पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५७०

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१६४६ . छुरित देनदार से दयावश या और किसी कारण से न लिया जाय, सब छुधित -वि० [सं० क्षुधित[ भूखा। उ०-लहिं हलधर संग दिन के लिये छोड़ दिया जाय । छूट । २.वह धन जो किसी रंग रुचि नैन निरखि सुख पा .छिन छिन छुधित जानि को बंधक मुक्त करने के लिये दिया जाय। पय कारन हेसि हँसि निकट बुलाऊ ।-सूर०,१० । ७५ छुत्@- संज्ञा स्त्री० [सं० क्षुत्] क्षुधा । भूख । छुनछुनाना-कि०० [अनु०] 'छुन छुन' शब्द करना । झनकार छुतहा -वि० [हिं० छुत] दे० 'छु तिहा' । के साथ बजना। यो०-छुतहा अस्पताल वह चिकित्सालय जहाँ छूत से उत्पन्न छुननमुनन-संघा पुं० [अनु०] १.० 'छुनमुन' । और फैलनेवाले रोगों का इलाज होना है। छुनमुन-संषा '० [अनु०] १.६० 'छनन मनन' । २. बच्चों के पर छुतिया --वि० [हिं० छूत+ इया (प्रत्य॰)] १.दे० 'छुतिहा'। के आभूपण का शब्द । २.स्पर्श से रहित । उ०- यहि बिधि पिंड ब्रॉड समाना। छप'--संघा पुं० [सं०] १. स्पर्श । २. झाड़ी। क्षप। ३. वायु । ताको तुम छुतिहा कर जाना ।-घट०, पृ० २५६ । ४. संघर्ष । युद्ध (को०)। छुतिहर-संधा पुं० [हिं० खून --हंडी] १. वह घड़ा या बरतन छप-वि० चंचल ।' जो किसी प्रशुचि वस्तु के ससर्ग से अशुद्ध हो गया हो और छपना-क्रि० अ० [हिं०] दे० "छिपना' । जिसमें खाने पीने की वस्तु न रखी जाती हो। २. कुपात्र। छपाना-कि० स० [हिं०] १० छिपाना'। निंदनीय । तिरस्कार्य व्यक्ति । नीच प्रादमी। छुवुक-संज्ञा पुं० [सं०] चिबुक । ठुड्डी । छुतिहा'-वि० [हिं० छूत+हा (प्रत्य॰)] १. छूतवाला । जिसमें छभित -वि० [सं० क्षुभित] १. विचलित । चंचल । उ०-- छूत लगी हो । जो छूने योग्य न हो । अस्पृश्य । ३. कलंकित । चलत कटकु दिगसिंधुर डिगहीं। छुभित पयोधि कुधर दूषित । पतित । निकृष्ट । | डगमगहीं।-मानस, ६ । ७८ । २. घबराया हुमा छतिहा-संशा पुं० वह नमक जो नोनी मिट्टी से निकाला जाता है। भिराना-क्रि०अ० [हिं० क्षोग] क्षोभ को प्राप्त होना। शोरे का नमक। क्षुब्ध होना । चंचल होना । उ०-चैयाँ चयां गही चयां नयाँ छतेरिन-संक्षा श्री० [हिं० छुतिहर] अस्पृश्य । छूतवाली। छोटी ऐसे बोलो वढि दैया करो दया हमें काहे छुभिराने हो।- जाति की स्त्री । उ०—यह किन छुतेरिनों को साथ लाई है सूदन (शब्द०)। आप?—फिसाना०, भा०३, पृ०३ । छुमकना-क्रि० स० [हिं॰] दे० 'छमकना' । उ-प्रब क्या रुमझुम छुद्धित -वि० [सं०क्ष धित प्रा० छुधिय] दे० 'क्षुधित' । उ०-खेद से छुमकेगा, मांगन ग्वालिनियों का ।-हिम त०, पृ० ४२ । खिन्न छद्धित तृषित राजा वाजि समेत । खोजतव्याकुल सरित छरण-संक्षा पुं० [सं०] १. लेपन । लेप करना । लेप लगाना । सर जल बिनु भएउ प्रचेत ।-मानस, १।१५७ । २. पसारना । फैलाना । (को०)। छद्र -वि० [सं० क्षब] दे० 'क्ष' । उ०-छुद्र पतित तुम तारि छरचार -संक्षा मी [सं० क्षरधार] छरे की धार । पतली धार रमापति अब न जरौ जिय गारी ।--सूर०, ११३१ । जिससे छू जाते ही कोई वस्तु कट जाय । उ०-देव विकट छद्रघंटि --संज्ञा स्त्री॰ [सं० शुद्र+धरिटका] दे० 'क्ष द्रषं टिका'। तर व छुरधार प्रमदा तीन दर्प कंदर्प खर खङ्ग धारा । उ०-छद्रघंटि मोहहि नर राजा। इंद्र अखार पाइ जन । --तुलसी (शब्द०)। साजा ।-जायसी ग्र० (गुप्त), पृ० १६७ । छुरहरी-संक्षा श्री [हिं० छुरा+घरना] नाक की पेटी जिसमें छुद्रघंटिका-संवा स्त्री॰ [सं० सु धरिटका] दे० 'क्षुद्रघंटिका'। वह छुरे रखता है । किसवत । उ०-- छुद्र घंटिका पायल बाजे रतन जड़ाऊ । रितु वसंत की छुरा-संशा पुं० [सं० क्षुर] [स्रो० अल्पा० छुरी] १. वह हथियार करा. पानी मोतिन मांग भराऊँ।-पलटू०, भा० ३, पृ० ८८। जिसमें एक बॅट में लोहे का एक धारदार लंबा टुकड़ा लगा छुद्रा'-संशा खी० [सं० क्षुद्रा] दे० 'क्षुद्रा'।-अनेकार्थ, रहता है। यह याक्रमण करने या मारने के काम में पृ० १३०। आता है। छुद्रावलिाधु-संज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० 'क्षुद्रघटिका'। उ०-कटि यो०--छुरेवाज=(१) छुरे द्वारा किसी की हत्या करनेवाला। क्षुद्रावलि अभरन पूरा । पायन्ह पहिरे पायल चूरा-जायसी छुरेबाजी छुरा भोंकना । छुरा भोंकने का काम । (२) छुरा (शब्द०)। भोंकने की घटना। छुद्रावली-संज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० 'छुद्रघटिका'। २. वह हथियार जिससे नाई बाल मूड़ते हैं । उस्तरा। छध-संगा स्त्री० [सं० छुधा, प्रा० क्षुध ] भूख । बुभुक्षा। उ० छुरा--संशात्री० [सं०] चूना । एक प्रकार का तीक्षण क्षार भस्म । निद्रा पियास छुध मोह तजि, दुष्प सुप्प इवक न गनै ।-पृ० वि० दे० 'धूना'। रा०,१२ । ५१ । छुरिका--संज्ञा पुं० [सं० ] दे० 'छुरी'। छुधा-संज्ञा स्त्री० [सं० क्षधा] [वि० छुधित] क्षुधा। भूख। छुरिकार -संज्ञा पुं॰ [ सं० क्षुरि+कार ] नाई। नापित उ०- ' । उ०-देखि छुधा ते मुख कुम्हिलानी अति कोमल तन स्याम । गंधकार छुरिकार मल्ल पाम्नायिक-वर्णरत्नाकर, पृ०६। . -सूर०, १० । ३६१ । छरित'--संक्षा पुं० [सं०] १. लास्य नामक नृत्य का एक भेद।