पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/११५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

जिहान जिहिका जिहान -मझा पु० [फा० जहान ] ससार । जहान । १०-मेक भी हो जाते हैं। इस रोग में रोगी प्रायः गूगे या नहरे हो सयत समपत्त मैं, पैतीसै जसराज । मैं हरिधाम जिहान तज, जाते हैं। हिंदुसथान जिहान । -रा० रू०, पृ० १७॥ जिबल-वि० [सं०] जिमला । घट्ट । चटोरा। जिहान-सहा पुं० [सं०1१ जाना । गमन । २. पाना। प्राप्त जिह्वा-सहा की० [ म०] १जीभ । २ पाग की लपट (को०)। ____ करना [को०)। वाक्य (को०)। जिहानक-सचा पुं० [सं०] प्रलय [को०] । जिह्वान'.--सञ्ज्ञा पुं० [सं०] जीभ की नोक । ९ ।। लिहालत-सबा स्त्री॰ [अ० जहालत ] मूर्खता । मज्ञानता मुहा०-जिह्वाग्र फरना= कठस्य करना । जवानी याद करना । किसी जिहासा-सहा स्त्री॰ [सं०] त्याग करने की इच्छा । विषय को इस प्रकार रटना या घोखना कि उसे जब चाहे तब __ कह डाले । जिह्वाग्र होना = जबानी याद होना। जिहासु-वि० [सं०] त्याग करने की इच्छा करनेवाला । जिह्वाम-वि० याद रखनेवाला या वाली ( पीष या ग्रथ)। जिहीर्षा-मक्षा श्री० [सं०] हरने की इच्छा । लेने की इच्छा । हरण - करने की कामना । जिह्वाच्छेद-सना पुं० [स०] जीभ काटने का दह । विशेष-जो लोग माता, पिता, पुत्र, भाई, भाचार्य या तपस्वियों -वि० [सं०] हरण करने की इच्छा रखनेवाला। मादि को गाली देते थे उनको यही दष्ट दिया जाता था। जिहेज-सज्ञा पुं० [अ० जिहेज ] दे० 'जहेज' [को०] जिह्वाजप-सा पुं० [सं०] सत्रानुसार एक प्रकार का जप जिसमें जिहार-वि० [सं०] १. वक्र । टेढा । २ दुष्ट । क्रूर प्रकृतिवाला। जिह्वा हिलने का विधान है। ३ कुटिल ! कपटी। ४ अप्रसन्न । खिन्न । ५. मद । ६ जिहानिर्लेखन-सश० [सं०] जीमी [को०] । पीला। पीतवरणं का (को०)। । जिहानिर्लेखनिक-मुशा पुं० [सं०] दे० 'जिह्वा निलेखन' । जिह्म-सञ्ज्ञा पुं०१ तगर का फूल । २ अधर्म। ३ कपट (को०)। 'जिह्वाय-सझा पुं० [सं०] वे पशु जो जीभ से पानी पिया करते हैं। ४ बेईमानी । मिथ्यात्व (को०)। जैसे, कुत्ते, बिल्ली, सिंह आदि । जिलग-नि० [सं०] १ कुटिल गतिवाला । टेढ़ी चाल चलनेवाला। जिह्वामल-मझा पुं० [सं०] जीम पर पैठा हमा मैल (फो। २ मद गति । धीमा । ३. कुटिल । कपटी । चालबाज । जिह्वामूल-सम्मा पु० [सं०] [वि. जिह्वामूलीय ] जीभ की जड या । झग-सचा पुं० सपि। पिछन्ना स्थान । ह्मगति'--वि० [सं०] टेढ़ा मेढा चलनेवाला [को०] । जिह्वामूलीय'-वि० [सं०] जो जिह्वा के मूल से सबंध रखता हो। झिगति-मज्ञा पुं० साप [को०] । जिह्वामूलीय-सझा पुं० वह वर्ण जिसका उच्चारण जिह्वामूल से हो। रह्मगामी-वि० [म० जिह्मगामिन्] [वि०सी० जिह्मगामिनी] १. टेढ़ा विशेप-शिक्षा के अनुसार ऐसे वर्ण प्रयोगवाह होते हैं और चलनेवाला । २. कुटिल । कपटी। चालबाज । ३ मदगामी। वे सष्ठा मे दो हैक पौरख । क और ख के पहले सुस्त । धीमा ।। विसर्ग पाने से जिह्वामूलीय हो जाते हैं । कोई कोई वैयाकरण जिह्मता-सज्ञा स्त्री० [सं०] १ टेढ़ापन । वक्रता। २. मदता । कवर्ग मात्र को जिह्वामूलीय मानते हैं। धीमान । ३ कुटिलता 1 कपट । चालबाजी। जिह्वारद-सा ० [सं०] पक्षी । जिझमेहन-सचा पुं० [सं०] मेढक । जिह्वारोग--सहा पुं० [सं०] जीभ का रोग। जिह्मयोधी'-वि० [म० जिह्मयोधिन्] कपट युद्ध करनेवाला [को०] । विशेष---सुश्रुत के मत से यह पांव प्रकार का होता है। तीन जिलयोधी-सहा पुं० भीम [को०)। प्रकार के कटक जो वात, पित्त और कफ के प्रकोप से जीम जिद्मशल्य - सज्ञा पुं० [सं०] खैर । स्खदिर ! कत्या । पर पड़ जाते हैं, चौथा अलास जिसमें जिह्वा के नीचे सूजन जिह्माक्ष-वि० [सं०] ऐंचा ताना [को०] । हो जानी है और पांचवा उपजिविका जिममें जिह्वा के मूल मे सूजन हो जाती है और लार टपकती है। इन पांचों में जिमित-वि० [सं०] घूमा हुमा । फिरा हमा। पकित । विस्मित । मलास असाध्य है। इसमे जीभ के तले की सूजन बढ़कर जिह्मीकृत-वि० [सं०] झुकाया हुप्रा । टेढ़ा किया हुमा । पक जाती है। जित- सझा पुं० [सं०] १ जिह्वा । जिह्वालिह-सचा पुं० [ मै• ] कुत्ता। विशेष—इसका प्रयोग समस्त पदों में मिलता है । जैसे, द्विजिह्व। जिह्वालौल्य-मना पुं० [सं०] चटोरापन । स्वादलोलुपता को] । , २. तगरमूल (को०)। जिह्वाशल्य-सक्षा . [ सं०] खदिर । खैर का पेठ । करया। लिह-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का सन्निपात जिसमें जीम मे जिह्वास्तंभ-सण पुं० [म. ] एक प्रकार का जिहारोग जिसमें वायु काटे पड़ जाते हैं, रोगी से स्पष्ट बोला नहीं जाता, जीभ स्वरवाहिनी नाडियो में प्रवेश करके उन्हें स्तंभित कर देता लड़खडाती है। है। -माधव, पु० १४२। विशेष-इसकी अवधि १६ दिन की है । इसमें श्वास कास प्रादि जिद्विका-सहा श्री० [सं०] जीभी। वामूलीयन मान को जिहार म