पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४३१

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१५१० भारतवर्ष में नहीं था। चीन से चाय मंगा मंगाकर जवने ईस्ट इंडिया कंपनी यूरोप को भेजने लगी तभी से इसकी और . ध्यान प्रापित हुया और भारत में उसके लगाने का भी च्योग. प्रारंभ हया । पहले पहल यहाँ मालाबार के किनारे पर चीन से बीज मंगाकर चाय उत्पन्न करने की चेष्टा अंग्रेजों द्वारा की गई क्योंकि तब तक यह नहीं जात या कि यह पौधा भारतवर्ष में भी जंगली होता है। पर यह चाय उस चाय से भिन्न थी जो सामान में होती है । लशाई चाय की पत्तियों सबसे बड़ी होती हैं । नाला चाय की पत्तियाँ पक्षली और छोटी होती है। चाय की पत्तियां यों ही सुखाकर नहीं पी जाती हैं। थे अनेक प्रक्रिरयों से सुगंधित और प्रस्तुत की जाती हैं। वाय के अनेक प्रकार के जो नाम फल प्रचलित हैं, उनमें से अधिकांशनुमभेद के सूचक नहीं हैं, केवल प्रक्रिया के भेद से या पत्तियों की पदस्था के भेद से रखे गए हैं। साधारणतः चाय के दो भेद्र प्रसिद्ध हैं - फानी चाय पीर हरी चाय । यद्यपि चीन में कहीं कहीं पनियों में यह भेद देखा जाता है; जैसे- कियाङसू पर्वत को हरी चाय जिसे मुगली कहते हैं और सानटन (कंटन) की पटिया काली चाय, पर अधिकतर यह • भेद भी अब प्रकिया पर निर्भर है। काली चायों में पीको, बोदिया कांगो, न चंग ब्रहत प्रसिद्ध है और हरी चायों में से दृकि, देसन, बानद प्रादि । काली चायों में से पीको सबसे स्थादिष्ट और उत्तम होती है और हरी चायों में से बाद चाय सबसे बढ़िया मानी जाती है । नारंगी पीको में बहुत अच्छी सुगंध होती है। ये दोनों प्रकार की चाय पहली चुनाई ही होता है, मन कि पशियां बिस्छन नए कल्ली के रूप में रहती हैं। चाय दी जी से उत्पन्न की जाती है। • २.बाय लामा या पानी । चाय का काढ़ा । ३. दूध तथा भी मिश्रित नाय का काढ़ा या पानी। त्रि० प्र० पोना ।—पनाना-लेना। यो०-पायजानी पालपाद । - -मदः पुं० [ हिनाद] 'चाब। - चाय,' मंश : चंप सनर । ३०-सुपन सुपर दिल्ली ... कथा, सही दवद्वाय । बाग करि वर्ग पिथ्य अंकुर चायल-वि० [हिं० पायक] १.चाहने योग्य । २. चाह वारी। 10- चाय भरी चायल चपल दुग जोरती।-हम्मीर०, पृ०२॥ चार'-वि० [म० चत्वारः,प्रा० चनारो] १. जो गिननी में दो और दो हो । तीन से एक अधिक जैने, चार पादमी। यो०-चार ताल-तबले या मृदंग के एक ताल का नाम । चौताला । चार पाँच % (१) इधर उधर की दात । हीला. हुबाला । (२) हृज्जत । तकरार । वार मगज-हकीनी में चार वस्तुणों के बीजों की गिरी खीरा, ककड़ी, कद्द, पौरखरबूजा । मुहा०-चार प्रखें करनापांखें मिलाना । देवा देखी करना। सामने पाना । साक्षात्कार करना । मिलना । जैसे,-प्रब बह हमारे सामने चार ग्रान्वें नहीं करता । चार प्रायें होना नजर से नजर मिलना । देखा देवी होना । साक्षात्कार होना। चार चाँद लगना = (१) चौगुनी प्रतिष्ठा होना । (२) चौगुनी शोभा होना । सौंदर्य बढ़ना (श्री०) । चार के कंधे पर चढ़ना या चलना=मर जाना । मशान को जाना । चार पगड़ी करना=जहाज का लंगर डालना । चार पाँच फरना (१) हीला हवाला करना । इधर उधर करना । बातें बनाना। (२) हुज्जत करना । तकरार करना । चार पांच लाना = दो० 'चार पांच करना' । चारो फुटना=चारों अांखें फूटना (दो हिये की दो उपर की )। अंबा होना । ३०--धाछो गात प्रकारथ गारयो । करी न प्रीति कमल- लोचन सों जन्म जुबा ज्यों हारयो । निसि दिन विषय दिलासनि विलसत फूटि गई तब चारचौ --सूर (शब्द०)।. चारो खाने चित्त गिरना या पड़ना=ऐसा चित गिरना जिससे हाथ पांव फैल जायें। हाथ पांव फैलाए पीठ के बल गिरना । किसी कारण संवाद को पाकर वंभित होना ।, अक्स्मात् कोई प्रतिकूल बात सुनकर रुका रह जाना । बेसुध होना । सकपका उठना । २. कई एक । बहुत से । जैसे,-चार प्रादमी जो कहें उसे मानों। ३. थोड़ा बहुत । कुछ । जैसे,--चार प्रान गिराना । - - यौ०-चार तार-चार थान कपड़े या गहने । कुछ कपड़ा नत्ता और वर । चार दिन थोड़े दिन । कुछ दिन । जमे,-बार दिन की चांदनी फिर अंधेरी पाय । चार पैसे कुछ धन । कुछ रुपया पैसा । जैसे,—जब चार पैसे पास रहेंगे तब लोग हाँ जी हाँ दी करेंगे । चार-संक्षा पुं० चार की संशया । चार का अंक जो इस प्रकार लिखा जाता है--४॥ चार-मंशा पुं० [सं०] [ वि० चारित, चारी ] १. गति । चाल ।- गमन । २. बंधन । कारागार । ३. गुप्त दूत । चर । जानुस । ४. दास । सेवक । उ०-जोमी जसु वह चार गुमानी।. नभ दृहि दुध चहत ये प्रामी।-मानस, ३७१1 ५. चिरौंजी का पेड़। पियार । अचार । ६. कृत्रिम त्रिप । जैसे,—मछली फंसाने की कैटिया में लगा चारा, चिड़ियों को बेहोश करने की गोली यादि । ७. प्राचार नीति । रस्म । जैसे,—व्याहवार, द्वारपार । उ०--(क) फेरे पान फिर सब कोई । लाग्यो व्याहवार सब होई।--जायसी (शब्द०)। चाया- मंशा (०/देशज २० नाचावत वाघ यान कवि- ५ दाम का काम सादून के चाय।-गा००, पृ०१११। माया -मैदा [हिं०भय] चाहनेवाला । प्रेमी। 10-जय यदु- न नईदु सत चोर बायक चतर-रघराज (शब्द) आपक' संशा पु० मि) दुन्नवाला । चयन करनेवाला। पायदान--संवा हिदायफादार 1 बहु बतन जिसमें चाय बनाई जाती है या बनाकर रखी जाती है। घायदानी-मंद महीहि चाय+दानी] दे० 'चायदान' । आयकाका- [हिं०' चाय+चौकी ] चौकी। उ०- तिब्बती ढंग की चायौकी प्रौर बैठने की गद्दी के साथ मन, . कुली, पलंग और पालनारी भी है।-किन्नर०, पृ०५८ ॥