पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/११४

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जिल्होर जिहाद भविगा जब तमाम दुनिया में ईमान का जिल्वा होगा। विशेष-सबध पूरा करने के लिये 'जिस' के पीछे 'उस' का भा० प्र०, भा० १, पृ० ५२६ । प्रयोग होता है । जैसे,—जिसको देगे उस से लेंगे। पहले 'उस' जिल्होर-संशा पुं० [देश ] एक प्रकार का धान जो गहन .. में के स्थान पर तिस' का प्रयोग होता था। काटा जाता है। जिसउ-वि० [दश०] जैसा। उ०-साल्ह कुवर सुरपति जिसड, जिवा- [म जीव ३० 'जीव' । रूपे अधिक अनूप । लाखों बगसह मांगया, लाख भैणा सिर जिवडा -सझा पुं० [ मं० जीत्र + डा (प्रत्य॰)] दे० 'जीव'। भूप। -ढोला०. दू.६३ । उ.-ऐशा जिवहा न मिलाए जो फरफ विछोर । -कबीर जिसनू -सधा पुं० [सं० जिणु ] दे० 'जिष्णु'–३। उ०-महै म०, पृ० ३२५ । मिकुंटी धनुक समानू । है बरुनी जिसनू के बानू । -इद्रा०, जियमार-वि० [हिं० जीव + मार] जान मारनेवाला। उ०.- पृ०६०। जल नहि, थल नहि, जीव और सृष्टि नहि, काल जिवमार जिसाहु-वि० [हिं० ] दे० 'जैसा'। उ.-मोकु दोस न दीज्यो नहिं ससय सताया ।-कवीर रे०, पु० ३३ । कोई, जिसा करम मुगठाऊँ सोई।रामानद०, पृ. २६ । जवरिया -सष्ठा स्त्री० दे० 'जेवरी'। उ०-प्रादि प्रत जो फोउन जिसिम-सछ। पुं० [प. जिस्म ] दे जिस्म'। पावै। तनक जिवग्यिा रित फिरि आवै। -नद. ०, जिसौह -कि० वि०, वि० [हि० जिसउ ] जैसा। 10-नृसिंह पू०२५.! विराजत सिंह जिसोह। विभीषन मा कयमास जिसीह । जिवाना-मक्षा पुं० [हिं०] दे०१ 'जिमाना' । २. 'जिवाना'। --पू० रा०,५। ३६ ।। जिवाजिव--सझा पुं० [ म०] चकोर पक्षी। जिस्का-वि० [हिं० ] जिसका । ३० लिस'। उ०-उन्होंने ऐसा जिवानाg+-क्रि० स० [हिं० जीव (जीवन)] जीवित करना। प्रेम लगाया जिस्का पारावार नहीं। -श्यामा०,१० १२१ । जिलाना। 10--इहि काट मो पाइ गष्टि लीनी मरति विशेष-पुराने लेखक 'जिसका' को इसी प्रकार लिखते थे। जियाटा प्रीति जनावति भीति सौ मीत जु काटघी प्राइ जिस्ता सझा पुं० [हिं० जस्ता ] दे० 'जस्ता' । -विहारी र, दो०६०५ । । जिस्ता-सइम पुं० [हिं० दस्ता ] दे० 'दस्ता'। जिवारी-वि० [हिं. जिव ] जिलानेवाली। उ०-सोभा समूह जिस्म-सचा पु० [प्र.] शरीर । देह । मई धनमानंद मूरति प्रग मनंग जिवारी। -घनानद, जिस्मानी-वि० [अ०] शरीर सवधी । शारीरिक (फो०] । पृ० १.६। जिवाला-सक्षा पुं० [ मरा जिवाला ] जीवन । उ०-जिव का जिम्मी-वि० [म. जिस्म +फाई (प्रत्य॰)] दे० 'जिस्मानी' [को०)। वी पो जिवाला रूपों में रूप पाला। सबके ऊपर है पाला जिह-सहा श्री.[फा. जद, सं० ज्या ] चिल्ला। रोदा । ज्या। नित हसत रस तू मीरा 1- दक्खिनी, पृ० ११० । धनुष की प्रत्यचा । उ-तिय कित कमनैती पढी चिन जिह भौंह कमान | चित चर बेझे चुकति नहिं बा बिनोकनि जियावना-क्रि० स० [जिवाना? 1 जिलाना। जियाना । 30- वान । -बिहारी (शब्द०)। मानदघन भघ मोघबहावन सुस्टि जिवावन वेद भरत है जिहर--सर्व० [हिं० ] दे० 'जिस'। __मामी। -धनानद, पृ० ४१८ । जिहन-सा [म. जिहन ] समझ । बुद्धि । धारणा । जिवैया-वि० [हिं०]जीमनेवाला । खानेवाले । उ०—तुम्हारे सिवाय पौर कोई जिवैया नही बैठा है। —मान भा०, ५, पृ० २७ । मुहा०-जिहन खुलना=बुद्धि का विकास होना । जिहन जिष्ट लहना - बुद्धि का काम करना। बुद्धि पहुँचना। जिहन -वि० [सं० ज्येष्ठ ] दे० 'ज्येष्ठ'। उ०-मन प्रभूत सु लहाना = सोचना । वुद्धि दौडाना। महापोह करना । उन्नत जिण्ट । वदन भर कि बद्ध मनु पिष्ट । -पृ० रा०, जिहान १। २५७ 1 -समा पुं० [ हि० जहाज ] मरुभूमि का जहाज मर्थात् ऊंट । उ०-ऊमर विच छेती घणी, घाते गयर जिष्णु'-वि॰ [सं०] जीतनेवाला । विजय प्राप्त करनेवाला । विजयी । जिहाज । चारण ढोलह सामुहठ, प्राइ कियउ सुमराज । जिष्णु-मझा पुं० [सं०] १ विष्णु । २ इद्र । ३ भर्जुन। ४ सूर्य । --ढोला०, दू० ६४३ । ५ वस्तु । जिहाद-~-सहा पुं० [म.][वि० जिहादी ] १ धर्म के लिये युद्ध। जिस-वि० [सं० यस्य, प्रा० जस्स, हिं० जिस ] 'जो' का वह रूप मजहबी लहाई। धार्मिक युद्ध । २ वह लढाई जो मुसलमान लो उसे विभक्तियुक्त विशेष्य के साथ पाने से प्राप्त होता है। लोग अन्य धर्मावलचियों से अपने धर्म के प्रचार मादि जैसे, जिस पुरुष ने, जिस लडके को, जिस छडी से। जिस घोडे लिये करते थे। पर, जिस घर में, इत्यादि । मुहा०-जिहाद का झडा=बह पताका जो मुमलमान लोग जिस-सर्व० 'जो' का वह भगरूप, विकारीरूप जो उसे विमक्ति भिन्न धर्मवालो से युद्ध करने के लिये लेकर चलते थे। सगने के पहले प्राप्त होता है। जैसे, जिसने, जिसको, जिससे, जिहाद का झंडा खडा करना-मजहब के नाम पर लहाई जिसका, जिस पर, जिनमें 1 छेड़ना।