पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५३

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खपड़ा ११२६ खपाना. खपड़ा-संज्ञा पुं० [सं० खर्पर, प्रा० खप्पर] १. मिट्टी का पका हुआ खपर परोवा । भीजा नन नीर जत रोवा 1-चित्रा०, पृ० टुकड़ा जो मकान की छाजन पर रखने के काम प्राता है। १७४ । (ख) खपर हाथ मम भुजा अनंता !---कबीर सा०, विशेष-यह प्रायः दो प्रकार का होता है ! एक प्रकार का पृ० २७४। | चिपटा और चौकोर होता है, जिसे 'थपुपा' या 'पटरी' खपरट-संज्ञा पुं० [ देश० ] दे० 'खपड़ा। कहते है और दूसरे प्रकार का खपड़ा नाली के आकार का खपरा-संक्षा पुं० [हिं०] दे० 'खपड़ा' . . रमाता जिसे नरिया' कहते हैं । 'थपुषा' खपड़ा खपराग-संज्ञा पुं० [सं०] तम । अंधकार को०] | छाजन पर बिछाकर उनकी सधियों पर 'मरिया' खपड़ा खपराली -संक्षा की० [सं० खर्पर ] खप्पर धारण करनेवाली.. पौंधा कर रख देते हैं। भिन्न भिन्न स्थानों के खपड़ों के प्राकार जोगिनी, डाकिनी आदि । उ-चौसठ लख खपराली हड़ प्रकार ग्रादि में थोड़ा बहुत भेद होता है। नए ढंग के हड़ हड़ हेसे ।-नट०, पृ० १६६।। अंगरेजी खपड़े केवल थपुरा के आकार के होते हैं और उनमें खपरिया-संवा स्त्री० [सं० खपरी] भूरे रंग का एक खनिज पदार्थ । नरिया की आवश्यकता नहीं होती। विशेष-वैद्यक में इसको जस्ते का उपधातु और क्षय, ज्वर, विप कि०३०-छाना। २. मिट्टी के घड़े के नीचे का प्राधा भाग जो गोल होता है । ३. और कुष्ठ ग्रादि का दूर करनेवाला माना गया है । यह अखि के प्रजन और सुरमे प्रादि में भी पड़ता है । फारस अादि . मिट्टी का वह वरतन जिसमें भिखमंगे भीख मांगते हैं। स्थानों में नकली खपरिया भी बनती हैं। खप्पर । ४. मिट्टी के टूटे हुए बरतन का टुकड़ा। ठीकरा । ५. कछुए की पीठ पर का कड़ा ढक्कन । पर्या०-चक्षुष । दविका । रक्षक । खपडा-संज्ञा पुं० [सं० क्षुरपत्र वह तीर जिसका फल चौहानोर खपरिया-संझा का [हिं० खपड़ा का अल्ग.] १. छोटा खपडा। खपडा-संज्ञा पुं० देश॰] गेहूँ में होनेवाला एक प्रकार का कीड़ा। २. एक प्रकार का कोडा जो चने की फसल में लगता है। खपड़ी-संञ्चा स्त्री० [सं० खर्पर) १. वह मिट्टी को हंडिया जिसमें खपरिया--संज्ञा पुं० [सं० कापंटिक; प्रा० कापड़िय] हाथ में खप्पर ।। __ भड़भूजे दाना भूनते हैं । २. नांद की तरह का मिट्टी का रखनेवाले भिक्षुकों का एक वर्ग जिसे 'खेवरा' भी कहते हैं। __ खपरैल-संज्ञा स्त्री० [हिं० खपड़ा+ऐल (प्रत्य०) | १..खपड़े की छोटा वरतन । ३. दे० 'खोपड़ी। . छाई हुई छन । खपड़ल-संज्ञा स्त्री० [हिं० खपड़ा+ऐल (प्रत्य॰)] दे० 'खपरैल खपड़ोइया - संज्ञा सौ. [ सं० खर्पर, मरा० खोपरा ] नारियल की सुहा- खपरैल डालना = खपड़ की छ। छाना। २. वह मकान जिसकी छत खपड़े से छाई हो । ३. खाड़ा।. गिरी के ऊपर रहनेवाला कड़ा प्रावरण या छिलका । . खपरोही -~-संचा श्री- [हिं० खोपड़ी] दे० 'खपडोई 1 उ०--उसके खपड़ोई-संक्षा बी० [सं० खर्पर] १. दे० 'खोपड़ी। २.खपड़ोइया। मुर्दे के खपरोही में अपनी शुद्धि के लिये भीख मांग।- खपत-संघासी० [हिं० खपना] १. समावेश । समाई । गुंजाइश । २. माल की कटती या बिक्री । ३. खर्च । व्यय । ४. खपने श्यामा०, पृ० १०॥ या खपाने की क्रिया या स्थिति। '.. खपली-संज्ञा पुं० [हिं०खपड़ा] एक प्रकार का गेहूँ। .. खपति--संज्ञा स्त्री० [सं०/क्षप्] नाय । विनाश । झय । उ०- , विशेष—यह बंबई, सिंध और मसूर प्रादि प्रांतों में पैदा होता रवर्स जु साइ मिट्ट कवन, निमख माहि उतपति बपति । है और इसके दानों को भूसी से अलग करने में बड़ी कठिनाई -पृ० रा०,१०३४ । होती है । इसे कहीं कहीं 'गोधी' या 'कफली' भी कहते हैं। . खपती-संशा स्त्री० [हिं० खपना] दे० 'खपत। खपाच-संवा स्त्री० [हिं० खपची] १, रेशमवानों का एक औजार . खपना-क्रि० प्र० [सं० क्षपण] [संज्ञा खपत] १. किसी प्रकार व्यय जो बांस की दो खपचियों को तले अपर बाँधकर बनाया . होना । काम में माना। लगना । कटना । जैसे-बाजार में जाता है। २. दे० 'खपची'। माल खपना । ध्याह में रुपया खपना पूरी में घी खपना। खपाची-संशा की० [हिं०] दे० 'खपची'। . .... २. चल जाना। गुजारा होना । समाई होना । निभना। खप'ट-संचा पुं० [हिं० खपची या कपाट ] *कनी के मुह पर लगे जैसे-बहुत से अच्छे रुपयों में दो चार बुरे हए लकड़ी के छोटे डंडे, जिनके सहारे वह उठाई दवाई जाती है। भी खप जाते हैं। ३. तंग होना। दिक होना। ४. क्षय खपाना-क्रि० स० [सं० क्षपन, हि० खपना फा.प्रे० रूप] १. किसी. होना । समाप्त होना । नष्ट होना। उ०--जो खेप भरे तू प्रकार का व्यय करना । काम में लाना । लगाना । जाता है, वह खेप मियाँ मत जान अपनी । अब कोई घड़ी पल मुहा०-माया या सिर खराना=सिरपच्ची करना । मस्तिष्क से । साइत में यह खेप बदन की है खपनी। नजीर (शब्द॰) । बहुत अधिक या व्यर्थ काम लेना । हैरान होना ।... . ५. करना । मृत्यु प्राप्त करना । जैसे-उस युद्ध में सई हजार २. निर्वाह करना। निभाना । ३. नष्ट करना । समाप्त करना । . आदमी खप गए। उ०-(क) मनों मेधनायक ऋतु पावस बाण वृष्टि करि संयो.क्रि०--जाना। . सैन खपायो। सूर (शब्द॰) । (ख) भूषण शिवानी गाजो खपर@ - संक्षा पुं० [सं० खर्पर] दे० खप्पर' । 10-बियह बैठ उर खाग सो खपाप खल खाने खाने खलन के खेरे भये बीस