पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१०२

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मान जार' -मा० [सं० जाल दे० 'जाल'। उ.--कहहिं कबीर जारदगवी-संज्ञा स्त्री० [सं०] ज्योतिय में मध्यमार्ग की एक वीयो पुकारि के, सवका उहे विचार । कहा हमार मानै नहि, किमि का नाम जिसमें वराहमिहर के प्रतुसार श्रवण, धनिष्ठा पौर टूट भ्रम जार-कबीर बी., पृ० १६५ पातभिषा तथा विष्रगुपुरामा के अनुसार विशाखा, अनुराधा जार-सबा पुं०.[फा० जार] स्थान | जगह [को०)। भोर ज्येष्ठा नक्षत्र है। । जार-सधा पु० [म.] अंचार मारि रसने का मिट्टी, चीनी मिट्टी जारना-सशा पुं० [सं० जारण या हिं० जलाना] १ जलाने की जा सकती। इंधन । २ जलाने की क्रिया या भाव । __ या पीच का वर्तन । जारक-वि० [सं०] १ जनानेयाना। क्षीण या ना करनेवाला । २. जारना-क्रि० स० [सं० मारण, हि. 'जमाना ] दे० 'जलावा' । पाचक [को०। जारमरा-सका स्त्री० [सं०] उपपति रखनेवाली स्त्री । परपुरुप से जारकर्म-सा पुं० [सं.] व्यभिचार । छिनाला । सर्वष रखनेवाली स्त्री [को०] । ट्री का वह जारज-सज्ञा पुं० [सं०] किसी स्त्री की यह सतान जो उसके जार जारा'-सहा पुं० [हि० जनाना] सोनार प्रादि की भाग जिसमें प्राग रहती है और जिसमे रखकर कोई चीज पा सपपति सत्पन्न हुई हो। दोगली सतति।। मनाई या तपाई जाती है। इस बीचे एक एर छोटा छेद विशेष-धर्मशास्त्रों में बारव सवार दो प्रकार के माने गए हैं। जो होता है जिसमें से होकर भाषी की हवा पाती है। समान भी विवाहित पति बीवनकाल में सस सपपत्ति से स्पस हो यह और मो विवाहित पति मर बाचे जारा२—समा पु० [हिं० वामा] २० 'बाना'। ४०-रोमराजि बम्टापस भारा। अस्थि सैल सरिता नर नारा-मानस, पराहो वह 'मोलन' कहलाती है। हिंदू धर्मग्रालानुसार पारण पूष किसी प्रकार के धर्म कार्य या पिण्वान मावि ६१५। का पधिकारी नहीं होता। जारिणी-मा स्त्री. [सं०] वह स्त्री जिसका किसी दूसरे पुरुष के जारजन्मा-वि० [सं० जारजन्मन् ] बार में उत्पन्न । भारष [को०] । साथ अनुचित समय हो । दृश्यरिणा ली। जारित-वि० [सं०] १ गवाया हमा । पचाया हुमा । २ (धातु) जारजयोग-सबा [म० ] फशिव योतिष में किसी बाम बन्मकाल में पानेवाला वन प्रकार का पोन बिससे पोषी हुई। भारी हुई [को०)। यह सिद्धांत पिकाला जाता है कि वह बालक अपने मंसली १ सारी'-वि० [१०] १. बहता हमा। प्रवाहित ! जैसे, खून का पिता के वीर्य नहीं उत्पन्न हुमा है बल्कि अपनी माता के वारी होना । २ चलता हुपा। प्रचलित । जैसे,—यह पखं. जार या उपपति के वीर्य से उत्पन्न है। २०-चित दार जारी है या बद हो गया? पितमारन चोगु गनि भयो भएँ मत सोग। फिरि कि०प्र०—करना ।—रखना ।—होना । हुनस्यौ जिय नोइसी समझे जारज जोगु ।-बिहारी २०, जारी-समा पुं० [फ़ा• जारी (रोना)] १ एक प्रकार का गांत दो०५०५ जिसे मुहर्रम में तालियों के सामने स्त्रियां गाती है। २. रुइन । विलाप। विशेप--वामक को पन्मकुहल्ली में यदि मग्न या पत्रमा पर वृष्टस्पति की शिन हो पथवा सूर्य के साथ घरमा युक्त न हो यौ०--गिरियो । जारी-रोना पीटना । विलाप । पौर पापयुक्त चद्रमा के साथ सूर्य युक्त हो प्रो पर याम मारा जारी-सहा पुं॰ [देश॰] झरबेरी का पौधा । नाता है। वितीया, सप्तमी मोर द्वादशी तिथि में रवि, शनि जारी-सका सी० [म० जार+ई (प्रत्य॰)] परस्पी गमती या मगलवार के दिन यदि कृत्तिका, सुगशिरा, पुनर्वसु, चार की क्रिया या भाव । उत्तरापाढा, धनिष्ठा और पूर्वाभाद्रपद में से कोई एक नक्षत्र जारी-सबा जी० [हिं०1 दे० 'चाली'। उ.---जारी प्रटारी. हो तो भी जारज योग होता है। इसके अतिरिक्त इन झरोखन, मोसन झांकत दुरि दुरिठौर ठोर ते परत कौकरी । अवस्थामों में कुछ अपवार भी हैं जिनकी उपस्थिति मे जारष -नद०प्र०, पृ० ३४३ । पोन होने पर भी पासक आरज नहीं माना जाता । जारथी-संग स्त्री० [40] हरिवश के अनुसार एक प्राचीन नगरी जारजात-सका पुं० [सं०] जारज । का नाम । जारजेट-सबा श्री० [प्र. जाजेंट ] एक प्रकार का महीन तथा जारुधि-मज्ञा . [ सं०] भागवत के अनुसार एक पर्वत का नाम बढ़िया कपड़ा। जो सुमेरु पर्वत के छत्ते का केसर माना जाता है। जारण-सहा पुं० [सं०] १ पारे फा ग्यारहयाँ सस्कार । २ जान्थ- सझा पुं० [सं० जास्थ्य ] ६० 'मारूथ्य'। जसाना । भस्म फरना । ३ घातुनो को फूकना । जास्थ्य-सहा . [सं०] वह पश्वमेघ यज्ञ जिसमे तिगुनी दक्षिणा विशेय--वैद्यफ में सोना, चांदी, तांबा, लोहा, पारा पादि धातुपों दी जाय । को प्रौपच के काम के लिये कई बार कुछ विशेष क्रियानो मे जारोव-सधा स्त्री॰ [फा०] भार । वोहारी । कूचा। फूककर भस्म करने को 'जारण' कहते हैं। जारोवकश'-सझा पुं० [फा०] झाड़, देनेवाला व्यक्ति । जारणी-सहा मौ० [सं०] बढ़ा जीरा । सफेद जीरा । जारोषकश–वि० झार देनेवाला।