पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/८६

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खिलना। खिरमन ११६२ खिलवार:

(खिरनी) मापका विशेष चावल का मूल्य २०. दीनार से खिलखिलाहट-संवा पी० [अनु०] खिलखिलाकर हंसने का भाव।

-- २६दीनार हो गया। ग्रादि०, पृ० ४६६ । खिलजी-संज्ञा पुं॰ [देश॰] १. अफगानिस्तान की सरहद पर रहने- खिरमन-संहा पुं० [फा० खिरमन ] खलिहान । ढेर । १०-भाव वाली पठानों की एक जाति । २. भारतीय इतिहास का पठान सस्ता हो या महँगा नहीं मौकूफ गल्ले पर । य सब बिरमन राजवंश। . . उभी के है खुदा है जिसके पल्ले पर कविता को०, भा० . विशेष-प्रसाउद्दीन इस वंश का बड़ा प्रसिद्ध सम्राट् हुमा है। ४.५० २५१ . इस वंश का राज्य भारत में सन् १२८८ ई० से सन् १३२१ विराज-संज्ञा पुं० [अ०. खिराज] राजस्व । कर । मालगुजारी। ई० तक रहा। -पात न कॅपाच लेत पराग खिराज, आयत गुमान भरपो खिलत, खिलती-संा सौ [अ० खिलमत] दे० 'खिलात' । ...समीरन राज भारतेंदु ग्रं॰, भा॰ २, पृ०६८७ । 3०-खिचत मिलति तिनकों नरपति सों। जिमि वर देव ...कि प्र०-लगाना ।-बढ़ाना।-चढ़ाना।-देना !-लेना। अमर वर रति सौं।गोपाल (शब्द०)। खिराम-संसा पुं० [फा० खिराम] मस्त चाल । धीमी चान! खिलना-क्रि० वि० [सं० स्वल ] १, कली के दल इलग अलग खिरामा-वि० [फा० खिरामा ] बिरामवाले । मस्ती की चाल होना । कली से फूल होना। विकसित होना । २: प्रसन्न : . वाले । उ०-गो चलने थे यूसुफ शाद फरहाँ। खुशी करते होना । प्रमुदित होना । ३. शोभित होना । उपयुक्त होना। - हुए हंसते खिरामा दक्विनी०, पृ० ३३८ । ठीक या उचित जॅचना । जैसे-यह गमला यहाँ पर खूब सिरिरना-क्रि० वि० [अनु०] १. सींक के छाज में रखकर अनाज चिलता है । ४. बीच से फट जाना । --दीवार का .' को छानना जिसमें खराव दाने नीचे गिर पड़े। २. खुरचना । ... खिल जाना। ५. अलग अलग हो जाना । जैसे,-चावल : . खरोचना । उ०-सोई रघुनाय कपि साय पाथनाथ बांधि प्रायो, नाथ ! भागे ते खिरिरि खेह खाहिगो । तुलसी गरव संयो० क्रि०--उठना ।-जाना। 30--हुस्नपारा खिली जाती ... तजि मिलिवे को साज सजि, देहि सिय ना तो पिय पायमाल थीं।-फिसाना०, भा० ३, प० २८६ (-पढ़ना। डाहिगो। तुलसी (शब्द०)। सिलवत-संज्ञा स्त्री० [अ० खिलवत ] जहाँ कोई न हो । एकांत । . - सिरेटी-संक्षा बी० [म. खरयस्टिका ] बला । बरियारा । बीजवंद । शून्य स्थान । खिरोरा-संचा पुं० [हि० खर=कत्था+ौरा (प्रत्य०)] कत्ये यौ०-सिलवतखाना। की टिकिया 13०-पुहप पंक रस अमत सधेि । कोइ यह खिलवतखाना-संका पुं० [फा० लिलबतखानह वह स्थान जहाँ सुरंग बिरौरा बाँधे । —जायसी (शब्द०)। कोई गुप्त मंत्रणा या विवाद हो । एकांत स्थान । ३०-खहजी खिलंदरा-वि० [सं० खेल ] बिलाड़ी। खेल खेलनेवाला। बजाने चरगोस खिलवतचाने खी चोले वसराने खांसत खिल--संज्ञा पुं० [सं०] १. कसर घरती। रेतीली भूमि । २.रिक्त बबीस हैं । -भूषण (पाब्द०)। स्थान । खाली जगह । ३. परिशिष्ट । ४. संकलन । ५. खिलवात-संवा स्त्री० [अ०खिलवत ] दे० 'खिलवत'। शून्यता । खालीपन । ६. शेप भाग । शेषांश । ७. ब्रह्मा । ८. खिलवता - संका पुं॰ [ ५० खिलात] मुसाहब । पारिषद । उ०- - विष्ण (को०)। निज चिलवदिन में हास है, भय रूप दुर्जन पास है।- खिजपत-संशा खी० [अ० खिल प्रत ] वह वस्त्र प्रादि जो किसी पद्माकर प्र०, पृ०६। । बड़े राजा या बादशाह की और से संमानसूचनार्य किसी खिलवाड़-संक कौ [हिं० दे० 'खेलबाट .. को दिया जाता है। . खिलवादिन-वि० सी० [हिं० होलबार] ग्रीड़ा करनेवाली । उ०- . क्रि० प्र०--देना ।-पाना।-वखशना:-मिलना । लेना 1 ना . मित्र, खिलवादिन मना क्या कहती है, सुनो।--भारतेंदु ०, खिखकत-संशा सी० [प. खिलकत ] १. सृष्टि । संसार 130-- भा०१, पृ० ४०२ ॥ 'वंदे खुदा की रीत बया बिलकत फना खौवे खुदी।- खिलवाना-क्रि० स० [दिखाना का ० रूप] किसी को दसरे तुलसी० ० ० २४ । २. बहुत से लागों का समूह । भीड़ा से भोजन कराना। खिलकोरी-साधी० [हि० खेल+फौरी (प्रत्य०)] खेल। खिलवाना'-क्रि० स० [हिं० खिलना का प्रे० रूप] विकसित कराना। .: खिलवाड़ । उ०-चालकह लगि देय संग करि प्रिय बिल को प्रफुल्लित कराना। रिन।-श्रीधर (ब्द०)। खिषवाना-क्रि० स० [हिं० डील] खोलें वनवाना। जैसे- खिरखाना- पुं० [अ० सियार, मात्मीय+फा० सानह= महभूजे के यहाँ से धान अच्छी तरह खिलवा सेमा।.....? घर पसारा। कुटुंद । उ०-दोस्त दिल तू ही मेरे किसका खिलवाना'-क्रि० स० [हिं० खोलना' का. पोटे ' विषवाना। नवम चिंद मेरे ही रहमाना ।-दाद, लगवाना । बील या तिनके गोदकर दोचे प्रादिका प०६०४॥ करवाना। - शिवलिवामा कि०म०[मनु] खिलपिल चन्द करके सना। खिलवाना--त्रि० स० [हि० खेल ]० खेतवाना . - तोष सिना पान करना। विसमाप- [हिं०] है 'देउता...