पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५२५

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चौलो १६.४ | ...चौली---संया पुं॰ [देश॰] बोड़ा। क्रि० प्र०-खेलना। चौवन - वि० [सं० चतुपञ्चाशत्, प्रा०. चनुपञ्चासो, प्रा० चउधरण २. इस रेल की बिसात जो प्राय: कपड़े की बनी होती है। पचास से चार अधिक! जो गिनती में पचास से चार पर हो। . चौवन-संचा पुं० पचास से चार प्रधिक की संख्या जो अंकों में इस प्रकार लिखी जाती है--५४ । - चौवा-संवा पुं० [हिं० चौ (चार)] १. हाय की चार उंगलियों ..... का समूह । २. अंगूठे को छोड़कर बाकी चार उंगलियों की . . पंक्ति में लपेटा हुमा तागा । जैसे,—एक चौवा तागा। ... महा-चौवा करना चार उंगलियों में तागा प्रादि लपटना। ३. हाथ की चार उंगलियों का विस्तार । चार अंगुल की माप । . ४. ताश का वह पत्ता जिसमें चार बूटियां हो। ५. गुड्डी की डोर को पंजा फैलाकर भगूठे और कनिष्ठिका में इस प्रकार ... लपेटना जिसमें एक डोर एक दूसरे को वीच से काटती हुई जाय । इसका आकार अंग्रेजी अंक 8 की तरह होता है। चौवा --संगा पुं० [सं० चतुप्पाय] गाय, बैल, प्रादि पशु । चौपाया। विशेष इसका मध्य मोग थैली का सा होता है जिसमें खेल 'चीवाई-सका श्री० [हिं० चौ--वाई ( = दात) 1 दे० 'चौबाई'। की समाप्ति पर गोटियां भरकर रखी जाती हैं। मध्य भाग चौवालीस-वि० [सं० चतुश्चत्वारिंशत्, प्रा० चतु चत्तालीसति, के चारों सिरों की तरफ चार वे चौकोर टुकड़े सिले रहते प्रा० चउवालीसइ ] चालिस से बार अधिक। जो गिनती हैं। जिनमें से हर एक की लंबाई में आठ आठ चौकोर - चार ऊपर चालीस हो। खानों की तीन तीन पंक्तियां होती है। चौवालीस--संज्ञा पुं० चालीस से गर अधिक की संख्या जो अंकों में क्रि० प्र०--विछाना। - इस प्रकार लिखी जाती है-४४ ॥ यौ० चौसर का बाजार चौक बाजार। यह स्थान जिसके 'चौवाह-वि० [सं० चतुर्वाह] चार दादाला। चतुर्बाहु । उ०- चारों पोर एक ही तरह के चार वाजार हो। चतरं वीर चहवान च्यार मुप्पो चौवाह 1-पृ० रा०, ११२७॥ चौसर२. संधान. [चतरसका चौलड़ी। चार लड़ा का हार। चौस--संशा पुं० [हिं० (=कृषि)] १. चार बार जोता हुना वेत।। 10--(क) चौसर हार अमोल गरे को देहु न मेरी माई।- . दे० 'चौवाहा' । २. खेत का चोथी दार जोता जाना । सूर (शब्द०)। (ख) और भांति भए वए चौसर चंदन चंद। पौस - संका पुं॰ [देश॰] बुकनी । चूरा । चूर्ण । बिहारी (शब्द०)। चौसईल:-संधामी देश०] एक बहुत मोटा कपड़ा। दुसूती से भी चौसरी-मंत्रा ली० [हिं० चौसर] २० नौसर'। मोटा गरीबों के काम का सस्ताकपड़ा। उ०-ताके प्रागे चौसल्लाई-संज्ञा पुं० [हिं० चौ+सालना] किसी वस्तु को ऊपर घर बहुतेर ।--सुंदर० प्र०, भा० १, पृ०६६ रखने के लिये माधार स्वरूप रखी चार लकड़ियाँ । २. चौसठ-वि० [हिं०] दे० 'चाँस। चौसल्ले पर रखी हुई वस्तु । ... यौ०-चौसने घड़ी दिन रात । जामा दिन । भागे पहर । चौसिंघा'-वि० [हिं० चौ (=चार)+सौंघ ] चार सींगोंवाला। चौसठ सीढ़िया तांत्रिकों एवं सिद्धनाथों की परंपग में ६४ जिसके चार सींग हों । जैसे, चौसिधा बकरा। वों की सीढ़ी। ये दणं मलामे लेकर ऊपर के कमलों के चौसिं था--संज्ञा पुं० [हिं० चौसिंहा] दे० 'चौतिहा' । . दलों पर होते हैं। कुछ दलों और दलों का योग ६४ होता चौसिंहा-~-संशा पुं० [हिं० ची ( =चार )सीब (सीमा)+हा . .. . है। उ० अकृत निई (२) लाई । उलट दरियाव निर्भरिया। (प्रत्य॰)] वह स्थान जहाँ चार गांवों की सीमाएँ मिलती हों। .' यहि विधि चढ़ना चौसठ सीढ़िया --रामानंद०, पृ०१०। चौहट@t-संका [हिं० चौ+हाट ] दे॰ 'चौहट्टा' । उ०- चौसर संज्ञा पुं० हिं० चौ (चार)+सर (=वाजो) अथवा सं० चौहट हाट समान वेद चह जानिए । विविध मांति को वस्तु .. चतुस्सारि.१. एक प्रकार का खेल जो विसात पर चार रगों विकत तह मानिए।-विधाम (शब्द०)। . की चार चार गोटियों और तीन पासों से दो मनुष्यों में चोहटा-मंशा.पुं० [हिं० चौहट+मा(प्रत्य)ाचौहद्रा बाजार- खेला जाता है । चौपड़ । नर्दवानी। . . . : जुरे हैं कंचन चौहटे अपने अपने टोल । - नंदग्रं०, पृ०३८ । - विशेष-दोनों खेलनेवाले दो दो रंगों की आठ पाठ गोटियां चौहट्ट-संशा पुं० [हिं० ची+हट्ट] दे० 'चौहट्टा' । १०-चौहद हट्ट .. . ले लेते हैं और बारी बारी से पासे फेंकते हैं। पासों के सुट्ट बीयी चार पुर बहु विधि बना ।--तुलसी (शब्द॰) । . .दांव पाने पर कुछ विशेष नियमों के अनुसार गोटियां चली चौहट्टा-संज्ञा पुं० [हिं० ची (चार)+हाट] १. स्थान जिसके चारों ... जाती है। यह खेल जब पासों के बदले सानोड़ियां फैलकर , · ओर दूकानें हों। चौक २. चौमुहानी। चौरस्ता चौराहा। क्षेला जाता है, तब उसे पचीसी कहते हैं। .. . ह-संवा पुं० [हि होम ] है 'चौमड़। : साविक शनि हो । बोसिह ( सीमा पासों के बदले सात काट्या चली चौहट्टा बोकी चार हर वह विवि चौहट्टा' । उ० चाहट