रजालिक । 'बाजीगर (को०) । २३. पड्यंत्र चक्षनिरोध-संक्षा पुं० [सं०] अाँख की पट्टी । वह पट्टी जो प्रखि पर । ...करनेवाला (को०) । २४. वंचक (को०)। लगाई जाय को। . - - - -