पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४१२

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चलनि चलान 30---कहे तुका सवहि पलनार। एक राम बिन नहीं वा चलवैया'-वि० [हिं० चलना] चलनेवाला। सार! -दक्खिनी०, पृ० १०४॥ चलवैया--वि० [हिं० चालना] चालनेवाला। चलनि -संज्ञा स्त्री॰ [हिं० चलन] दे० 'चलन'। चलसंपत्ति--संशा स्त्री० [सं०चल सम्पत्ति] वह संपत्ति जिसका स्थाना- चलनिका--संशा लो० ]०] १. स्त्रियों के पहनने का घाघरा या तर हो सके। वह संपत्ति जो एक स्थान से दूसरे स्थान पर साया। २. रेशमी झालर । ले जाई जा सके। चलनी-संशा श्री० [सं० चारनी, हिं० दे० 'छलनी'। चला'-संशा सी० [सं०] १. विजली। दामिनी । २. पृथ्वी । भूमि ।। चलनी--- संज्ञा स्त्री० [सं०] १. साधारण कोटि की स्त्रियों के पहनने ३. लक्ष्मी । ४. पिपली । पीपल । ५. शिलारस नाम का का एक प्रकार का छोटा साया। २. हाथी बाँधने का रस्सा गंध द्रव्य । (को०] । चलासंह पुं० [हिं० चाल या चलना] १. व्यवहार । प्रचार । चलनीस--संक्षा पुं० [हिं० चलना+ौंस (प्रत्य॰)] वह पदार्थ रिवाज । चाल । रीति रस्म । दस्तुर । २. अधिकार । जो चलने से छलनी में रह जाय । चोकर । चालन । प्रभुत्व । स्वामित्व । उ०---अभी तो ऐसा नहीं हो सकता; चलनौसना-छा पुं० [हिं०] दे॰ 'चल नौस' । जब तुम्हारा चला हो, तब तुम जो चाहे सो करना । चलपत -संज्ञा पुं० [सं० च पत्र (=चंचल पत्रवाला अर्थात् चलाऊ-वि० [हिं० चल+प्रांऊ (प्रत्य०)] १. जो बहुत दिन पीपन) ] ३० 'चलपत्र' । तक चले । चि रस्थायी । मजबूत । टिकाऊ । २. बहुत चलने चलपत्त- वि० पीपल के पत्ते की तरह चंचल । अत्यंत चंचल । फिरने या घूमनेवाला। उ०--ढोलउ मन चलपत थयड जमउ साहइ लाज । सामउ चलांका--वि० [फा० चालाक दे० 'चालाक'। बीसू प्रावियउ, प्राइ कियउ सुभराज 1-~-डोला०, दु० ४४७ । चलांकी -- सं ० [फा० चालाकी] 'चालाकी'। चलपत्र-संज्ञा पुं० [सं०] पीपल का वृक्ष । चलाऊ-वि० [हिं० चल ---श्राऊ (प्रत्य॰)] १. चिरस्थायी । चलपूजी-संज्ञा स्त्री० [हिं० चल+पूजी ] वह पूजी जिससे एक टिकाउ । २. चलने फिरने या धूमनेवाला। ३. चलने को मनुष्य केवल एक वार उत्पादन कर सकता है। तैयार। चलवाक'---वि० [हिं०] दे० 'चरवाक'। चलाका@--संज्ञा स्त्री॰ [सं० चला (= बिजली)] विजली । विद्युत् । चलबांक--वि० [हिं० चलना+बाँका ] तेज चलनेवाला । तडित् । उ०-सुदर कसौटी वीच ललित लकीर जिमि मेघ शीघ्रगामी। मैं चलाका जैसे शोभा प्रेम जाल की ।- (शब्द०)। च लविचल--वि० [हिं०] दे० 'चलबिचल' । चलाचल'@--संज्ञा श्री० [हिं० चलना] १. चलाचली। २. गति । चलमित्र संक्षा पुं० [सं०] कौटिलीय मत से वह मित्र (राजा) जो चाल । उ०-उपदेव विराट भिरे वल सों। पुरई धुनि चाप सदा साथ न दे सके । वि० दे० 'अनर्थ सिद्धि'। चलाचल सों।-गोपाल (शब्द०)। चलमुद्रा-संज्ञा स्त्री० [सं० चल+मुद्रा] जो मुद्रा चलन में हो। चलाचल --वि० [4] चंचल । चपल । उ०--वैनिन की गति वह मुद्रा जिसका चलन पूरे देश में समान रूप से हो । गूढ़ चलाचल के शवदास आकाश चढ़ेगी। केशव (शब्द०)। चलवंत@--संदा पुं० [सं० चल+वत] पैदल सिपाही। प्यादा। चलाचली-सहा सी० [हिं० चलना] १. चलने के समय की चलवाई --संज्ञा स्त्री० [हिं० चलना चलने का कार्य या स्थिति । घबराहट, धूम या तैयारी। चलने की हड़बड़ी। रबारवी। चलवाई:--संधा जी० [हिं० चालना ] १.चालने का काम या २. बहुत से लोगों का प्रस्थान । बहुत से लोगों का विासी एक स्थिति । २. चालने की मजदूरी। स्थान से चलना । उ०-हय चले, हाथी चले संगछाडि साथी . चलवाना-क्रि० स० [हिं० चलना का प्रे० रूप ] १. चलने का चले, ऐसी चलाचली में अचल हाड़ा ह रहयो। भूषण कार्य दूसरे से कराना । २. चालने का काम कराना। (शब्द०)। ३. चलने की तैयारी या समय । ४. महाप्रस्थान की तैयारी या समय । अंतिम समय। चलविचल' वि० [सं० चल+विचल] १. जो अपने स्थान से हट क्रि० प्र०--लगना । होना। गया हो। जो ठीक जगह से इधर उधर हो गया हो। उखड़ा चलाचलो-- विजो चलने के लिए तैयार हो। चलनेवाला । उ०- पुखड़ा । अंडबंड। बेठिकाने । जैसे,—(क) इतने ऊपर से बिरह विपत्ति दिन परत ही तजे सुखन सब अंग । रहि अब कूदते हो, कोई हाडी चलबिचल हो जायगी, तो रह जानोगे। लौ अब दुख भए चलाचली जिय संग 1-बिहारी (शब्द०)। (ख) उसका सब काम चलबिचल हो गया। २. जिसके क्रम चलातंक--संज्ञा पुं० [सं० चलातङ्क] एक प्रकार का वातरोग, . या नियम का उल्लंघन हया हो । अव्यवस्थित । जिसमें हाथ पांव प्रादि अंग काँपने लगते हैं। कंपवाई। चल विचल-संशश नीय किसी नियम या कम का उल्लंघन । राशा। . नियमपालन में त्रुटि । व्यतिक्रम । उ०-जहाँ जरा सी चल- चलान--संवा श्रीहिचलना] १. भेजे जाने या चलने का विचल हुई, कि सब वाम बिगड़ जायगा। क्रिया । २. भेजने या चलने की क्रिया। ३. किसी अपराधी विशेप-इस शब्द को कहीं कहीं पुं० भी बोलते हैं। का पकड़ा जाकर न्याय के लिये न्यायालय में भेजा जाना। .