पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४५४

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चिश्ती १५३३ चित्रकला सफेद भाग पर पड़ता है, वह और लड़कों के दांव पर मुहा०--चित्र उतारना=(१) चित्र बनाना । तसवीर खींचना। लगाए हुए चोएं जीत लेता है। (२) वर्णन प्रादि के द्वारा ठीक ठीक दृश्य सामने उपस्थित चित्ती-संश की० [हिं०चित(==पेट के बल पड़ा हुआ)] वह कौड़ी - कर देना। जिसकी चिपटी और खुरदरी पीठ प्रायः नीचे होती है और ३. काव्य के तीन अंगों में से एक जिसमें व्यंग्य की प्रधानता ऊपर चित रहती है। टैयाँ । उ०-- अंतर्यामी यही न जानत नहीं रहती । अलंकार । ४. काव्य में एक प्रकार का अलंकार जो मो उरहि विती। ज्यों जुमारि रस बीधि हारि गथ जिसमें पद्यों के प्रक्षर इस क्रम से लिखे जाते हैं कि हाथी, ... सोचत पटकि चिती (शब्द०)। घोड़े, खङ्ग, रथ, कमल आदि के आकार के बन जाते हैं। विशेष--यह फेंकने पर चित अधिक पड़ती है, इसी से इसे । ५. एक प्रकार का वर्णवृत्त जो समानिका वृत्ति के दो चरणों चित्ती कहते हैं । जुपारी इससे जुए का दांव फेंकते हैं । . को मिलाने से बनता है। ६. आकाश । ७. एक प्रकार का चित्तोक-संज्ञा पुं० [सं०] घमंड । अहंकार को०। - कोढ जिसमें शरीर में सफेद चित्तियाँ या दाग पड़ जाते हैं। चित्तौड़ा---संधा पुं० [हिं० चित्तौर] दे० 'चित्तौर' । चित्तौर--संज्ञा पुं० [सं चित्रकूट प्रा. चितउड़, चितऊड़ हिल ८. एक यम का नाम । ६. चित्रगुप्त । १० रेंड का पेड़। ११.अशोक का पेड़। १२. चीते का पेड़। चित्रक। १३. . चितउर एक इतिहासप्रसिद्ध प्राचीन नगर जो उदयपुर धृतराष्ट्र के चौदह पुत्रों में से एक। . के महाराणानों की प्राचीन राजधानी थी। चित्र-वि० १. अद्भुत । विचित्र । आश्चर्यजनक । विस्मयकारी । विशेष-मलानद्दीन के समय में प्रसिद्ध महारानी पद्मावती या उ०-हे नूप, ह्या कछु चित्र न मानि । ते सब हरहि मिलेई पधिनी यहीं कई सहस्र क्षत्राणियों के साथ चिता में भस्म .. जानि ।-नंद० ग्रं॰, पृ० ३१८ । २. चितकबरा कबरा। हुई थीं। ऐसा प्रसिद्ध है कि राणाओं के पूर्वपुरुष बाप्पा ३. रंगविरंगा । कई रंगों का। ४. अनेक प्रकार का। कई रावल ने ही ईसवी सन् ७२८ में चित्तौर का गढ़ बनवाया तरह का । ५. चित्र के समान ठीक । दुरुस्त । उ० - बाँके और नगर बसाया था । सन् १५६८ तक तो मेवाड़ के राणामों पर सुठि बाँक करहीं। रातिहि कोट चित्र को लेहीं। की राजधानी चित्तोर ही रही; उसके पीछे जब अकबर ने -जायसी (शब्द०)। चित्तौर का किला ले लिया, तब महाराणा उदयसिंह ने चित्र - संज्ञा स्त्री० [सं० चित्रिणी] दे० 'चित्रिणी' । उ०-चारि उदयपुर नामक नगर बसाया । चित्तौर का गढ़ एक ऊंची जाति है त्रीय तन पदमिनि हस्तिनि चित्र । फुनि संपिनिय पहाड़ी पर है जिसके नीचे चारों ओर प्राचीन नगर के खंडहर चित्रकंठ--संज्ञा पुं० [सं० चित्र कराठ] कबूतर । कपोत । परेवा ।.. प्रमान इह मन मह रंजिय मित्त पृ० रा०२५ ११६ । दिखाई पड़ते हैं। हिंदूकाल के बहुत से भवन अभी यहाँ टूटे चित्रकंबल-संघा पुं० [सं० चित्रफम्बल] १. कालीन । २. हापा का फूटे खड़े हैं । किले के अंदर भी बहुत से देवमंदिर, की तिस्तंभ, ' झूल जिसपर चित्र बने रहते हैं [को०। खवासिमस्तंभ सिंगारचौरी यादि प्रसिद्ध हैं। राणा कुंभ मे Eिnt चित्रक-संहा पुं० [सं०] १. तिलक । २ चीते का पेड़ । चित्त।' संवत् १५०५ में गुजरात और मालवा के सुलतान को परास्त आर मालवा कसुलतान का परास्त . ३. चीता । वाघ । ४. शूर । बलवान् । ५. रेड का पेड़। ६. फरके यह पतिस्तंभ स्मारक स्वरूप बनवाया था। यह १२२ चिरायता । ७. मुचकुद का पेड़ । ८. चित्रकार। . फुट के'चा और नौ खंडों का है। चित्रकर -संशा छौ० [सं०] १. चित्र बनानेवाला। चित्रकार । चित्य ---वि० [सं०] १. चुनने या इकट्ठा करने योग्य । २. चिता २. ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार एक संफर जाति जिसका संबंधी। .. . उत्पत्ति विश्वकर्मा पुरुष और शुद्रा स्त्री से कही गई है। ३.. चित्य-संघा पुं०१. चिता । २. अग्नि। ' तिनिश का पेड़। ४. अभिनेता [को०] . . चित्या---संज्ञा स्त्री० [सं०] १. चनने का कार्य । एकम करना । २. चित्रकर्म-संबा'० [सं० चित्रकर्मन] १. चित्र बनाना । २. विचित्र बनाना । ३. चिता [को०] । " कार्य करना । ३. पालेखन । ४. इंद्रजाल (को०।.. : चित्र-संघा पुं० [सं०] [वि० चित्रित ] १. चंदन पादि से माथे पर चित्रकर्मी-संबा पुं० [सं० चित्रमिन्]. १. चित्रकार । : मुसीवरः । बनाया हा चिह्न। तिलक । २. विविध रंगों के मेल से बनी . कमंगर । २. विचित्र कार्य करनेवाला । ३. तिमिश वृक्ष । हुई नाना वस्तुओं की प्राकृति । किसी वस्तु का स्वरूप या चित्रकला संक्षा खी० [सं०] चित्र बनाने की विद्या । तस्यार बार "प्राकार जो कागज, कपड़े, पत्थर, लकड़ी, शीशे आदि पर .. का हुनर ।. . तूलिका अथवा कलम और रंग घादि के द्वारा बनाया गया . विशेष-चित्रकला का प्रचार चीन, मिस, भारत आदि देशों में हो। तसवीर । --चित्रलिखित कपि देखि डेराती। .. अत्यंत प्राचीन काल से है। मिन्न से ही चित्रकला यूनान में. -तुलसी (शब्द०)। गई, जहाँ उसने बहुत उन्नति की। ईसा से १४०० वर्ष पहले यो०--चित्रफला । चित्रविद्या। . . . . मिस देश में चित्रों का अच्छा प्रचार था। लंदन के ब्रिटिश . क्रि० प्र०--उरेहना ।-खींचना ।-बनाना ।-लिखना। :: म्युजियम में ३००० वर्ष तक के पुराने मित्री चित्र हैं। करना- अचरज करना । अचंभा करना । उ०-ग्रहो मित्र भारतवर्ष में भी अत्यंत प्राचीन काल से यह विद्या प्रचलित थी, पछु चित्र न कीजै । हरि की महिमा में मनु दीजै ।--- नंद० इसके अनेक प्रमाण मिलते हैं। रामायण में चित्रों, चित्रकारों ... . पृ० २६२ । और चित्रशालानों का वर्णन वरावर पाया है। विश्वकीय,