पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/४९२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१५७१ .. धूपड़ी चूतड़- संश पुं० [हिं० चूत-+तल कमर के नीचे और जांघ के के संयोग से शरीर परीने लगता है और उसमें कभी कभी ऊपर गुदा के बगल का मांसल भाग । नितंत्र । छाले तक पड़ जाते है । पत्थर गा पूना बहुत तेज होता है और महा०---चूतड़ दियाना मा कठिन समय पर भाग जाना। पीठ भयान की दीवारों पर सफोदी फरने, मेत में खाद की तरह दिखाना । चूतड़ पीटना या बजाना बहुत प्रसन्न होना । खूब दालने, छींट धादि छापने, पान के साथ लगाकर खाने और खुश होना । चूतड़ों का लहू मरना=एक स्थान पर जमकर दवानों आदि के काम में प्राता है । कंगार का चूना भी प्रायः बैठने के योग्य होना। इन्हीं कामों में धाता है। पर इसका सबसे अधिक उपयोग चूतरी-संज्ञा पुं० [हिं० चूतड] दे० 'चूतड़' । इमारत के माम में, ईट पत्थर प्रादि जोड़ने और दीवारों पर, चूति-संक्षा नौ [सं०] गुदा । चूतड़ (को०) । पलस्तर करने के लिये होता है। मंग, सीप और मोती प्रादि , चूतिया--वि० [हिं० चूत+ईया (प्रत्य॰)] नासमझा गावदी। का चूना प्रायः खाने और पौषध के काम में ही आता है। . उ०-चूतिया चलाक चोर चौपट चबाई च्युत चौकस चिकि मुहा० -चूना फोटना-खजली होना। चू ना चूना या फेरना- त्सक चिबिल्ला प्रो चमार है। -गंग०, पृ० १२६ । चूने को पानी में घोलकर दीवारों पर सफेदी गारने के लिये . क्रि० प्र०-फैसना ।-फसाना । -बनाना । --समझना। पोतना । दीवारों पर घुने यी सफेदी करना । चूना लगाना - चूतियाखाता-वि० [हिं० चूतिया + साता] १. 'चूतिया' । खूब घोषा देना, हानि पहुँचाना या दिक मरना । बहुत । चूतियाचक्कर-वि० [हिं० चुहिया+चएफर] दे० 'चूतिया' । लज्जित करना। चूतियापंथी--संहा मी० [हिं० चूतिया+पथी] मूर्खता । नासमझी। यो०-चूनादानी । चुनौटी। वेवकूफी। चूनारे-कि०म० [सं० च्यवन] १. पानी या किसी दूसरे द्रव पदार्थ चूतियाशहीद--संशा सी० [हिं० चूतिया+फा० शहीद ] मूखों का फा किसी छेद या छोटी दरज में से पूँद बूद होकर नीचे सिरताज । बहुत बड़ा मूर्ख । गिरना । टपकना । जैसे,--छन में से पानी चुना, लोटे में से चून'- संज्ञा पुं० [सं० चूर्ण] १. पाटा । पिसान । २. दे० 'चुना'। दूध चूना, भीगे कपड़े से पानी मा पादि। चून संमा पुं० [देश॰] एक प्रकार का बड़ा थूहर जो हिमालय के संयो० कि०-जाना। पड़ना। दक्षिणी भाग में तया पंजाब के कुछ जिलों में अधिकता से २. किसी चीज का, विशेषतः फल प्रादिका, अचानक ऊपर से .. होता है। नीचे गिरना । जैसे, पाम पूना, महमा चूना । ३. विसी चीज , विशेष-इसके दूध में गटापारचा का अश बहुत अधिक होता में ऐसा छेद या दरण हो जाना जिसमें से होकर कोई द्रव पदार्थ है । ताजे दूध में बहुत सुगंध होती है और वह प्रोग्य के लिये बूद बूद गिरे । जैसे, छत चूना, लोटा चूना, पीपा चूना बहुत हानिकारक होता है। बासी दूध लगने से शरीर में धादि। ४. गर्भपात होना। गर्भ गिरना। (क) so-: छाले पड़ जाते हैं। दियः पालन को, भुव पालन की, लोक पालन की किग मातु .'. चून-संहा पुं० [हिं० चूनन] दे॰ 'चुग्गा' । उ०-मूढ़ काग समर्श गई च ।--केशव (शब्द०)। नहीं मोह माया सेवं । चून चुनाव कोयली, अपना कर लेवे। चूना --वि० [हिं० चूना (कि०प्र०),] चुमना जिसमें किसी चीज के .. --दरिया० बानी०, पृ०३। चूने योग्य वेद या दरज हो। जैसे,चूना घड़ा, चूना घर चूनर, चूनरी संज्ञा स्रौ० [हिं०] दे० 'चुनरी'। चूनादानी-संशा सी० [हिं० चूना+फा० दान] यह छोटी डिविया चूना-संक्षा पुं० [सं० चूर्ण ] एक प्रकार का तीक्ष्ण क्षार भस्म जो या इसी प्रकार का कोई पात्र जिसमें पान या सुरती के साथ । __ पत्थर, कंकड़, मिट्टी, सीप, शंख या मोती ग्रादि पदार्थों को खाने के लिये चूना रखा जाता है । चुनौटी। .. भट्टियों में फूककर बनाया जाता है। चूनी-शा रही० [मंचूरिणया] १. अन्न का छोटा टुकड़ा) - - विशेष- तुरंत फूककर तैयार किए हुए चूने को कली या बिना अन्नकण। बुझा हुआ चूना कहते हैं। यह ढोंके या उसी स्वरूप में होता यो-- नी भूसी-मोटे अन्न को पीसा हुप्रा चूर्ण या चोकर, है जिसमें उसका मूल पदार्थ फू के जाने से पहले रहता है। आदि। कंकड़ फा बिना चुझा चूना 'चरी' कहलाता है। विना बुझा .२. रत्नगरण । चुन्नी । दे० 'चुन्नी' 1 चूना हवा लगने से अपनी पायित और गुरण के अनुसार तुरंत चूनेदानी-संक्षा खी० [हिं० चू नादानी] ६० 'चनावानी। या कुछ समय में चूर्ण के रूप में हो जाता है और उसकी चूप -संज्ञा स्त्री० [हिं० घोप] दे० 'चोप") 30--थवन · शब्दः शाक्ति और गुण में कमी होने लगती है । पर पानी के संयोग फौं ग्रहत हैं नयन ग्रहत हैं रुप । गंध ग्रहत है नासिका रसना .. ...से बिना बुझे चूने की यह दशा बहुत जल्दी हो जाती है । उस रस की चूप ।---सुदर मं०, भा० १, पृ०५०। अवस्था में उसे "भरका' या बुझा हुपा चूना कहते हैं। बिना चूपड़ी -संज्ञा स्त्री० [हिं० च पटना] घी चुपड़ी हुई रोटी । किसी युझे चूने पर जब पानी डाला जाता है, तब पहले तो वह पानी चिकनी वस्तु का लेप की हुई वस्तु । उ-रूखा सूखा खाइ .. .. को खूब सोखता है, पर थोड़ी ही देर बाद उसमें से बुलबुले कै, ठंढा पानी पीव । देखि बिरानी चपड़ी, मत ललचाव .. 'छूटने लगते हैं और बहुत तेज गरमी निकलती है। तेज चूने जीव ।----संतवाणी०, पृ०६।२ ।