पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५५४

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छापा छाया छापा-संह पुं० [हिं० हपिना] १.ऐसा साँचा जिसपर गीला रंग भय कटाव कस अंगिया राती । छायल बंद लाए गुजराती ।- या स्याही प्रादि पोतकर किसी वस्तु अर उसकी अथवा उसपर जायसी (शब्द०)। खुदै या उभरे हुए चिह्नों की आकृति उतारते हैं। छायांक संघा पुं० [सं० छायाङ्क चंद्रमा । ठप्पा । जैसे, छीपियों का छापा, तिलक लगाने का छापा। छाया-संघा सी० [सं०] १. प्रकाश का अभाव जो उसकी किरणों २. मुहर । मुद्रा ३. ठप्प या मुहर से दबाकर डाला हुआ के व्यवधान के कारण किसी स्थान पर होता है । उजाला चिह्न या अमर । ४. व्यापार के राल पर डाला हुआ डालनेवाली वस्तु और किसी स्थान के बीच कोई दूसरी वस्तु चिह्न। मारका । ५. शंख, चक्र आदि का चिह्न जिसे वैष्णव पड़ जाने के कारण उत्पन्न कुछ अंधकार या कालिमा। वह . घपने वाहु श्रादिधंगों पर गरम धातु से मंकित कराते हैं। थोड़ी थोड़ी दूर तक फैला हुआ अंधेरा जिसके पास पास का उ०-जप माला छापा तिलक सरे न एको काम 1-विहारी स्थान प्रकाशित हो । साया । जैसे,पेड़ की छाया, मंडप की (शब्द०)। ६. पंजे का वह चिह्न जो विवाह आदि शुभ छाया। अवसरों पर हलदी भादि से छापवार (दीवार, कपड़े प्रादि पर) २.वह स्थान जहाँ किसी प्रकार की प्राड या व्यवधान के कारण डाला जाता है । ७. वह कल जिससे पुस्तक प्रादि छापी सूर्य, चंद्रमा, दीपक या और किसी प्रालीकपद वस्तु का जाती हैं । छापे की कल । मुद्रा यंत्र । प्रेस । वि० दे० 'प्रेस' । खजाला न पड़ता हो । ३ फैले हुए प्रकाश को कुछ दूर तक यो०-छापाफल । छापाखाना। रोकनेवालो वस्तु की प्राकृति जो किसी दूसरी ओर अंधकार ८. एक प्रकार का ठप्पा जिससे खलिहानों में राशि पर राख के रूप में दिखाई पड़ती है। परछाई । जैसे, खंभे की छाया । रखकर चिह्न डाला जाता है । यह ठप्पा गोल या चौकोर वि० दे० 'छाह' । ४. जल, दर्पण आदि में दिखाई पड़नेवाली होता है जिसमें डेढ़ दो हाथ का डडा लगा रहता है। ६. वस्तुओं की प्राकृति । अयस । ५. तद्रूप वस्तु । प्रतिकृति । किसी वस्तु की ठीक ठीक नकल । प्रतिकृति । १. रात में अनुहार । सदृश वस्तु । पटतर । उ--कहह सप्रेम प्रगट को । सोते हुए या वेखवर लोगों पर सहसा आक्रमण । रात्रि में करई । केहि छाया कवि मति अनुसरई-तुलसी (शब्द०)। असावधान शत्रु पर घावा या वार । ६. अनुकरण । नकल । जैसे,-यह पुस्तक एक बंगला उपन्यास क्रि० प्र०-भारना। की छाया है । ७. सूर्य की एक पत्नी का नाम । छापाकल-संशा सो० [हिं० छापा+मल छापने या मुद्रण का कार्य विशेष-इसकी उत्पत्ति की कथा इस प्रकार है । विवस्वान् सूर्य करने की मशीन । की पत्नी संशा थी जिसके गर्भ से वैवस्वत, श्राद्ध देव, यम छापाखाना-संघा पुं० [हिं० खाना+फा० खाना] वह स्थान जहाँ और यमुना का जन्म हुआ। सूर्य का तेज न सह सकने के पुस्तक प्रादि छापी जाती हैं। मुद्रणालय । प्रेस । कारण सच्चा ने अपनी छाया से अपनी ही ऐसी एक स्त्री उत्पन्न छापामार-वि० [हिं०] मचानक बेखबर दुश्मन पर आक्रमण की और उससे यह कहकर कि तुम हमारे स्थान पर इन करनेवाला । छापा मारनेवाला (सैनिक) । पुत्रों का पालन करना और यह भेद सूर्य पर न खोलना, वह यो०-छापामार लड़ाई । छापामार युद्ध = गुरिल्ला युद्ध । अपने पिता विश्वकर्मा के घर चली गई । सूर्य ने छाया को ही छापिता--वि० [हिं० छाप-+इत (प्रत्य०)] छापों से भरा हुपा संक्षा समझकर उससे सावरिण और शनैश्चर नामक दो पुत्र छापा हुमा । उ०-~-तन भीजि सारी रंग रंग के वारि बहुत उत्पन्न किए । छाया इन दोनों पुत्रों को संज्ञा की संतति की उदोत । सब रंग मिलि के वसन छापित मैं प्रगट मुख जोत । अपेक्षा अधिक चाहने लगी। इसपर यम ऋद्ध होकर छाया ---भारतेंदु ग्रं॰, भा॰ २, पृ० ११० । को लात मारने चले । छाया ने शाप दिया कि तुम्हारा पर . छाब-संज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० 'छबड़ा। उ.---फूलन छाव भरी कटकर गिर जाय । जब सूर्य ने यह सुना तब उन्होंने छाया दुई चारी । नाना विधि के फूल अपारी ।--कवीर सा०, से इस भेदभाव का कारण पूछा, पर उसने कुछ न बताया। पृ० ५४४ । अंत में सूर्य नै समाधि द्वारा सब बात जान ली और छाया ने छावड़ा--संदा पुं० [हिं०] दे० 'छचड़ा' । उ०--नैडो प्रावं नाग भी सारी व्यवस्था ठीक ठीक बतला दी। जब सूर्य द्ध होकर पकड़ी, छाबड़ पड़े।-ौकी० ०, भा० १, पृ० ६७ । विश्वकर्मा के यहाँ गए, तब उन्होंने कहा-'संक्षा तुम्हारा छाम-वि० [सं० क्षाम] क्षीण । पतला । कुश । उ०-सीस फूल तेज न सह सकने के कारण ही यहाँ चली आई थी पौर प्रव सरकि सुहावने ललाट लाग्यो लांबी लट लटकि परी हैं कटि एक घोड़ी का रूप धारण करके तप कर रही है । इसपर छाम 41-द्विजदेव (शब्द०)। सूर्य संक्षा के पास गए और उसने अपना रूप परिवर्तित किया छामोदरी--वि० [सं०क्षामोदरी] छोटे पेटयाली। कृशोदरी। ८. कांति । दीप्ति । ६. शरण । रक्षा। जैसे -प्रब तुम्हारी उ०-ते हैं सूच्छम छामोदरी कटि केहरि की हरि लक ना छाया के नीचे श्रा गए हैं। जो चाहे सो करो। १०. ऐसी ।-देत (शन्द०)। उत्कोच । घुस । रिशवत । ११: पंक्ति । ११. कात्यायनी। • विशेष- छोटा पेट सौंदर्य का चिहा माना जाता है। १३. अंधकार । १४ मार्या छंद का भेद जिसमें १७ गुरु और यायला--संज्ञा पुं० [हिं० छाना] स्त्रियों का एक पहरावा । उ०- लघु होते हैं । १५. एक रागिनी । . . . . . .