पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
हा पच्छै लोहन दग्यो। जाजुलित सत्त 'बर बीर ‘मति ... है। लोगों का विश्वास है किछदर के छू जाने से तलवार

.. दर वीर रस सौ छग्यो ।-पृ० रा०, ५॥ ४३ । । का लोहा खराब हो जाता है और फिर वह अच्छी फाट . छगरी-संशा स्त्री० [सं० छ गली]. छोटी बकरी । नहीं करता। यह भी कहा जाता है कि जब सप छछू दर - छगल-संहा: पुं० [सं०] [श्री. छगला, छगली] १. छाग। को पकड़ लेता है, तब उसे दोनों प्रकार से हानि पहुँचती है। - बकरा । २. वृद्धदारक नामक पेड़। विधारा । ३. प्रत्रि यदि छोड़ दे तो अंधा हो जाय और यदि खा ले तो यह मर _ पि का नाम । ४. नीले रंग का कपड़ा। ५. बह देश जहाँ जाता है। इसी से तुलसीदास ने कहा है-धर्म सनेह उभयमति बहुत बकरे होते हैं। धेरी । भइ गति साप छछ, दर केरी। छछ दर तंवों के -: यौ०- छगलांत्रिका, छगलांत्री=(१) भेड़िया । (२) विधारा : . प्रयोगों में भी काम प्राता है। ... या प्रजांत्री वृक्ष। २. एक प्रकार का यंत्र या तावीज जिसे राजपूताने में पुरोहित छगलंक-सं० [सं०] छाग । बकरा (को०] । अपने यजमानों को पहनाता है। वह गुल्ली के माकार का छगन-वि० [हिं० छ+गुणा] छगुणा । छह गुना । उ०-छिप्यो सोने चांदी प्रादि का बनाया जाता है । ३. एका प्रातिशवाजी - .. छपाकर छितिज छीरनिधि छगुन छंद छल छीन्हो। "जिस छोड़ने से छ्छू का शब्द निकलता है । ४. वह व्यक्ति श्यामा०, पृ० १२० । जो छछू दर की तरह व्यर्थ इधर उधर घूमता हो । " छगनो---संवा स्त्री० [हिं० छोटो+उंगली] हाथ के पजे की सबसे . मुहा०-छठे दर छोड़ना-ऐसी बात कहना जिससे लोगों में छोटी उंगली । कनिष्ठिका । काली गली । छिगुनी। . हलचल मच जाय । माग लगाना । । छग्गरल-संज्ञा पुं० [सं० छत्रदण्ड या शकट (गाड़ी, बोझ छछेरू-संज्ञा पुं० [हिं० छाछ + एस (प्रत्य॰)] घी का वह फेन ... . या देश)] छन प्रादि सामान । 10-- प्रति गंभीर पहुपंग या मैल जो खरा करते समय उसके ऊपर या जाता है । .... मन सु दन्यं दृग लज्जड । कवन काज छग्गरह पानिग्राही भट छजना-क्रि०प० [40 सज्जन, हि० सजना] १.शोभा देना ! फज्जा ।पृ० रा०, ६१ । ६५६ । सजना । अच्छा लगना । सोहना । उ०-(क) बालम के छछंद -संज्ञा पुं० [सं० छलछन्द] दे० 'छलछंद' । उ०-सो बिछुरे ब्रजबाल को हाल कह्यों न पर कछु ह्याहीं । च्वं सो जोग्यंद्र जोग जुगता अविचल सारं । छछंद मुक्ता भै समपारं। गई दिन तीन ही में तब श्रीधि लौं क्यों छजिहै व्हीं छाहीं। ... --गोरख, पृ० १६१ । -केशव (शब्द०)। (ख) कूपर अनूप रूप छतरी छजत .. छछहा--वि० [देश॰] वैगवान । बननेवाला । गतिशील । उ०- तैसी 'जन में मोती लटकत छवि छावने ।-गिरधर (शब्द०) .. छछहा दूत चहू दिस छंडे, अवनी पत मंडे प्रारंभ ।-रघु० २.उपयुक्त जान पढ़ना । ठीक जंचना । उचित जान पड़ना । ... ०, पृ. १००। छज्जा-संज्ञा पुं० [हिं० छाजना या छाना] १. छाजन या छन का छछिपा, छिया-संत्रा 'श्री० [हिं० छाँछ+इया (प्रत्य॰)] १. " वह भाग जो दीवार के बाहर निकला रहता है । पोलती। छाछ पीने या नापने का छोटा पात्र। उ०- ताहि अहीर की उ०-कबर अन परूप छतरी छजत तैसी वजन में मोती ' छोहरियां छछिया भरि छाछ पं नाच नचावै ।-कविता लटकत छवि छावने -गिरधर (शब्द०) । २. कोठे या को, भा०१, पृ० १७६।। पाटन का वह भाग जो कुछ दूर तक दीवार के बाहर निकला

२.छाछ । मट्ठा । तक।

रहता है और जिसपर लोग हवा खाते या बाहर का दृश्य छछिहारी-संज्ञा स्त्री० [हिं० छांछ +हारी (प्रत्य॰)] दही देखने के लिये बैठते हैं । उ० छज्जन तें छूटति पिचकारी। ... बिलोनेवाली । महोरिन । उ०--इला च्यगुला सुपमन नारी। रेगि गई बावरि महल अटारी ।- सूर (शब्द०)। ३. दीवार - वेगि बिलोइ ठाढ़ी छछिहारी।-कबीर ग्रं॰, पृ० २६० । या दरवाजे के ऊपर लगी हुई पत्थर की पट्टी जो दीवार से .. इंछीन -वि० [सं० क्षीण अति क्षीण । दुर्बल । कृश | 30- बाहर निकली रहती है । ४. टोपी या हैट के किनारे का छछीन हीन लंकयं । कमान काम अंकयं । -पृ० रा०, २५। निकला हुआ भाग जिससे धूप से बचाव होता है। .: १३८ । महा०-छज्जेदार=जिसका किनारा पागे की ओर निकला छछं दर--संक्षा पुं०, बी० [मं० चच्छुन्दर] दे० 'छछू दर । हुप्रा हो । जिसमें छज्जा हो । जैसे, छज्जेदार टोपी । छछ दर--संशा पुं० [सं०. छच्छु-दर] [श्री. छछदरी] १. चू हे छझा@ - संग पुं० [हिं० छज्जा] दे० 'छज्जा'। उ०-ग्रबर ... की जाति का एक जंतु । अतर सौं तर हैं जिनसे सुमन झड़े हैं। मखतूल के छझे हैं जिय ... विशेप-इसकी बनावट च हे की सी होती है, पर इसका थूथन में रहे घड़े हैं ।--ब्रज० ग्रं॰, पृ०५६ । . .. अधिक निकला हमा यौर नुकीला होता है। इसके शरीर के छटंकी'-संबा.की. [हिं० छटाक] १. छटांका का बटखरा । वह एं भी छोटे और कुछ प्रासमानी रंग लिए साकी या राख ' बाट जिससे घटाक यस्तु तौली जाय। के रंग के होते हैं। यह जंतु दिन को बिलकुल नहीं देखता और छटंकी-वि० १. बहुत छोटा । छटाफ भर का । दुबला पतला। रात को छ..छ कारता चरने के लिये निकलता है और कीड़े. . कृशगात व्यक्ति)।२. मटपट । चंचल (बालक)। ...: मकोडे खाता है। इसके शरीर से बड़ी तीव्र तीन दुगंध आती छटक-संशा पुं० [सं०] रुद्रताल के ग्यारह भेदों में से एक।