पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४५८

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चित्रस्थ चित्ररथ १५३५ अनुसार विशद्गुरु के पुत्र थे। ६. महाभारत के अनुसार चित्रवाण- संज्ञा पुं० [सं०] धृतराष्ट्र के एक पुत्र का नाम । ... ऋपद्गुरु नामक राजा के एक पुत्र। . चित्रवाहन-संज्ञा पुं० [सं०] महाभारत । में वर्णित मरिणपुर के एक चित्ररथर-वि. विचित्र रथवाला। नाग राजा। चित्ररथा-- श्री० [सं०] महाभारत भीष्मपर्व में वर्णित एक नदी। चित्र विचित्र --- वि० [सं०] १. रंग बिरंगा । कई रंगों का । २. वेल- विवरश्मि ---संशा पुं० [सं०] मरुतों में से एक । बूटेदार । नक्काशीदार । . . चित्ररेखा--संज्ञा स्त्री० [सं०] बाणासुर की कन्या ऊषा की एक चित्रविद्या - संग्रा श्री० [मं०] चित्र बनाने की विद्या । .. सहेली। वि० दे० 'चित्रलेखा' । विशेष-टे. 'चित्रकला'। चित्ररेफ-संद्धा पु० [सं०] १. भागवत के अनुसार शाकद्वीप के चित्रविन्यास-संज्ञा पुं० [सं०] अालेखन । चित्रकम । चित्र राजा प्रियन्नत के पुत्र मेधातिथि के सात पुत्रों में से एक। बनाना (को०)। . विशेष---मेधातिथि ने अपने सात पुत्रों को सात वर्ष बाँट दिए चित्रवीर्य'-वि० [सं०] विचित्र बली। थे जिनके नामों के अनुसार ही उन वर्षों के नाम पड़े। चित्रवीर्य-संशा पुं० लाल रेंड । रयत एरंड। ". . २. एक वर्ष या भूविभाग का नाम । चित्रवेगिका पुं० [सं०] एक नाग का नाम। . चित्रल-वि० [सं०] चितकबरा। रंगविरंगा । चितला। चित्रशार्दूल---संज्ञा पुं० [सं०] चीता [को० । चित्रलता-संघा सी० [सं०] मजीठ। चित्रशाला-- संज्ञा स्त्री० [सं०] १. वह घर जहाँ चित्र वनते हों या. चित्रला--संज्ञा स्त्री० [सं०] गोरखा इमली। विक्रयार्थ रखे जाते हों। २ वह घर जहाँ चिन हों। वह घर. चिलिखन-संक्षा पुं० [सं०] १. सुंदर दिखावट । खुशखती।- जिसमें बहुत सी तसबीरें टेंगी हो । ३ वह स्थान जहाँ चित्र - (मनु०) २. चित्र बनाने का काम । कारी सिखाई जाती हो ४. वह घर या भवन जहाँ मिति पर चित्रलिपि-संक्षा स्त्री० [सं०] एक प्रकार की लिपि, जिसमें संकेतों चित्र बने हों (को०)। के व्यंजक चित्रों द्वारा अभिप्राय था आशय का बोध कराया चित्रिशिखंडज--संज्ञा स्त्री०सं० चित्रशिखण्डिज] वृहस्पति । जाता है। लिपिविकास की यह अवस्था जिसमें चित्रात्मक चित्रशिखंडो---संज्ञा स्त्री० [सं० चित्रशिखरिडम् ] सप्त ऋषि । मरीचि, रेखाप्रतीकों से भाषा का लेखन किया जाता था। चित्रात्मक अंगिरा, अषि, पुलस्त्य, पुलह, ऋतु, वसिष्ठ-ये सात ऋधि। लिपि । (पं० पिक्टोग्राफिक लिपि)। चित्रशिर - संश स्त्री० [सं० चित्रशिरस्] १. एक गंधर्व का नाम । चित्रलेखक---संज्ञा पुं० [सं०] चित्रकार को। २. सुश्र त के अनुसार मल मूत्र से उत्पन्न एक विष । गंदगी चित्रलेखन-संक्षा पुं० [सं०] १. सुदर अक्षर लिखना । २. चित्र का जहर । बनाना (को०]। चित्रशिल्पी-संथा पुं० [सं० चित्र+शिल्पिन् ] चित्रकार (को०] । चित्रलेखनिका-संज्ञा खो [सं०] तूलिका (को०)। चित्रशीर्षक -संशा पुं० [सं०] एक विषैला कीड़ा [को०] । चित्रलेखनी-संघा खी० [सं०] तसवीर बनाने को कलम । कूची। चित्रश्री-संका श्री० [सं०] अतिशय या अद्भुत सुदरता [को०)। चित्रलेखा-संक्षात्री० [सं०] १. एक वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण चित्रसंग-संक्षा पुं० [सं० चित्रसङ्ग] १६ अक्षरों का एक वर्णवृत्त । में १ मगण १ भगग्ग, १ नगण और तीन यगण होते हैं । चित्रसंस्थ-वि० [म.] चित्रित । पालेखित [को०)। .. जैसे,- मैं भीनी यों गुणनि सुनु यथा कामरी पाइ बारी। चित्रसभा-संज्ञा श्री. सं० दे० 'चित्रशाला' [को०] । बोलो ना यालि ! कहत तुमसों दीन ह बारि बारी। चित्रसर्प--संज्ञा पुं० [सं०] चीतल साप। २. बाणासुर की एक कन्या अपा की एक सखी जो कमांड चित्रसार--संज्ञा स्त्री० [हिं० चित्रसारी दे० 'चित्रसारी' । उ०- की लड़की थी। यह चित्रकला में बड़ी निपुण थी। ३. चित्रसार पर तक्षक नाया। रानी केर तह पलंग रहाया।- एक अप्सरा का नाम । ४. चित्र बनाने की कलम। तसवीर . कबीर सा०, पृ० ७२ । बनाने की कूची। चित्रसारी-संभा स्त्री० [सं चित्र + शाला] १..वह घर जहाँ चित्र । चित्रलोचना-संचा मी० [सं०] सारिका । मैना। . टंगे हों या दीवार पर बने हों। २. सजा हुआ. सोने का चिश्वदाल- संज्ञा पुं॰ [सं०] पाठीन मत्स्य । पहिना मछली । कमरा । विलासभवन । रंगमहल। चित्रवन--संज्ञा पुं० [सं०] गंडकी के किनारे का प चित्रसाल-संक्षा स्त्री० [हिं०] दे० 'चित्रशाला' । उ०—अति चित्रसाल एक वन । बनी निज महली हरिजन तह उरझाने ।-प्राण, पृ०.६४।। चित्रवर्मा- संक्षा पुं० [सं०] १. धृतराष्ट्र के एक पुत्र का नाम । २. चित्रसेन-संज्ञा पुं० [सं०] १. ध तराष्ट्र के एक पुत्र का नाम । २. एक. गंधर्व का नाम । ३. एक पुरुवंशी राजा जो परीक्षित के पुत्रों. मुद्राराक्षस के अनुसार कुलूत देश के एक राजा का नाम । में से थे। ४. शंबरासुर के एक पुत्र का नाम ( हरिवश)।' चित्रवल्ली-संघा स्त्री० [सं०] १. विचित्र लता। २. महेंद्रवारुणी। ५. चित्तौर का एक राजा (पावत)। . . चित्रवहा- संक्षा श्री० [सं०] महाभारत के अनुसार एक नदी। चित्रस्थ-वि० [सं०] चित्रित । अंकित । २०- कहा मांडवी.ने उलूक . - चित्रवाज-संघा पुं० [सं०] कुक्कुट । मुर्गा [को०] | .... . भी लगता है चित्रस्थ भला ।--साकेत, पृ०. ३९४ 1.